महाराष्ट्र में COVID-19 महामारी के तहत विशेष अधिनियमों के तहत आरोपित कैदियों को अंतरिम पेरोल देकर रिहाई के लिए दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. ये याचिका मेधा पाटकर और उनके संगठन, नेशनल एलायंस ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स, के साथ सामाजिक कार्यकर्ता मीरा सदानंद कामथ ने दायर की थी.
याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट के 5 अगस्त के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इस फैसले में हाई कोर्ट ने कैदियों के लिए राज्य वर्गीकरण को बरकरार रखा था जिन्हें COVID-19 के प्रकोप के मद्देनजर आपातकालीन पैरोल पर रिहा किया जाना है. राज्य द्वारा गठित हाई पावर कमेटी ने ये तय किया था कि जो कैदी विशेष कानून के तहत जेल में हैं या गंभीर श्रेणी के अपराध में विचाराधीन हैं उनको पेरोल पर रिहा नहीं किया जाएगा.
याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई जिसमें महाराष्ट्र राज्य उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों को बरकरार रखा गया है कि उन कैदियों आपातकालीन पैरोल पर रिहा न करे, जिन्हें एनडीपीएस अधिनियम, यूएपीए, मकोका आदि जैसे विशेष अपराधों के तहत रखा गया है.
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा कि वह हाई पावर्ड कमेटी को निर्देश दें कि वह महाराष्ट्र के जेलों में बंद 17642 अंडरट्रायल कैदियों और 11,000 सजायाफ्ता व्यक्तियों के मामलों पर पुनर्विचार करे, जो मामले की अंतिम सुनवाई के लिए जेल में बंद हैं.
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