गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को मणिपुर हिंसा पर सर्वदलीय बैठक (All-party meeting) बुलाई थी. बैठक में अधिकांश विपक्षी दलों ने "पक्षपात" का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि केंद्र शांति के लिए एक "समयबद्ध कार्य योजना" बनाए ताकि उत्तर-पूर्वी राज्य में फिर से अशांति ना फैले. बैठक में पहुंचे पार्टी प्रतिनिधियों को गृह मंत्रालय ने राज्य में 3 मई को हुई हिंसा की पहली घटना के बाद से लगातार शांति के लिए किए गए कोशिशों पर विस्तृत जानकारी दी. इसमें बताया गया कि राज्य में करीब 36,000 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया और हालात पर बारीकी से नजर रखने के लिए कम से कम 40 आईपीएस अधिकारियों को भेजा गया.
सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने गृह मंत्री अमित शाह की तीन दिवसीय मणिपुर यात्रा सहित सरकार की ओर से अब तक उठाए गए कदमों के बारे में बताया. बैठक में मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों और 18 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के अलावा, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और दूसरे गृह राज्य मंत्री अजय कुमार टेनी भी मौजूद थे.
बैठक में बताया गया कि अब तक राज्य में 131 मौतें, 419 घायल हुए हैं और आगजनी की 5,036 घटनाएं दर्ज की गई हैं. 144 गिरफ्तारियों के अलावा 5,889 एफआईआर दर्ज की गई हैं. यह भी बताया गया कि मणिपुर में जातीय संघर्ष पहले भी होते रहे हैं, साल 1993 में ऐसी ही हिंसा में 750 मौतें हुई थीं और 1997-98 में भी इसी तरह की झड़पें हुई थीं.
सूत्रों के मुताबिक, सीपीएम, AAP, राजद और कांग्रेस जैसी कई पार्टियों ने मांग की कि राज्य में जारी हिंसा को देखते हुए बीरेन सिंह को हटा दिया जाए क्योंकि वह मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की 'वैधता' खो चुके हैं. टीएमसी समेत कई पार्टियों ने मांग की कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को राज्य का दौरा करने की अनुमति दी जाए. साथ ही समाजवादी पार्टी ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने पर जोर दिया.
मौतों के अलावा, हिंसा की वजह से हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं. केंद्रीय बल भीड़ और बंदूकधारियों दोनों से जूझ रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी चार दिनों के लिए राज्य का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने लोगों के विभिन्न समूहों से मिलने के अलावा राहत शिविरों का दौरा किया था. साथ ही विद्रोही समूहों को हथियार छोड़ने और शांति बहाल करने में मदद करने के लिए 15 दिनों की समय सीमा के बारे में भी बात की थी.
बैठक में किसने क्या बोला?
मामले से जुड़े लोगों के मुताबिक, बैठक में राजद नेता मनोज कुमार झा ने मणिपुर में नाजुक हालात बताते हुए कहा कि इसके लिए केंद्र को सतर्क रहना चाहिए था. वहीं, सीपीआई (M) के जॉन ब्रिटास ने बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की है, उन्होंने यह भी पूछा कि अब तक केवल 144 गिरफ्तारियां क्यों हुई हैं? जिस पर मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संवेदनशील तरीके से इसे संभाला जा रहा है, ताकि ज्यादा स्थिति न बिगड़े.
सूत्रों के मुताबिक, सीपीएम ने यह भी सवाल उठाया कि सुरक्षा बलों से हथियार छीनने वाले हिंसक समूहों के बारे में सरकार क्या कर रही है? केंद्र ने जवाब देते हुए कहा 1,600 मामलों में हथियारों का समर्पण पहले ही हो चुका है. शिवसेना (UBT) की प्रियंका चतुर्वेदी, AAP के संजय सिंह और डीएमके के तिरुचि शिवा ने भी मुख्यमंत्री के हिंसा पर काबू पाने में नाकाम होने की बात कही.
कांग्रेस की तरफ से साल 2002 से 2017 तक 15 वर्षों तक मणिपुर के मुख्यमंत्री रहे ओकराम इबोबी सिंह बैठक में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि सभी विद्रोही समूहों से तुरंत हथियार ले लिए जाने चाहिए. कांग्रेस ने यह मांग भी की है कि इंफाल में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए.
बैठक में सबसे पहले एलजेपी ने अपनी बात रखी
बैठक में सबसे पहले एलजेपी ने अपनी बात रखी. इसके बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा और सिक्किम के सीएम प्रेम सिंह तमांग ने अपनी बात रखी, जो कि दोनों ही एनडीए का हिस्सा हैं. सूत्रों के मुताबिक, तमांग ने एनडीए के अंडर में उत्तर पूर्व में हिंसा की घटनाओं में कमी आने की बात कही. बैठक में शामिल हुए एक अन्य ने बताया, "बैठक में केवल यही कुछ हद तक राजनीतिक मुद्दा था. इसके अलावा सभी ने सियासत से जुदा रुख भी अपनाए रखा. गृह मंत्री अमित शाह ने धैर्यपूर्वक सभी के सुझावों को सुना. जब कांग्रेस ने उनके बाद बोलना चाहा, तो उन्होंने उनसे इस मामले पर विस्तार से बात करने के लिए भोजन पर आने के लिए कहा."
पार्टियों ने यह भी कहा कि शांति समितियों के काम करने के लिए लोगों में विश्वास बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. एक 51 सदस्यों की पीस कमेटी और गौहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया गया है.
बैठक में शामिल होने वाले एक सांसद ने बताया, "गृह मंत्री ने ईमानदारी से कबूल किया कि स्थिति अभी भी पूरी तरह से शांतिपूर्ण नहीं है, लेकिन केंद्र मौतों की संख्या पर काबू पाने के लिए कोशिश कर रहा है. उन्होंने हमें सरकार पर विश्वास रखने के लिए कहा कि स्थिति सामान्य बनाने के लिए सब कुछ किया जा रहा है."
सरकार ने अपनी एक्शन के बारे में बताया
बैठक में मौजूद लोगों के अनुसार, गृह मंत्री ने बताया कि मणिपुर, इसके इतिहास और यहां रहने वाले समुदायों और पहले हुई झड़पों के बारे में उन्हें जानकारी है. बैठक में शामिल होने वाले एक प्रतिनिधि ने बताया, "गृह मंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने अतीत का अध्ययन किया है. उन्होंने मणिपुर में जो तीन रातें वहां बिताईं, वे सभी समूहों से मिले, यहां तक कि बिना प्रतिनिधित्व वाली पार्टियों से भी मिले. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वह अतीत को जानते हैं और इसे अपनी कोशिशों पर हावी नहीं होने देंगे."
जब एक सदस्य ने पूछा कि पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम और मेघालय के दो मुख्यमंत्री ही क्यों बैठक में हैं, मणिपुर के मुख्यमंत्री क्यों नहीं हैं? इस पर गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि वे राजनीतिक दलों के प्रमुख के रूप में बैठक में मौजूद हैं.
गृह मंत्रालय ने कहा कि मणिपुर में स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है और 13 जून की रात से राज्य में हिंसा में एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. साथ ही बताया गया कि दवाओं सहित सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 20 मेडिकल टीमें भेजी गई हैं.
गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि म्यांमार-मणिपुर की 10 किमी सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा हो चुका है, और 80 किमी की सीमा पर बाड़ लगाने के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है, जबकि बाकि सीमा का सर्वे चल रहा है. मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि राज्य में शांति लाने के लिए मणिपुर में लोगों के विभिन्न समूहों से अमित शाह की मुलाकात के अलावा, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय 20 दिनों से अधिक समय तक राज्य में रहे थे.
गृह मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर रहते हुए भी लगातार मणिपुर की स्थिति का जायजा ले रहे हैं और मणिपुर में हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सभी कार्रवाई उनके मार्गदर्शन में की जा रही हैं.
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