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उत्तराखंड में गायब हो गया 'ऊं' पर्वत, जरा खतरे का संकेत समझिए 

Uttarakhand Om Parvat : चीन सीमा के करीब कैलाश मानसरोवर की तरफ बढ़ते हुए ऊं पर्वत को देखकर हर कोई मुग्ध हो जाता था, मगर अब यह गायब हो गया है...जानें क्या है वजह....

उत्तराखंड में गायब हो गया 'ऊं' पर्वत, जरा खतरे का संकेत समझिए 
Global Warming effect in Uttrakhand : ऊं पर्वत भी ग्लोबल वार्मिंग का शिकार हो गया है.
पिथौरागढ़ :

Om mountain disappeared : धारचूला से कैलाश मानसरोवर जाने वाली व्यास घाटी में इन दिनों एक चीज हैरान कर रही है. जिस पर्वत को देखते हुए आस्था से सिर झुक जाया करता था, वह  'ऊं पर्वत' नजरों से ओझल है! पहली बार पर्वत की पूरी बर्फ पिघल चुकी है. ऊं की आकृति अब दिखाई नहीं दे रही है. सामने बस काला पहाड़ है. ऐसा पहली बार हुआ है. व्यास घाटी के गर्ब्याल गांव के कृष्णा गर्ब्याल चिंतित हैं. वह कहते हैं कि कि जिंदगी में उन्होंने पहली बार ऐसा देखा है. वह इसे अशुभ संकेत मानते हैं. वह इसकी वजह इस सेंसेटिव जोन में बढ़ते इंसानी दखल को मानते हैं. 

कहां है ऊं पर्वत

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धारचूला से कैलाश मानसरोवर की तरफ बढ़ने हुए चीन सीमा से करीब 15 किलोमीटर पीछे ऊं पर्वत की झलक दिल खुश कर देती है. सारी थकान मिटा देती है. ऊं पर्वत की को स्थानीय रं और भोटिया समुदाय बड़ी आस्था से देखता है. वे इस पहाड़ को पूजते रहे हैं. व्यास घाटी में पिछले एक दशक के दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा और चीन सीमा पर सुरक्षा गतिविधियों से मानवीय दबाव बढ़ा है.        

पहले कभी गायब नहीं हुआ

कृष्णा 2016 को याद करते हुए कहते हैं, 'बारिश लगातार नहीं होती है, तो बर्फ नहीं टिकती है. 2016 में बारिश कम हुई थी, तब भी ऊं पर्वत पर बर्फ काफी गल गई थी. उस साल जून-जुलाई में इस पर्वत पर काफी कम बर्फ दिखाई दी थी, लेकिन आज की तरह गायब नहीं हुआ था.'

क्यों हुआ ऐसा

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वह कहते हैं कि यह पहली बार है कि ऊं पर्वत से पूरी बर्फ हट गई है. वह इस 'बीमारी' की वजह बताते हुए कहा हैं, 'ऊं पर्वत तक सड़क बन गई है. 2019 में मोटरमार्ग बना है. करीब 100 गाड़ियां वहां तक रोज जाती हैं. कार्बन बढ़ेगा, तो वहां फर्क पड़ेगा ही.' वह इलाके में अंधाधुंध पर्यटन को भी इसका दोष देते हैं. कृष्णा कहते हैं, 'केएमवीएन ने हेलिकॉप्टर दर्शन सेवा शुरू करवा दी है. हेलिकॉप्टर सीधे वहीं उतर रहे हैं. यह भी एक वजह है. स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ लंबा आंदोलन किया था. स्थानीय चाहते थे कि हेलिकॉप्टर को आदि कैलाश और ऊं पर्वत तक न ले जाया जाए. ऊं पर्वत से 16 किलोमीटर पहले गुंजी में अगर हेलिकॉप्टर रोक दिया जाता, तो लोगों की रोजी-रोटी भी बचती और पर्यावरण भी.' 

पुराने दिनों को याद करते हुए कृष्णा गर्ब्याल कहते हैं कि एक दौर में जून के महीने में भी लिपूलेख में खूब बर्फ हुआ करती थी. अब बर्फ कम हो गई है. यह भी एक दिन गायब हो जाएगी. ऐसी ही हालात रहे तो आदि कैलाश में बस नंगे पहाड़े देखने को मिलेंगे. 

डिफेंस एग्रीकल्चर रिसर्च लेबोरटेरी (DARL) के सीनियर साइंटिस्ट हेमंत पांडेय धरती के लगातार बढ़ रहे तापमान को इसकी वजह बताते हैं. वह कहते हैं कि जून में वह भी वहां गए थे, तब भी ऊं पर्वत पर नाममात्र की बर्फ थी. वे कहते हैं कि दो-तीन डिग्री भी तापमान बढ़ना काफी होता है. आप इसे इस बात से समझ सकते हैं कि उत्तराखंड के हिल स्टेशनों में चार से पांच डिग्री का फर्क है. ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इसके असर को समझा जा सकता है.

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