राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में सालों पहले सारे टाइगर मार दिए गए थे. ये सभी शिकारियों के शिकार हो गए थे. इस घटना के बाद रिजर्व में बाघों को बचाने का काम जारी है. इस कार्य के लिए रिजर्व में लगे अधिकारियों को धन्यवाद देने की जरूरत है, जिनकी बदौदत बाघों की संख्या एक बार फिर रिजर्व में बढ़ गई. लेकिन अभी भी इनके सामने चुनौती बहुत से हैं.
गौरतलब है कि भारत की पहली टाइगर रिलोकेशन परियोजना के तहत साल 2008 में 28 जून को एयरफोर्स का एमआई 17 हेलीकॉप्टर सरिस्का के जंगलों में उतरा. यह किसी युद्ध अभियान से कम नहीं था. दरअसल, साल 2003 और 2004 के दौरान सरिस्का के 16 बाघ की आबादी अवैध शिकार के कारण समाप्त हो गई थी.
जनवरी 2005 तक जंगलों में सन्नाटा छा गया था. सरिस्का से बाघ पूरी तरह गायब हो गए थे. ऐसे में राजस्थान ने अवैध शिकार और वन्यजीव आपातकाल के खिलाफ रेड अलर्ट घोषित किया. फिर प्रोजेक्ट टाइगर के तहत 4 साल बाद 2008 में बाघ पुनर्वास कार्यक्रम शुरू हुआ. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान से बाघों को हवाई जहाज से उठाकर सरिस्का में स्थानांतरित कर दिया गया.
एक बाघ और दो बाघिनों को बसाया गया. बाघ विशेषज्ञ चिंतित थे. लेकिन साल 2012 में सरिस्का में दो बाघ शावक देखे गए. साल 2014 में दो और शावक दिखे. फिर बेबी बूम शुरू हो गया था. आज सरिस्का में 27 बाघ हैं.
हालांकि, बाघ विशेषज्ञों का मानना है कि सरिस्का बाघ का जीन पूल रणथंभौर जैसा ही है और बाघों के लंबे समय तक स्वस्थ रहने के लिए ब्लड लाइन का मिश्रण आवश्यक है. शायद मध्य प्रदेश से राजस्थान में बाघों का स्थानांतरण करना कारगर साबित हो सकता है.
राजस्थान में आज लगभग 100 बाघ हैं. रणथंभौर में 70 और सरिस्का में 27. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता तभी संभव है जब मानव आवास को अभयारण्यों से बाहर कर दिया जाए. राजस्थान सरकार अब बाघों को कोटा के पास मुकुंदरा में स्थानांतरित करने पर विचार कर रही है. लेकिन क्या वे सरिस्का की सफलता को दोहरा पाएंगे?
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