देश में इन दिनों किसान आंदोलन सुर्खियों में हैं. हर सरकार बढ़-चढ़कर किसान हितैषी होने का दावा कर रही है. इस बहाने उनकी बुनियादी दिक्कतों पर भी बहस शुरू हुई है. नकली खाद, बीज से लेकर भ्रष्ट सिस्टम तक लेकिन एक विभाग चर्चा से अछूता है. जो किसानों के नाम पर बनाया गया किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग. मध्यप्रदेश में इस विभाग में हजारों पद खाली हैं, एक दो साल नहीं, पूरे 31 सालों से. यकीन करेंगे कि 1990 से कृषि विभाग में कोई सीधी भर्ती नहीं हुई है.आलम ये है सरकारी आंकड़ों के मुताबिक-कृषि विभाग में 14572 स्वीकृत पद हैं, जिसमें 8132 भरे हैं यानी 40 फीसदी से ज्यादा. वैसे कुछ दिनों पहले कृषि विभाग की कुछ परीक्षाएं हुई थीं, लेकिन मामला धांधली में फंसा एनडीटीवी ने इसे उजागर किया सरकार को परीक्षाएं निरस्त करनी पड़ीं, कुछ मामले कोर्ट में लंबित हैं, सरकार ने वैसे हाईकोर्ट में लंबित तीन मामलों को छोड़कर बाकी सभी विभागों में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है.
नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने आश्वासन दिया कि निश्चित रूप से 3 परीक्षाओं को छोड़कर जहां खाली हैं वहां पद भरे जाएंगे. लेकिन कृषि विभाग में कुछ पदों से हालात समझिए, अपर संचालक के स्वीकृत पद 11 हैं, 5 पद ही भरे हैं, 6 खाली हैं. संयुक्त संचालक के 22 पद हैं, 5 पद ही भरे हैं, 17 खाली हैं. उप संचालक के 143 पद हैं, 90 पद भरे हैं, 53 खाली हैं. सहायक संचालक के 736 पद हैं, 474 भरे हैं, 262 खाली हैं.
वरिष्ठ कृषि विभाग अधिकारी यानी एसएडीओ जो ब्लॉक स्तर पर कृषि विभाग की कमान संभालते हैं. उनके स्वीकृत पद 759 हैं, लेकिन नियुक्ति 456 पर है, 303 खाली हैं. एडीओ के 1253 पद हैं, 432 भरे हैं, 821 खाली हैं. सबसे अहम गांव-गांव तक कृषि विभाग की योजनाओं को पहुंचाने वाले ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी आरएईओ के 6371 पद हैं, सिर्फ 712 भरे हैं, 5659 खाली हैं. किसान कांग्रेस मध्यप्रदेश के अध्यक्ष केदार सिरोही कहते हैं, मध्यप्रदेश की सरकार किसानों के वेलफेयर के लिए कई भाषण देती है लेकिन किसानों तक जो तकनीक पहुंचाना चाहिए, जिस विभाग को ये काम करना चाहिए उस कृषि विभाग में पद भरे ही नहीं गए हैं. एक जिले में जहां 10-15 पद हैं वहां 2 लोग काम कर रहे हैं ऐसे में कैसे कृषि का विकास होगा ... पूरी व्यवस्था चरमराई है. मध्यप्रदेश में 51000 से ज्यादा गांव हैं यानी एक आरएईओ के कंधे पर 73 गांवों की जिम्मेदारी.
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