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This Article is From Apr 12, 2024

CSDS-Lokniti Survey: मोदी सरकार के तीसरे टर्म के लिए राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा कितना मददगार?

CSDS-Lokniti 2024 Pre-Poll Survey में शामिल 34 फीसदी लोगों ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्‍छेद 370 के प्रावधानों को निरस्‍त करने को एक अच्‍छा कदम बताया है.

CSDS-Lokniti Survey: मोदी सरकार के तीसरे टर्म के लिए राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा कितना मददगार?
नई दिल्‍ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए भाजपा (BJP) और उसके सहयोगी दल '400 पार के नारे' के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं. लगातार तीसरी बार जबरदस्‍त बहुमत से सत्ता में लौटने की बीजेपी की कोशिश कुछ मुद्दों पर टिकी नजर आती है, इनमें सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर (Ram Mandir) का है. राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के एजेंडे में सालों से शामिल रहा है. राम मंदिर बन चुका है और पार्टी इस मुद्दे को भुनाने में भी जुटी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इस साल 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्‍ठा की थी. वहीं, कई विपक्षी दलों ने इस समारोह से दूरी बनाई थी. ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है कि भाजपा और एनडीए के लिए राम मंदिर और हिंदुत्‍व का मुद्दा कितना कारगर होगा? इस सवाल का जवाब सीएसडीसी और लोकनीति प्री पोल सर्वे (CSDS-Lokniti 2024 pre-poll survey) के जरिए तलाशने की कोशिश की गई है.

सीएसडीसी और लोकनीति के सर्वे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. सर्वे में खुलासा हुआ कि 10 में से 8 हिंदू धार्मिक बहुलता को अपनाते हैं और महज 11 फीसदी लोग ही भारत को हिंदुओं के लिए देखते हैं. आश्‍चर्यजनक रूप से पुरानी पीढ़ी के 73 फीसदी लोगों की तुलना में 81 फीसदी युवा विविधता को प्राथमिकता दे रहे हैं. 

सर्वे में भाई-भतीजावाद को लेकर भी सवाल पूछा गया था. 25 फीसदी लोग भाजपा को कांग्रेस से कम भाई-भतीजावादी मानते हैं और 24 फीसदी ने इसे कांग्रेस के समान ही भाई-भतीजावादी बताया. वहीं 15 फीसदी ने भाजपा को बिलकुल भाई-भतीजवादी नहीं माना और 36 फीसदी ने इस पर अपनी राय ही नहीं दी. 

राम मंदिर और हिंदू पहचान, मिला ये जवाब 
सर्वे में लोगों से पूछा गया कि क्‍या राम मंदिर ने हिंदू पहचान को मजबूत किया है. इसे लेकर 48 फीसदी ने माना कि राम मंदिर ने हिंदू पहचान को मजबूत करने में मदद की है तो 25 फीसदी ने कहा कि इसका ज्‍यादा प्रभाव नहीं हुआ है. वहीं 24 फीसदी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

54 फीसदी हिंदुओं ने स्‍वीकारा कि राम मंदिर के निर्माण से हिंदू पहचान को मजबूत करने में मदद मिलेगी तो 25 फीसदी हिंदुओं ने कहा कि इससे ज्‍यादा प्रभाव नहीं होगा और 18 फीसदी ने अपनी राय नहीं दी. वहीं 24 फीसदी मुस्लिमों ने माना कि इससे हिंदू पहचान मजबूत हुई है तो 21 फीसदी ने इससे इनकार किया और 50 फीसदी ने इस पर अपनी राय ही नहीं दी. वहीं अन्‍य अल्‍पसंख्‍यकों में 22 फीसदी ने इससे हिंदू पहचान को मजबूती मिलना स्‍वीकार किया तो 36 फीसदी ने इनकार किया, वहीं 30 फीसदी ने जवाब नहीं दिया. 

34 फीसदी ने बताया अच्‍छा कदम 
अनुच्‍छेद 370 के प्रावधानों को निरस्‍त करने को 34 फीसदी ने एक अच्‍छा कदम बताया, वहीं 16 फीसदी ने इसे अच्‍छा कदम तो बताया लेकिन कहा कि इसे सही ढंग से नहीं किया गया तो 8 फीसदी ने इसे बुरा कदम बताया. 22 फीसदी ने अपनी राय नहीं दी और 20 फीसदी ऐसे भी थे जो इससे अवगत ही नहीं थे. 

लोकसभा चुनाव 2024 में इन मुद्दों के हावी रहने की संभावना 
बेरोजगारी- 27%
महंगाई- 23%
विकास- 13%
भ्रष्टाचार- 8%
अयोध्या का राम मंदिर- 8%
हिंदुत्व- 2%
भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि- 2%
आरक्षण- 2%
अन्य मुद्दे - 9%
पता नहीं- 6%

बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई अहम चुनावी मुद्दे
CSDS-लोकनीति के प्री पोल सर्वे में ये बात सामने आई है कि बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार और लोगों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति जैसे मुद्दे लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के लिए अहम मुद्दे हैं. इन्हीं मुद्दों पर जनता मतदान करेगी. 

CSDS-लोकनीति ने इस बात पर सर्वे किया है कि पिछले पांच सालों की अपेक्षा वर्तमान में नौकरियां पाना कितना आसान या मुश्किल है. सर्वे में शामिल 62 फीसदी लोगों का ये मानना है कि पिछले पांच सालों की तुलना में वर्तमान में नौकरियां पाना मुश्किल हो गया है. साथ 18 फीसदी लोगों का मानना है कि पिछले पांच सालों की तुलना में आज भी नौकरियां पाना उतना ही मुश्किल या आसान है. यानी कोई बदलाव नहीं हुआ है. 

दिलचस्प बात ये है कि 12 फीसदी लोगों का ये मानना है कि पहले की तुलना में वर्तमान में नौकरियां पाना आसान हुआ है. यानी लगभग दो तिहाई लोगों का मानना है कि मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल में नौकरी पाना कठिन हुआ है. 

59 फीसदी लोगों ने किसानों का लिया पक्ष
सर्वे में पंजाब के किसानों के दिल्ली चलो कूच पर लोगों से सवाल किया गया था. सर्वे में शामिल 63 फीसदी किसानों का मानना है कि किसानों का अपनी वास्तविक मांगों के लिए विरोध प्रदर्शन करना सही है. जबकि 11 फीसदी किसानों का मानना है कि केंद्र सरकार के खिलाफ ये एक साजिश थी. हैरानी वाली बात है कि सर्वे में शामिल 12 फीसदी लोग किसानों के आंदोलन से वाकिफ ही नहीं थे. 

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