विज्ञापन

उत्तराखंड का 'मांझी' महावीर, जिसने पहाड़ों को काटा नहीं और भी ऊंचा कर डाला

  • देश,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2024 13:09 pm IST
    • Published On नवंबर 19, 2024 13:08 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2024 13:09 pm IST

उत्तराखंड के सुदूरवर्ती गांवों से हिंदी साहित्य के बड़े नाम आते रहे हैं, महावीर रवांल्टा भी उसी कड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं. लिखने की वजह से अपने दुखों के पहाड़ को भूलकर महावीर रवांल्टा ने रवांल्टी भाषा के लिए जो कार्य किए हैं, उनसे वह अपनी जन्मभूमि हिमालय का कद और भी बढ़ा रहे हैं.

अस्कोट आराकोट यात्रा में महावीर से मुलाकात

अस्कोट आराकोट यात्रा के दौरान स्वील गांव से निकलते वक्त एक लड़के ने हमारा उस रात्रि का पड़ाव पूछा, तो हमने उसे महरगांव बताया. सुनते ही वह बोला रवांल्टी भाषा में लिखने वाले महावीर रवांल्टा वहीं रहते हैं, एक भाषा को बचाए रखने वाले शख्स से मिलने की बेसब्री मुझमें वहीं होने लगी थी. शाम होते महरगांव पहुंचने पर महावीर रवांल्टा ने सभी यात्रियों का अपने घर में स्वागत किया था और घर के आंगन में मंच बना कर उनका हमें बच्चों द्वारा किया जाने वाला एक नाटक दिखाने का विचार भी था, लेकिन बारिश की वजह से उस प्रोग्राम को रद्द करना पड़ा. हालांकि, इस बीच अस्कोट आराकोट यात्रियों द्वारा उन्होंने अपनी किताब 'चल मेरी ढोलक ठुमक ठुमक' का विमोचन करवा लिया था.

यात्रा के अंतिम पड़ाव आराकोट पहुंचने पर उनसे फिर से भेट हुई और रात्रि में उनके साथ ही ठहर कर बातचीत का अवसर मिला. 

बचपन से ही पढ़ने-लिखने के शौकीन रहे महावीर

महावीर रवांल्टा का जन्म 10 मई, 1966 को उत्तरकाशी जिले के सरनौल गांव में हुआ था, उनके पिता टीका सिंह राजस्व विभाग में कानूनगो और माता रूपदेई देवी गृहिणी थीं. तीन भाइयों और दो बहनों में दूसरे नम्बर के महावीर बचपन में ही महरगांव आ गए. गांव के विद्यालय में शनिवार को होने वाले कार्यक्रमों में कविता सुनाई जाती थी, वहां से महावीर का कविताओं को पढ़ने का शौक जागने लगा. नौवीं कक्षा में विद्यालय के पुस्तकालय में उन्होंने किताबें पढ़नी शुरू कर ली थी, उस दौरान वह पराग, नन्दन, धर्मयुग पत्रिकाएं पढ़ने लगे थे. महावीर के साथी अपने जेब खर्चे से खाना खाते थे, तो वह उससे पत्रिकाएं खरीद लेते थे. कुछ समय बाद महावीर रवांल्टा अपने पिता के साथ उत्तरकाशी आ गए और वहां भी उन्होंने पढ़ने-लिखना नहीं छोड़ा और गांधी वाचनालय जाने लगे. बारहवीं कक्षा में वह विज्ञान वर्ग के छात्र थे पर उनका रुझान वैज्ञानिकों में न होकर हिंदी लेखकों की तरफ था. उन्हें प्रेमचंद, शिवानी, हिमांशु जोशी को पढ़ना पसंद था.

'हिमालय और हम' के लिए पहला पत्र

बीएससी में एडमिशन लेने के बाद महावीर रवांल्टा पहले ही साल उसमें असफल हो गए, क्योंकि उन दिनों वह लिखने में बहुत ज्यादा मशगूल हो गए थे. उन्होंने टिहरी से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र 'हिमालय और हम' के लिए पहला पत्र लिखा, इसके सम्पादक गोविंद प्रसाद गैरोला थे. साल 1983 में देहरादून से प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक पत्र 'उत्तरांचल' के स्तम्भ 'साहित्य कला और संस्कृति' में उनकी पहली कविता 'बेरोजगार' प्रकाशित हुई. उत्तरांचल के सम्पादक सोमवारी लाल उनियाल 'प्रदीप' आजकल देहरादून में रहते हैं और वह खुद अच्छे कवि रहे हैं. इन दोनों रचनाओं के प्रकाशित होने पर युवा हो रहे महावीर को लगने लगा कि लिखोगे तो कहीं न कहीं छपोगे ही.

Latest and Breaking News on NDTV

ज्ञानपीठ से कम नहीं था वो 20 रुपये का ईनाम 

इस बीच ही कुंवर बैचेन, कन्हैया लाल नन्दन, केशव अनुरागी, रमानाथ अवस्थी जैसे बड़े कवि उत्तरकाशी में होने वाले माघ मेले में कवि सम्मेलन के लिए पहुंचे, यह रात भर चलता था. उन्हें रात भर सुनते महावीर सोचते थे कि क्या कभी मैं भी ऐसे मंच से अपनी रचनाओं को सुना पाऊंगा, इसके बाद उनके अंदर कविता लिखने की धुन सवार हो गई. इत्तेफाक से इस कवि सम्मेलन के संयोजक, पर्यावरण नियोजन और विकास के कवि घनश्याम रतूड़ी ने उन्हें कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने का निमंत्रण दिया. वहां पर बड़े कवियों ने कविता सुनाने पर महावीर रवांल्टा की पीठ थपथपाई, उन्हें ईनाम में बीस रुपये का लिफाफा भी मिला. उन बीस रुपयों के बारे में महावीर कहते हैं कि वह लिफाफा मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कार के समान लग रहा था, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी. इसके बाद मुझे वहां कविता सुनाने का मौका फिर मिला और उससे मेरा हौसला बढ़ता ही चला गया.

साल 1987-88 में महावीर रवांल्टा ने एक नया प्रयोग करते हुए महरगांव में तीन चार दिन नाट्य शिविर आयोजित किए, इसमें गांव के लगभग चालीस बच्चे शामिल किए. उन्होंने गांव की समस्याओं को लेकर नाटक लिखे, जिससे लोगों में संदेश जाए. यह नाटक पौराणिक, समसामयिक, लोककथाओं से जुड़े होते थे. 

कहानीकार और नाटककार महावीर

इसके बाद महावीर रवांल्टा पराग पत्रिका पढ़ते हुए कहानियों की तरफ आकर्षित होने लगे. इस बीच उनका उत्तरकाशी पॉलिटेक्निक में फॉर्मेसी के लिए चयन हो गया था. गांव जाने पर रामलीला देखते उन्हें नाटक करने का चस्का लगा. उन्होंने 'मुनारबन्दी' नाटक लिखा और उसमें अभिनय, निर्देशन भी किया, यह नाटक साल 1930 में हुए तिलाड़ी कांड पर केंद्रित था. साल 1984-85 में उन्होंने 'रवांई जौनपुर विकास युवा मंच' बनाया, जिसमें क्षेत्र के अन्य लोग भी शामिल हुए. वहीं पॉलिटेक्निक में हुए वार्षिकोत्सव में उन्होंने दो नाटक करवाए, जिसमें उन्होंने निर्देशन और अभिनय किया. इस बीच सुवर्ण रावत के एनएसडी दिल्ली से लौटने पर उन्होंने अपने साथियों का सुवर्ण रावत से परिचय करवाया और उनके साथ उत्तरकाशी में 'काला मोहन' नाटक का मंचन किया. इस नाटक के बाद उन्होंने सुवर्ण रावत के साथ मिलकर 'कला दर्पण' की स्थापना की, कला दर्पण के माध्यम से उत्तरकाशी में वह लगातार नाटक करते रहे. इसमें बांसुरी बजती रही, हेमलेट जैसे नाटक थे. हेमलेट के मंचन के दौरान पंजाब के एक प्रोफेसर ने नाटक देखा और उन्होंने कला दर्पण की पूरी टीम की खूब तारीफ करते हुए कहा कि मुझे यह देख कर आश्चर्य हो रहा है कि आपने इतने सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्र में इतने शानदार नाटक का मंचन किया. मैंने अपने पूरे जीवन भर हेमलेट को पढ़ाया है पर उसके ऊपर ऐसा शानदार नाटक बनने की कल्पना तक कभी नही की.
साल 1987-88 में महावीर रवांल्टा ने एक नया प्रयोग करते हुए महरगांव में तीन चार दिन नाट्य शिविर आयोजित किए, इसमें गांव के लगभग चालीस बच्चे शामिल किए. उन्होंने गांव की समस्याओं को लेकर नाटक लिखे, जिससे लोगों में संदेश जाए. यह नाटक पौराणिक, समसामयिक, लोककथाओं से जुड़े होते थे. 
शुरुआत में रामलीला के दौरान दिखाए जाने वाले नाटकों में महिलाओं का किरदार पुरुष ही करते थे, लेकिन महावीर रवांल्टा ने गांव की लड़कियों को ही महिला के किरदार देने शुरू किए. इस बीच ही उनका विवाह भी हो गया था. 
उन दिनों की एक घटना का जिक्र करते महावीर रवांल्टा कहते हैं कि साल 1988 में चुनाव के दौरान किसी को चुनावी समर्थन देने की वजह से विपक्षी उनसे नाराज़ हो गए. उन लोगों ने गांव के मेले के दौरान हमारे नाटक का यह कहते हुए विरोध किया कि इससे गांव के मेले में व्यवधान आ रहा है. इसके बाद मैंने नाटकों का मंचन अपने घर के आंगन में शुरू करा दिया और उनसे पूछा कि अब तो आपके मेले में कोई व्यवधान नही आ रहा होगा!

लेखक के तौर पर जमते महावीर

नौकरी का नियुक्ति पत्र आने पर महावीर रवांल्टा को मुरादाबाद जाना पड़ा, फिर उनको अस्कोट भेज दिया गया. रंगमंच छूटने के दुख में उन्होंने फिर से लिखना शुरू किया. साल 1992 में 'पगडण्डियों के सहारे' उनका पहला उपन्यास था, इस उपन्यास का विचार उन्हें बेरोजगारी के दिनों में घर रहते हुए ही आ गया था. पगडण्डियों के सहारे तक्षशिला प्रकाशन से प्रकाशित होकर आया, उसकी खूब प्रतियां बिकी. इस उपन्यास के बारे में बात करते महावीर कहते हैं कि आज भी इतने सालों बाद लोग मुझसे कहते हैं कि हमने आपका 'पगडण्डियों के सहारे' उपन्यास पढ़ा है. हरिमोहन ने 8 अगस्त 1992 में 'पगडण्डियों के सहारे दूर तक जाने की ललक' शीर्षक से उनके इस उपन्यास की समीक्षा लिखी. फिर उनका दूसरा उपन्यास 'एक और लड़ाई लड़' भी तक्षशिला प्रकाशन से प्रकाशित हो गया.
इसके बाद महावीर कहानियां लिखने लगे, जो अमर उजाला, वागर्थ, उत्तरार्द्ध जैसी अलग अलग पत्र पत्रिकाओं में छपते रहीं. 'समय नहीं ठहरता' उनका पहला कहानी संग्रह था. इस बीच उनका ट्रांसफर बुलंदशहर हो गया था. साल 2003 में उनका उपन्यास 'अपना अपना आकाश' और कहानी संग्रह 'टुकड़ा टुकड़ा यथार्थ' प्रकाशित हुआ. अभी वह एक उपन्यास पर काम कर रहे हैं.

दुख के पहाड़ को झेल खुद पहाड़ से ऊंचे बने महावीर

साल 2004 में महावीर रवांल्टा की इकलौती लड़की की मृत्यु हो गई थी, महावीर कहते हैं कि बेटी के जाने का दुख ऐसा था कि मुझे लगा मेरी दुनिया खत्म हो गई पर लेखन से ही मुझे जीने का हौसला मिला. उसके जाने के कुछ समय बाद ही मेरा लघुकथा संग्रह 'त्रिशंकु' प्रकाशित हुआ, रचना धर्मिता की वजह से मुझे मेरा दुख सहने की हिम्मत मिली.
बेटी की मृत्यु के दुख में महावीर ने 'सपनों के साथ चेहरे' कविता संग्रह लिखा, इस कविता संग्रह को पढ़ने के बाद भारत भारद्वाज व अन्य लोगों ने उनसे कहा कि यह कविताएं निराला की 'सरोज स्मृति' की तरह बैचेन करने वाली कविता हैं.
'सीमा प्रहरी' पत्रिका के सम्पादन के लिए के लिए उन्हें पहला पुरस्कार मिला. सैनिक और उनके परिवेश विषय पर 'अक्षर भारत' समाचार पत्र में कहानी लिखने के लिए एक विज्ञप्ति निकली, जिसके साहित्य सम्पादक अमर गोस्वामी थे. महावीर सिंह ने इसके लिए 'अवरोहण' कहानी लिखी और इसके लिए उन्हें कानपुर में आयोजित एक समारोह में प्रसिद्ध कमेंटेटर पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त जसदेव सिंह और परमवीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा की मौजूदगी में द्वितीय पुरस्कार मिला. इसके बाद उन्हें अन्य कई जगह आज तक सम्मानित किया जाता रहा है. सम्मान पर महावीर रवांल्टा कहते हैं कि सही उम्र में मिला सम्मान लेखकों के लिए संजीवनी का नाम करता है और लिखने का हौंसला देता है.

अपनी भाषा को पहचान दिलाते महावीर और उनसे प्रेरणा लेते युवा

उस समय रवांई के लोग अपनी भाषा रवांल्टी बोलने में झिझकते थे. हिंदी में स्थापित रचनाकार बनने के बाद महावीर रवांल्टा को लगा कि उन्हें अपनी भाषा बचाने और लोकप्रिय करने के लिए कुछ करना होगा. उन्होंने साल 1995 में पहली बार रवांल्टी में लिखने की कोशिश करते हुए एक कविता लिखी. यह कविता देहरादून से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र 'जन लहर' में हिंदी अनुवाद के साथ प्रकाशित हुई. इसके बाद साल 2003 से 2005 के बीच महावीर की दो रवांल्टी कविता संग्रहों के बी मोहन नेगी ने कविता पोस्टर बनाए, बी मोहन नेगी के कविता पोस्टर विश्व प्रसिद्ध हैं.
साल 2010 में 'भाषा शोध एवं प्रकाशन केंद्र वडोदरा' ने डॉक्टर शेखर पाठक और उमा भट्ट से अपनी परियोजना 'भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण' पर काम करने के लिए सम्पर्क किया. उत्तराखंड की तेरह भाषाओं पर इस परियोजना के अंतर्गत काम किया गया, रवांल्टी भाषा पर काम करने के लिए शेखर पाठक ने महावीर रवांल्टा को जिम्मेदारी सौंपी. 
इसके बाद उत्तराखंड भाषा संस्थान की तरफ से प्रोफेसर डीडी शर्मा के निर्देशन में उत्तराखंड की भाषाओं पर 'भाषाओं का सांस्कृतिक एवं भाषा वैज्ञानिक विवेचन' नाम से काम शुरू हुआ, उसके लिए भी महावीर रवांल्टा ने मन लगाकर काम किया और वह कार्य अभी प्रकाशित होने वाला है.
'पहाड़' संस्था ने भी उत्तराखंड की तेरह भाषाओं का शब्दकोश बनाया है, इसमें भी महावीर रवांल्टा ने रवांल्टी भाषा के शब्दों पर काम किया. हाल ही में उनकी 'चल मेरी ढोलक ठुमक ठुमक' नामक किताब प्रकाशित हुई है, जिसमें रवांल्टी लोक कथाओं को हिंदी भाषा में लिखा गया है. इन लोक कथाओं को महावीर अब रवांल्टी भाषा में लिख रहे हैं. चार उपन्यासों, पंद्रह कथा संग्रहों, पांच कविता संग्रहों व कई अन्य हिंदी व रवांल्टी भाषा की रचनाओं के साथ उनका रचनात्मक कार्य अनवरत जारी है.

(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com