बुलढाणा जिले के चार गांवों के निवासियों द्वारा स्थानीय स्तर पर सुविधाओं के अभाव का आरोप लगाते हुए पड़ोसी मध्य प्रदेश में विलय की मांग किए जाने के कुछ दिन बाद महाराष्ट्र सरकार ने वहां सड़क निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी है. बुलढाणा के जलगांव जामोद तालुका के चार गांवों भिंगारा, गोमाल-एक, गोमाल-दो और चालिस्तापरी के लोगों ने पिछले सप्ताह जिला प्रशासन को एक पत्र लिखकर गांवों के मध्य प्रदेश में विलय की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि वे पिछले 75 साल से अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं.
बुलढाणा के गांवों के निवासियों की इस मांग से पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र के साथ सीमा विवाद को लेकर तनाव के बीच हाल में दावा किया था कि दक्षिणी महाराष्ट्र के सांगली जिले के कुछ गांव एक समय पानी की गंभीर समस्या के कारण कर्नाटक में शामिल होना चाहते थे.
महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद ने भले ही दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को केंद्र में ला दिया हो, लेकिन महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा से सटे 14 विवादित गांवों में रहने वाले लोग इस बहस से चिंतित नजर नहीं आते, क्योंकि वे दोनों पड़ोसी राज्यों द्वारा लागू की गई योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं.
इन गांवों के निवासियों का कहना है कि अगर स्थानीय सरकार उन्हें उनके खेत का मालिकाना हक देती है तो उन्हें दोनों राज्यों में से किसी के साथ जाने में कोई समस्या नहीं है.
इस बीच, बुलढाणा के चार गांवों के लोगों ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर गांवों के मध्य प्रदेश में विलय की मांग की थी.
भिंगारा सरपंच राजेश मोहन ने छह दिसंबर को लिखे पत्र में भी कहा था कि इन गांवों के निवासियों को अनुसूचित जाति से संबंधित होते हुए भी अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र प्राप्त करने में कठिनाई होती है.
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल और भिंगारा गांव निवासी सरदास अवासे ने कहा कि पत्र दिए जाने के बाद जलगांव जामोद से विधायक संजय कुंते ने 12 दिसंबर को तीन कोठी से भिंगारा गांव तक सड़क निर्माण का काम शुरू करवा दिया. उसने कहा कि जिला प्रशासन ने जाति प्रमाण पत्र वितरण भी शुरू कर दिया और अभी तक ये दस्तावेज कुछ गांवों को दिए गए हैं.
अवासे ने कहा, ‘‘यह अच्छा कदम है, लेकिन सभी जनजातीय निवासियों को जाति प्रमाण पत्र वितरित किए जाने चाहिए. यह एक बहुत पुरानी एवं अहम मांग है.''
उसने दावा किया कि उनके गांव से सिर्फ डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल गांवों में बिजली जैसी सभी बुनियादी सुविधाएं हैं और वहां के निवासियों को सरकार द्वारा भूमि के पट्टे (स्वामित्व दस्तावेज) दिए गए हैं.
अवासे ने कहा, ‘‘हम अब भी बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों पर निर्भर हैं.''
तेलंगाना की सीमा से सटे महाराष्ट्र के सभी 14 विवादित गांव (महाराष्ट्र मानचित्र के अनुसार) चंद्रपुर जिले के जिवाती तालुका में स्थित हैं। वे दोनों राज्यों की मतदाता सूची में शामिल हैं.
परमडोली ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच वमन पवार ने कहा, ‘‘जब मैं बच्चा था, दोनों राज्यों (महाराष्ट्र और तेलंगाना) के बीच विवाद तभी से अनसुलझा है, लेकिन हम दोनों राज्यों की योजनाओं का लाभ ले रहे है.
उन्होंने कहा, ‘‘14 विवादित गांवों में 300-400 किसान हैं जो खेतों को स्थायी पट्टा प्रदान करने वाली किसी भी सरकार के साथ जाने के लिए तैयार हैं.''
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