हर साल की तरह इस साल भी दिल्ली में प्रदूषण का संकट फिर गहराता जा रहा है. सरकार ने शुक्रवार से GRAP-III लागू कर दिया है लेकिन प्रदूषण संकट के घटने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं. 72 साल पहले 5 से 8 दिसंबर, 1952 को लंदन को प्रदूषण के अप्रत्याशित संकट से जूझना पड़ा था. लेकिन आज प्रदूषण के मोर्चे पर हालत बदल गए हैं, और लंदन किस तरह काफी हद टेक इस संकट को नियंत्रित करने में कामयाब रहा है, शुभांग और हिमांशु शेखर की रिपोर्ट में पढ़िए.
जब धुएं और कोहरे से घिरा लंदन
दिन था 5 दिसम्बर, 1952. लंदन शहर अचानक धुएं और कोहरे से घिरने लगा. हालात इतने ख़राब हो गए कि अगले तीन-चार दिन तक विज़िबिलिटी घटकर सिर्फ एक मीटर रह गयी. लंदन में जाड़ों में कोहरा एक आम बात थी, लेकिन 72 साल पहले इस भयावह स्मॉग ने भयंकर कोहराम मचाया.
लंदन सिटी एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक लंदन शहर में अप्रत्याशित स्मॉग का कहर दिसम्बर 1952 में 5 दिन तक चला था. इस भयानक स्मॉग की वजह से 4000 तक अतिरिक्त मौतें हुईं. धुएं और कोहरे की वजह से स्मॉग संकट की मुख्य वजह थी घरेलू फायरप्लेस, बिजली स्टेशनों और भट्टियों में बड़ी मात्रा में कोयले का जलना. WHO की एयर क्वालिटी गाइडलाइन के मुताबिक सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा 40 µg/m3 से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. लेकिन लंदन में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा 3 दिनों तक औसतन 3,000 to 4,000 µg/m3 रिकॉर्ड की गयी.
धुएं का स्तर 4,460 µg/m3 तक पहुंचा
धुएं का स्तर 4,460 µg/m3 तक पहुंच गया जबकि WHO की लीगल लिमिट सिर्फ 50 µg/m3 है. ज़ाहिर है, इस भयंकर प्रदूषण हादसे ब्रिटिश सरकार के लिए एक बड़ी चेतावनी थी. इस अप्रत्याशित हादसे ने ब्रिटिश सरकार को बड़े स्तर पर पहल करने के लिए मज़बूर किया. 1956 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में क्लीन एयर एक्ट पारित किया गया. अधिनियम ने पहली बार स्थानीय अधिकारियों को धुंआ नियंत्रण क्षेत्र घोषित करने की अनुमति दी.
High-sulphur coal पर प्रतिबन्ध के बाद आम लोगों को घरेलु फायरप्लेस को गैस पर शिफ्ट करने में मदद के लिए अनुदान की शुरुआत हुई. कारखानों और भट्टियों से निकलने वाले गहरे धुएं को नियंत्रित करने के लिए सख्ती से पहल किया गया. Clean Air Act 1968 और Environment Act 1995 ने भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण उपायों की नींव रखी. आज इन कानूनों के तहत लंदन में कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों के बंद होने, उनके स्थानांतरण, भारी उद्योग की संख्या में कटौती, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बड़े स्तर पर विस्तार और गैस जैसे स्वच्छ ईंधन के ज्यादा उपयोग से लंदन को पिछले सात दशक में 1952 जैसे प्रदूषण संकट से नहीं निपटना पड़ा है.
गाड़ियों के लिए लागू की गई ये पॉलिसी
2009 से पूरे लंदन में भारी गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए Low Emission Zones पॉलिसी लागू है. 2019 से सेंट्रल लंदन में प्रदूषण करने वाली गाड़ियों पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए Ultra-Low Emission Zone तैयार किया गया है.
नतीजा ये हुआ है कि लंदन शहर में सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले दिन दिल्ली के सबसे अच्छे दिनों से बेहतर हैं. जानकर मानते हैं कि भारत सरकार और दिल्ली सरकार को मिलकर इस बढ़ते प्रदूषण संकट से निपटने के लिए इसी तर्ज पर बड़ी रणनीति बनानी होगी, नए कानून बनाने होंगे और उन्हें सख्ती से लागू भी करना होगा.
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