'घर में एक रुपइया तक नहीं है कि कैसे हम लोग आटा ले चावल या सब्जी खाएं..जो हमरा घरवाला है वो वहां फंस गए हैं वो लोग वहां खा पी रहे हैं और हम लोग का करें...' मोबाइल के स्पीकर में पत्नी की ये बातें सुनकर हापुड़ की आइसक्रीम फैक्टरी में काम करने वाले सुग्रीव चौधरी की आंखें छलछला आईं. ऐसे ही एक मुश्किल हालात की कहानी आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करने वाले दर्जनभर मजदूरों की है और राहत इस बात की है कि इस कठिन दौर में इन दर्जन भर हिन्दू मजदूरों की मदद एक मुस्लिम गांव कर रहा है. लेकिन हापुड़ और बिहार के बीच की ये दूरी शायद इन मजदूरों को अंदर ही अंदर कचोट रही है कि काश कुछ ऐसा हो जाए कि वे अपने परिवार तक पहुंच जाए. सुग्रीव चौधरी अपने दस साथियों समेत हापुड में हैं और इनकी बीवी, चार बच्चे और एक बूढ़ी मां पश्चिमी चंपारण के छोटे से गांव पतिलार में है. सुग्रीव, नंदलाल चौधरी समेत दस मजदूर फिलहाल हापुड़ के सरावनी गांव में रुके हैं लेकिन इनका परिवार हजार किमी दूर पतिलार और बिसरवा जैसे गांवों में रहता है। जहां परिवार के पास न तो राशन है और न ही पैसे..
सुग्रीव कहते हैं 'हमें यहां नहीं दिक्कत है लेकिन हमारा परिवार बिहार में भूखों मर रहा है. मेरे परिवार में बीबी है, चार छोटे-छोटे बच्चे हैं लेकिन कुछ नहीं हो रहा है. फोन से बात होती है तो परिवार वाले रोते हैं कहते हैं हम लोग भूखों मर रहे हैं. हम लोग तो पैदल ही चले जाएंगे.' बीते महीने लगे लॉकडाउन के बाद ये लोग भूखे प्यासे पैदल ही चंपारण जा रहे थे लेकिन मुस्लिम आबादी वाले इस गांव के लोगों ने समझाया. शादाब चौधरी जैसे लोगों ने अपने रिश्तेदार का घर, महीने भर का राशन, गैस चूल्हा तक दे दिया. तब से ये मजदूर गांव में ही रुके हैं. लेकिन जैसे-जैसे लॉकडाउन बढ़ रहा है इन मजदूरों का बिहार में रहने वाला परिवार दाने दाने को मोहताज हो रहा है.
गांव के बड़े बुजुर्ग इन मजदूरों को अपने घर में बुलाकर समझा रहे हैं. इलाके के दरोगा भी आकर लॉकडाउन की सख्ती बता रहे हैं लेकिन बिहार में भुखमरी की दहलीज पर बैठे अपने परिवार के लिए अब सुग्रीव, नंदलाल जैसे मजदूर हापुड़ के सनावरी गांव की दहलीज छोड़कर पैदल ही बिहार जाने की जिद कर रहे हैं.
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