
- PM मोदी बांसवाड़ा में माही-बांसवाड़ा परमाणु ऊर्जा परियोजना की नींव रखेंगे, जो 2800 मेगावाट क्षमता की होगी
- यह परियोजना भारतीय प्रेसराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर तकनीक पर आधारित होगी और 2032 तक पहली यूनिट चालू हो जाएगी
- परियोजना के पूरा होने पर राजस्थान की कुल परमाणु ऊर्जा क्षमता 5900 मेगावाट तक पहुंच जाएगी
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के नपला में आज इतिहास रचने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ ही देर में माही-बांसवाड़ा परमाणु ऊर्जा परियोजना की नींव रखने वाले हैं, जो राज्य को परमाणु ऊर्जा के नए युग में प्रवेश दिलाएगी. करीब 42 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली इस परियोजना की क्षमता 2800 मेगावाट होगी और यह भारत में विकसित अत्याधुनिक प्रेसराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर तकनीक पर आधारित होगी. अनुमान है कि इसकी पहली यूनिट 2032 तक बिजली उत्पादन शुरू कर देगी और 2036 तक पूरा प्रोजेक्ट पूरी क्षमता से काम करेगा.
इस परियोजना से न केवल राजस्थान की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी होंगी बल्कि राज्य की कुल परमाणु ऊर्जा क्षमता भी 5900 मेगावाट तक पहुंच जाएगी। निर्माण चरण में हज़ारों लोगों को रोजगार मिलेगा और संचालन के बाद वागड़ क्षेत्र के विकास की नई राह खुलेगी. यह परियोजना भारत के नेट ज़ीरो उत्सर्जन 2070 लक्ष्य की दिशा में भी बड़ा कदम माना जा रहा है.

दूसरी सबसे बड़ी परमाणु परियोजना
राजस्थान पहले से ही रावतभाटा के परमाणु ऊर्जा केंद्र के लिए जाना जाता है. लेकिन अब माही नदी किनारे 623 हेक्टेयर में बनने वाली यह नई परियोजना राज्य को परमाणु ऊर्जा का हब बनाने की दिशा में बड़ा कदम है. इस प्रोजेक्ट में चार यूनिट होंगे, जिनकी कुल क्षमता 2800 मेगावाट होगी. पहली यूनिट से 700 मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद है, जो 2032 तक शुरू हो सकता है. शेष यूनिट्स के चरणबद्ध रूप से चालू होने के बाद 2036 तक पूरा केंद्र पूरी क्षमता से संचालन में आ जाएगा. इसके बाद राजस्थान की परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़कर 5900 मेगावाट तक पहुंच जाएगी.
- 42 हजार करोड़ की लागत से बनने वाली यह परियोजना राजस्थान की दूसरी बड़ी न्यूक्लियर पावर यूनिट होगी.
- परियोजना की कुल क्षमता 2800 मेगावाट होगी, जिसमें 4 यूनिट शामिल होंगी.
- पहली यूनिट से 700 मेगावाट बिजली उत्पादन 2032 तक शुरू हो सकता है.
- 2036 तक सभी यूनिट चालू होने के बाद राजस्थान की परमाणु ऊर्जा क्षमता 5900 मेगावाट होगी.
मल्टी-लेयर सुरक्षा प्रणाली की होगी व्यवस्था
माही-बांसवाड़ा परियोजना को न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) विकसित कर रहा है. यह केंद्र भारत में विकसित प्रेसराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (PHWR) तकनीक पर आधारित होगा. इसकी खासियत यह है कि इसमें मल्टी-लेयर सुरक्षा प्रणाली होगी, ताकि किसी भी तरह की दुर्घटना की आशंका जीरो हो. साथ ही, यहां वेस्ट मैनेजमेंट की अत्याधुनिक व्यवस्था होगी जिससे परमाणु कचरे का सुरक्षित निस्तारण किया जा सके. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस परियोजना से अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सुरक्षा और पारदर्शिता कायम होगी.

हजारों लोगों को मिलेगा रोजगार
निर्माण चरण में इस परियोजना से 10 से 15 हजार श्रमिकों को रोजगार मिलेगा. वहीं, संचालन शुरू होने के बाद लगभग 5 हजार लोगों को स्थायी रोजगार उपलब्ध होगा. बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जैसे आदिवासी बहुल और अपेक्षाकृत पिछड़े जिलों के लिए यह परियोजना विकास की नई किरण मानी जा रही है. परियोजना से न केवल बिजली बल्कि बेहतर सड़कें, स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा संसाधन भी क्षेत्र में बढ़ेंगे. साथ ही, स्थिर बिजली आपूर्ति से लघु उद्योग और कृषि आधारित उद्योग को भी गति मिलेगी.
- माही नदी किनारे 623 हेक्टेयर भूमि पर यह केंद्र स्थापित किया जा रहा है.
- इसमें भारत निर्मित प्रेसराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर तकनीक का इस्तेमाल होगा.
- निर्माण चरण में 10-15 हजार और संचालन में करीब 5 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा.
- यह परियोजना वागड़ क्षेत्र में विकास, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को गति देगी.
- परमाणु ऊर्जा से भारत के 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को मजबूत आधार मिलेगा.
राजस्थान पहले से ही सौर और पवन ऊर्जा का बड़ा उत्पादक है. लेकिन इन पर मौसम और समय की निर्भरता रहती है. इसके मुकाबले परमाणु ऊर्जा स्थिर और निरंतर बिजली उपलब्ध कराती है. विशेषज्ञ बताते हैं कि माही-बांसवाड़ा परियोजना से मिलने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा राजस्थान को मिलेगा. इससे न केवल घरेलू उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी, बल्कि उद्योगों और सिंचाई के लिए भी विश्वसनीय आपूर्ति संभव हो सकेगी.
स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत का बढ़ता कदम
भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है. इस दिशा में परमाणु ऊर्जा को सबसे भरोसेमंद स्वच्छ विकल्प माना जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन लगभग शून्य कार्बन उत्सर्जन के साथ होता है. इसलिए यह परियोजना पारंपरिक बिजलीघरों की तुलना में पर्यावरण के लिए अधिक सुरक्षित और टिकाऊ साबित होगी.
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