महाराष्ट्र में रिश्वतखोरों के बुरे दिन आ गए हैं। राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने इस साल रिकॉर्डतोड़ कार्रवाई करते हुए कुल 1,661 रिश्वतखोरों को गिरफ्तार किया है, जो पिछले साल की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा हैं। पिछले साल यह आंकड़ा सिर्फ 764 था।
एसीबी ने रिश्वतखोरों को सिर्फ रंगे हाथ पकड़ा ही नहीं है, बल्कि उनके घरों से 133 करोड़ रुपये भी बरामद किए हैं। महाराष्ट्र एन्टी-करप्शन ब्यूरो के डीजी प्रवीण दीक्षित के मुताबिक, यह भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की जागरूकता का ही नतीजा है।
प्रवीण दीक्षित भले ही सारा श्रेय जनता को दे रहे हैं, लेकिन यह सफलता खुद उनके द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों का नतीजा है, जिनसे जनता में भरोसा बढ़ा है। इसमें विभाग की वेबसाइट और फेसबुक पेज ने अहम भूमिका निभाई है।
एक समय था, जब लोगों को रिश्वतखोरों का चेहरा तो दूर, नाम तक पता नहीं चल पाता था, लेकिन आज फोटो के साथ सारी जानकारी वेबसाइट और फेसबुक पेज पर क्लिक करते ही मिल जाती है। इतना ही नहीं, किस केस का क्या स्टेटस है और किस मामले पर मुकदमा चलाने के लिए अभी तक सरकारी अनुमति नहीं मिली है, ऐसी तमाम जानकारियां वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। यहां तक कि वेबसाइट पर ऑनलाइन शिकायत की भी सुविधा है।
यही वजह है कि इस साल रिश्वतखोरी के 1,230 मामले दर्ज हुए, जिनके तहत 1,661 घूसखोर पकड़े जा चुके हैं और उनके पास से 133 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी भी बरामद की गई है। एसीबी के मुताबिक, रिश्वतखोरी के सबसे अधिक मामले राजस्व विभाग के कर्मियों के खिलाफ दर्ज हुए हैं। राज्य की पुलिस दूसरे नंबर पर है। शनिवार को ही पंढरपुर में एक कार्यक्रम के दौरान एसीबी के डीजीपी ने मुंबई बीएमसी का उल्लेख करते हुए कहा कि मुंबई में मकान की आसमान छूती कीमतों की एक वजह बीएमसी में व्याप्त भ्रष्टाचार भी है।
पहले अक्सर जहां छोटे सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ ही लोग शिकायत करने की हिम्मत जुटा पाते थे, वहीं अब बड़े बाबुओं और मंत्रियों के खिलाफ भी लोग आ रहे हैं। लेकिन सरकारी बाबुओं के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए जरूरी अनुमति मिलना एक बड़ी बाधा है। राज्य में नई सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हालांकि मंजूरी देने में तेजी लाने का वादा किया है, लेकिन आज भी 454 मामले सरकारी अनुमति के इंतजार में लंबित पड़े हुए हैं। वैसे एसीबी की असली चुनौती तो अजीत पवार, सुनील तटकरे और छगन भुजबल जैसे राज्य के पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच को अंजाम देना है, जो निश्चित तौर पर आसान नहीं है।
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