वंचित बहुजन आघाडी क्या इस लोकसभा चुनाव में भी महाविकास आघाडी को सीटों से वंचित कर देगी? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि शिव सेना (ठाकरे), कांग्रेस और एनसीपी (शरद) वाली पार्टियों की महाविकास आघाडी के साथ वंचित बहुजन आघाडी का गठबंधन नहीं हो सका है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वंचित बहुजन आघाडी के साथ कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन नहीं हो सका था, जिसका बडा खामियाजा दोनों पार्टियों को उठाना पड़ा. वंचित बहुजन आघाडी इस बार महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 35 पर अपने उम्मीदवार उतार रही है.
वंचित बहुजन आघाडी डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की बनाई हुई एक राजनीतिक पार्टी है जो कि पिछड़े वर्ग के वोटरों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. पार्टी आंबेडकर और फुले के विचारों पर चलने का दावा करती है और इस चुनाव के लिए उसका मकसद बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करना है. साल 2018 में पार्टी के गठन के बाद इस पार्टी ने 2019 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था. चुनाव से पहले आंबेडकर ने औवैसी बंधुओं की पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर लिया था. इस गठबंधन ने राज्य की सभी 48 सीटों पर चुनाव लड़ा था. असदुद्दीन ओवैसी ने अपना सिर्फ एक ही उम्मीदवार औरंगाबाद में उतारा लेकिन महाराष्ट्र के कई इलाकों में जाकर आंबेडकर की पार्टी के लिए प्रचार किया. दलित और मुस्लिमों की राजनीति करने वाली इन दो पार्टियों के साथ आने से कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन बेचैन हो गया क्योंकि इन पार्टियों के मतदाता भी इन्हीं तबकों से आते हैं.
जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो कांग्रेस-एनसीपी को जो डर था वही हुआ, दलित और मुस्लिम वोटों के बंटने के कारण कई सीटों पर उनकी हार हुई. बीजेपी-शिव सेना गठबंधन को 41 सीटें मिलीं, जबकि एनसीपी को 5 और कांग्रेस को सिर्फ एक. एआईएमआईएम ने जिस एक सीट औरंगाबाद पर अपना उम्मीदवार उतारा था, वहां उसकी जीत हुई. वंचित बहुजन आघाडी एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन कई सीटों पर उसके उम्मीदवारों की वजह से कांग्रेस और एनसीपी को हार झेलनी पड़ी. वंचित के उम्मीदवार कई सीटों पर दूसरे या तीसरे नंबर पर थे. 17 ऐसी सीटें थीं जहां उसके उम्मीदवारों ने 80 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए. कुल वोटों का 14 फीसदी हासिल करके वंचित बहुजन आघाडी राज्य में पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी बन गई.
वंचित बहुजन आघाडी पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप
साल 2019 में ही हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी वंचित ने 288 कुल सीटों में से 234 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन जीत एक पर भी हासिल नहीं हुई थी. कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं की ओर से वंचित पर बीजेपी के बी टीम होने और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को हराने की खातिर बीजेपी से सुपारी लेने के भी आरोप लगाए गए.
उद्धव ठाकरे ने पिछले साल ही भांप लिया था कि गैस सिलेंडर के चुनाव चिन्ह वाली वंचित पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाडी के लिए स्थिति विस्फोटक बना सकती है. इसलिए उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी के साथ आंबेडकर की कटुता खत्म कराने के लिए पहल की और आंबेडकर को महाविकास आघाडी के साथ आने के लिए मना लिया. हाल ही में सीट बंटवारे के लिए हुई बैठकों में प्रकाश आंबेडकर और उनके प्रतिनिधियों ने हिस्सा भी लिया लेकिन बात बन नहीं पाई. गठबंधन में उन्हें सिर्फ 2 से 3 सीटें दी जाने की पेशकश की गई लेकिन आंबेडकर ज्यादा सीटें चाहते थे. इसके अलावा उन्होंने कई तरह की शर्तें भी रख दीं थीं जो कि बाकी घटक दलों को मंजूर नहीं थीं. आखिरकार आंबेडकर अलग हो गए और उन्होंने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया, हालांकि नागपुर, अमरावती और कोल्हापुर समेत पांच सीटें ऐसी हैं जिन पर वंचित ने महाविकास आघाडी का समर्थन किया है.
कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियां अपने यहां हुई बगावतों और नेताओं के विरोधी खेमे में पलायन से पहले ही परेशान हैं. ऐसे में वंचित बहुजन आघाडी ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दीं हैं और बीजेपी का खेमा इसे अपने लिए एक शुभ संकेत मान रहा है.
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