कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी के बीच ऐसे बहुत से वाक्ये सामने आए, जिसमें प्रभावित लोगों को अनजान शख्स से मदद मिली हो. कुछ इसी तरह का मामला संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में रहने वाले कृष्णदास और उनकी पत्नी दिव्या का भी है. ल्यूकेमिया की वजह से उनके चार साल बेटे वैष्णव कृष्ण दास की 8 मई को मौत हो गई थी. वह पूरे रीति-रिवाज के साथ अपने बेटे का अंतिम सरकार करने के लिए केरल आना चाहते हैं लेकिन, काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली. तब असम के एक डॉक्टर ने उनकी मदद की और उनके बेटे के शव को केरल लाने में मदद की.
कृष्णदास ने एनडीटीवी को बताया, "हम हैरान थे. हम नहीं पता था कि क्या हो रहा है. 15 दिन पहले ही बेटे की ब्लड कैंसर होने की जानकारी मिली और हमने उसे खो दिया. हम पूरे धार्मिक संस्कारों के साथ अपने बेटे का अंतिम संस्कार करना चाहते थे. हमने बेटे के शव को विशेष विमान से ले जाने की कोशिश की और भारतीय दूतावास भी हमारी मदद कर रही थे, लेकिन बहुत लोग थे जो वापस जाने की कतार में थे और विशेष विमानों की संख्या सीमित थी. हम उम्मीद खो चुके थे. हमारे बेटे का शव अस्पताल के मुर्दाघर में रखा था. उसी समय असम के डिब्रूगढ़ में रहने वाले एक अंजान शख्स से हमें मदद मिली."
पेशे से डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता भास्कर पापुकन गगोई ने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया के जरिये परिवार के बारे में जानकारी हुई. उन्होंने कहा, "मैंने यूएई में अपने दोस्तों से संपर्क किया. यूएई के एक शीर्ष अखबार में उनकी खबर छपी थी. मैंने अखबार के रिपोर्टर से संपर्क किया और पीड़ित के एक रिश्तेदार से मामले से जुड़ी सारी जानकारी ली."
गगोई ने इसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर से संपर्क किया और उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया. गगोई ने बताया, "विदेश मंत्री ने त्वरित कदम उठाया. मैंने उसने 13 तारीख को संपर्क किया था और अगले दिन ही उनकी ओर से मुझे बताया गया कि सारे इंतज़ाम कर दिए गए हैं." उन्होंने कहा कि हमारे विदेश मंत्री द्वारा मेरे अनुरोध को गंभीरता से लेने और तुरंत कदम उठाने से यह संभव हो सका है.
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