ललित मोदी का फाइल फोटो...
नई दिल्ली:
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और ललित मोदी के बीच कथित सांठगांठ का विवाद और गहरा गया है। मोदी के पासपोर्ट मामले में हाइकोर्ट फैसले के खिलाफ एनडीए की केंद्र सरकार ने न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में अपील की बल्कि हाइकोर्ट के फैसले से पहले ही मोदी की यात्रा दस्तावेज भी वापस कर दिए। ललित मोदी के मामले में बीजेपी की दलील है कि हाइकोर्ट ने मोदी का पासपोर्ट रद्द करने का फ़ैसला ख़ारिज कर दिया था।
हालांकि इसी केस में सरकारी वकील रहे जतन सिंह कहते हैं कि हाइकोर्ट के फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट जाने के लिहाज से ये एक फिट केस था। वैसे भी सरकार छोटे छोटे मामलों में सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाती है। विदेश मंत्रालय की ओर से पेश हुए जतन सिंह कहते हैं कि उनकी राय में सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था और ये अपील के लिए फिट केस था। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय को पार्टी नहीं बनाया गया था और विदेश मंत्रालय को ही सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था। हालांकि कानूनन ईडी भी इसकी अपील कर सकता है क्योंकि वो भी इस मामले में प्रभावित हुआ है।
दरअसल, दिल्ली हाइकोर्ट में यह मामला करीब दो साल चला। ललित मोदी ने प्रर्वतन निदेशालय यानि ईडी के समन के बाद पासपोर्ट रद्द करने के ख़िलाफ़ साल 2012 में दिल्ली हाइकोर्ट में अपील की। जनवरी 2013 में हाइकोर्ट ने याचिका रद्द कर दी।
मार्च 2013 में मोदी ने हाइकोर्ट की डबल बेंच में अपील की और 27 अगस्त 2014 को हाइकोर्ट ने सरकार के पासपोर्ट रद्द करने के फैसले को पलट दिया। हालांकि मामला यूपीए सरकार के वक्त शुरू हुआ मगर फैसला आने के तीन महीने पहले एनडीए सरकार आ गई।
हैरानी की बात यह है कि हाइकोर्ट का फ़ैसला बाद में आया, विदेश मंत्रालय ने ललित मोदी की यात्रा के दस्तावेज पहले वापस कर दिए। जतन सिंह का कहना है कुछ समझ नहीं आ रहा कि फैसले से पहले ही ऐसा क्यों किया गया।
सीपीएम का भी कहना है, सरकार को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करनी चाहिए थी। सीपीएम नेता वृंदा करात कहती हैं कि ये बात समझ से परे है कि इस मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई, लेकिन अगर सरकार अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाती है तो भी उसे इन सवालों का जवाब देना होगा कि अपील में इतनी देरी क्यों की गई और हाइकोर्ट के आदेश से पहले मोदी की यात्रा के दस्तावेज कैसे दिए गए। जाहिर है ऐसे में विदेश मंत्री पर सवाल उठना लाजिमी है।
हालांकि इसी केस में सरकारी वकील रहे जतन सिंह कहते हैं कि हाइकोर्ट के फ़ैसले पर सुप्रीम कोर्ट जाने के लिहाज से ये एक फिट केस था। वैसे भी सरकार छोटे छोटे मामलों में सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाती है। विदेश मंत्रालय की ओर से पेश हुए जतन सिंह कहते हैं कि उनकी राय में सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था और ये अपील के लिए फिट केस था। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय को पार्टी नहीं बनाया गया था और विदेश मंत्रालय को ही सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए था। हालांकि कानूनन ईडी भी इसकी अपील कर सकता है क्योंकि वो भी इस मामले में प्रभावित हुआ है।
दरअसल, दिल्ली हाइकोर्ट में यह मामला करीब दो साल चला। ललित मोदी ने प्रर्वतन निदेशालय यानि ईडी के समन के बाद पासपोर्ट रद्द करने के ख़िलाफ़ साल 2012 में दिल्ली हाइकोर्ट में अपील की। जनवरी 2013 में हाइकोर्ट ने याचिका रद्द कर दी।
मार्च 2013 में मोदी ने हाइकोर्ट की डबल बेंच में अपील की और 27 अगस्त 2014 को हाइकोर्ट ने सरकार के पासपोर्ट रद्द करने के फैसले को पलट दिया। हालांकि मामला यूपीए सरकार के वक्त शुरू हुआ मगर फैसला आने के तीन महीने पहले एनडीए सरकार आ गई।
हैरानी की बात यह है कि हाइकोर्ट का फ़ैसला बाद में आया, विदेश मंत्रालय ने ललित मोदी की यात्रा के दस्तावेज पहले वापस कर दिए। जतन सिंह का कहना है कुछ समझ नहीं आ रहा कि फैसले से पहले ही ऐसा क्यों किया गया।
सीपीएम का भी कहना है, सरकार को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करनी चाहिए थी। सीपीएम नेता वृंदा करात कहती हैं कि ये बात समझ से परे है कि इस मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई, लेकिन अगर सरकार अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाती है तो भी उसे इन सवालों का जवाब देना होगा कि अपील में इतनी देरी क्यों की गई और हाइकोर्ट के आदेश से पहले मोदी की यात्रा के दस्तावेज कैसे दिए गए। जाहिर है ऐसे में विदेश मंत्री पर सवाल उठना लाजिमी है।
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