यूपी के बागपत के सनौली गांव में प्राचीन कब्रगाह खोजी गई है.
नई दिल्ली:
बागपत के सनौली गांव में मिले शाही कब्रिस्तान और इसमें मिले अवशेष कई अहम संकेत देने वाले हैं. इस पुरातात्विक खुदाई से पांच हजार साल पहले इस स्थान पर विकसित सभ्यता की कई परतें खुलने की संभावना है. यहां मिले शव संकेत देते हैं कि तत्कालीन समाज में भी वर्ग विभाजन था और अलग-अलग सामाजिक हैसियत के लोग इसका हिस्सा थे.
सनौल में मिले शवों के अवशेषों को लाल किला लाया जा रहा है. लाल किले में इनका डीएनए और कार्बन डेटिंग परीक्षण किया जाएगा. इससे पहले साल 2005 यहीं मिले 126 शवों के डीएनए से पता चला है कि ये करीब पांच हजार साल पहले के हैं.
हड़प्पाकालीन खुदाई के जानकार इसे महत्वपूर्ण मानते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका पांच हजार साल पहले हड़प्पा सभ्यता के बाद बाड़ा संस्कृति के केंद्र के तौर पर था.
सनौली गांव की शाही कब्रगाह खोजने वाले डॉ संजय कुमार कहते हैं कि इन कब्रों से मिले अवशेष यह बता रहे हैं कि हमारी सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता से कहीं ज्यादा उन्नत या उसके बराबर रही होगी. गुजरात के धौलाबीरा में हड़प्पाकालीन सभ्यता के निशान खोजने वाले आरपी बिष्ट बताते हैं कि मोहन जोदड़ो, गन्वेरीवाला, हड़प्पा, राखीगढ़ी हिसार, धौलाबीरा गुजरात जैसी पांच शहरी सभ्यता मिली थीं. लेकिन हड़प्पा सभ्यता के अवसान के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश ग्रामीण संस्कृति के तौर पर विकसित हुई होगी और सनौली उसी का समृद्ध प्रतीक है.
भारतीय पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक आरपी बिष्ट बताते हैं कि हड़प्पा की शहरी संस्कृति के खत्म होने के दो कारण रहे होंगे पहला जलवायु परिवर्तन और दूसरा पानी की कमी. पानी खोजते हुए अलग-अलग वर्ग हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सरस्वती, काली, हिंडन और यमुना नदी के किनारे बसें होंगे. ये ग्रामीण संस्कृति के तौर पर पनपी होगी जो कि काफी समृद्ध थी.
VIDEO : सनौली में मिली 5000 साल पुरानी कब्रगाह
सनौली गांव में मिली शाही कब्रगाह में कुछ शव ताबूत में मिले हैं जबकि कुछ को जलाने के बाद उनकी हड्डियों को तांबे की तलवार, सोने के आभूषण और नक्काशीदार कंघी के साथ रखा गया है, जो विभिन्न सामाजिक धारणाओं की ओर इशारा करते हैं. हड़प्पा की खुदाई से जुड़े रहे डॉ एसके बिष्ट बताते हैं कि सनौली गांव की कब्रें संकेत देती हैं कि उस वक्त समाज में अलग-अलग मान्यताओं को मानने वाले वर्ग थे, इसीलिए कई शव जलाकर फिर उनकी हड्डियों को दबाया जाता था. कई शवों को सीधे ताबूत में रखा गया है. इन शवों के साथ मिलने वाला सामान उनकी उस वक्त की सामाजिक हैसियत को भी बयां करते हैं. इस लिहाज से सनौली की पुरातात्विक खुदाई मील का पत्थर साबित हो सकती है.
सनौल में मिले शवों के अवशेषों को लाल किला लाया जा रहा है. लाल किले में इनका डीएनए और कार्बन डेटिंग परीक्षण किया जाएगा. इससे पहले साल 2005 यहीं मिले 126 शवों के डीएनए से पता चला है कि ये करीब पांच हजार साल पहले के हैं.
हड़प्पाकालीन खुदाई के जानकार इसे महत्वपूर्ण मानते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका पांच हजार साल पहले हड़प्पा सभ्यता के बाद बाड़ा संस्कृति के केंद्र के तौर पर था.
सनौली गांव की शाही कब्रगाह खोजने वाले डॉ संजय कुमार कहते हैं कि इन कब्रों से मिले अवशेष यह बता रहे हैं कि हमारी सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता से कहीं ज्यादा उन्नत या उसके बराबर रही होगी. गुजरात के धौलाबीरा में हड़प्पाकालीन सभ्यता के निशान खोजने वाले आरपी बिष्ट बताते हैं कि मोहन जोदड़ो, गन्वेरीवाला, हड़प्पा, राखीगढ़ी हिसार, धौलाबीरा गुजरात जैसी पांच शहरी सभ्यता मिली थीं. लेकिन हड़प्पा सभ्यता के अवसान के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश ग्रामीण संस्कृति के तौर पर विकसित हुई होगी और सनौली उसी का समृद्ध प्रतीक है.
भारतीय पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक आरपी बिष्ट बताते हैं कि हड़प्पा की शहरी संस्कृति के खत्म होने के दो कारण रहे होंगे पहला जलवायु परिवर्तन और दूसरा पानी की कमी. पानी खोजते हुए अलग-अलग वर्ग हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सरस्वती, काली, हिंडन और यमुना नदी के किनारे बसें होंगे. ये ग्रामीण संस्कृति के तौर पर पनपी होगी जो कि काफी समृद्ध थी.
VIDEO : सनौली में मिली 5000 साल पुरानी कब्रगाह
सनौली गांव में मिली शाही कब्रगाह में कुछ शव ताबूत में मिले हैं जबकि कुछ को जलाने के बाद उनकी हड्डियों को तांबे की तलवार, सोने के आभूषण और नक्काशीदार कंघी के साथ रखा गया है, जो विभिन्न सामाजिक धारणाओं की ओर इशारा करते हैं. हड़प्पा की खुदाई से जुड़े रहे डॉ एसके बिष्ट बताते हैं कि सनौली गांव की कब्रें संकेत देती हैं कि उस वक्त समाज में अलग-अलग मान्यताओं को मानने वाले वर्ग थे, इसीलिए कई शव जलाकर फिर उनकी हड्डियों को दबाया जाता था. कई शवों को सीधे ताबूत में रखा गया है. इन शवों के साथ मिलने वाला सामान उनकी उस वक्त की सामाजिक हैसियत को भी बयां करते हैं. इस लिहाज से सनौली की पुरातात्विक खुदाई मील का पत्थर साबित हो सकती है.
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