जस्टिस चेलामेश्वर
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने शुक्रवार को बहुमत से यह फैसला सुनाया कि सरकार की ओर से जजों की नियुक्ति के लिए बनाया गया न्यायिक नियक्ति आयोग गैर-संवैधानिक है। जजों का यह फैसला बहुमत के आधार पर लिया गया फैसला बताया जा रहा है। पांच जजों में चार जजों की राय तो एक रही, लेकिन जस्टिस चेलामेश्वर की राय भिन्न थी और उन्होंने अपनी राय में सरकार के एनजेएसी के फैसले को सही बताया था।
कॉलेजियम सिस्टम पर ही सवाल उठाए
जस्टिस चेलामेश्वर ने अपने चार साथी जजों की बात से इत्तेफाक नहीं रखा। उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम पर ही सवाल उठाए। आदेश में दिनाकरण केस को भी शामिल किया कि कैसे दिनाकरण को हाईकोर्ट का जज बनाया गया।
कॉलोजियम सिस्टम में जजों की जवाबदेही नहीं होती
जस्टिस चेलामेश्वर ने अपने आदेश में कहा है कि कॉलोजियम सिस्टम में जजों की जवाबदेही नहीं होती और पिछले 20 साल में ऐसे कई उदाहरण आए हैं जब हाईकोर्ट से किसी जज का नाम कॉलेजियम को भेजा गया, लेकिन वहां से उसे खारिज कर दिया गया।
किसी को जजों की नियुक्ति के बारे में कुछ जानकारी नहीं होती
ये भी साफ है कि किसी को जजों की नियुक्ति के बारे में कुछ जानकारी नहीं होती, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के उन जजों को भी जो चीफ जस्टिस नहीं बन पाते।
उन्होंने लिखा है कि सुनवाई के दौरान बार-बार ये बात होती रही कि इस फैसले का इंतजार पूरे देश को है, पूरी दुनिया को है। लेकिन सच्चाई ये है कि आम लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है। लोगों को ऐसा जज चाहिए जो उनके मामलों का जल्द निपटारा करे और उनमें भरोसा पैदा करे।
इसी के चलते वो आयोग के लिए संसोधन को सही ठहराते हैं लेकिन बहुमत से फैसला हो चुका है इसलिए वो इसकी संवैधानिक वैधता के मुददे पर नहीं जाना चाहते।
कॉलेजियम सिस्टम पर ही सवाल उठाए
जस्टिस चेलामेश्वर ने अपने चार साथी जजों की बात से इत्तेफाक नहीं रखा। उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम पर ही सवाल उठाए। आदेश में दिनाकरण केस को भी शामिल किया कि कैसे दिनाकरण को हाईकोर्ट का जज बनाया गया।
कॉलोजियम सिस्टम में जजों की जवाबदेही नहीं होती
जस्टिस चेलामेश्वर ने अपने आदेश में कहा है कि कॉलोजियम सिस्टम में जजों की जवाबदेही नहीं होती और पिछले 20 साल में ऐसे कई उदाहरण आए हैं जब हाईकोर्ट से किसी जज का नाम कॉलेजियम को भेजा गया, लेकिन वहां से उसे खारिज कर दिया गया।
किसी को जजों की नियुक्ति के बारे में कुछ जानकारी नहीं होती
ये भी साफ है कि किसी को जजों की नियुक्ति के बारे में कुछ जानकारी नहीं होती, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के उन जजों को भी जो चीफ जस्टिस नहीं बन पाते।
उन्होंने लिखा है कि सुनवाई के दौरान बार-बार ये बात होती रही कि इस फैसले का इंतजार पूरे देश को है, पूरी दुनिया को है। लेकिन सच्चाई ये है कि आम लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है। लोगों को ऐसा जज चाहिए जो उनके मामलों का जल्द निपटारा करे और उनमें भरोसा पैदा करे।
इसी के चलते वो आयोग के लिए संसोधन को सही ठहराते हैं लेकिन बहुमत से फैसला हो चुका है इसलिए वो इसकी संवैधानिक वैधता के मुददे पर नहीं जाना चाहते।
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