केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने मंगलवार को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने कोई ऐसा काम नहीं किया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमजोर हो और प्रत्येक संस्थान को संविधान द्वारा निर्धारित 'लक्ष्मण रेखा' का सम्मान करना चाहिए. रीजीजू ने यहां महाराष्ट्र एवं गोवा विधिज्ञ परिषद की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में इस आख्यान का खंडन करने की कोशिश की कि सरकार न्यायपालिका पर दबाव बढ़ा रही है.
रीजीजू ने कहा, ‘‘यह गलतफहमी है कि सरकार न्यायपालिका पर किसी तरह का दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. हम न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रख रहे हैं, बल्कि इसे मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं.'' मंत्री ने कहा, ‘‘उदारवादी होने का दावा करने वाले कुछ लोग आम लोगों के बीच यह गलतफहमी फैला रहे हैं, लेकिन इसमें कोई भी सच्चाई नहीं है.''
इस सवाल पर कि क्या सरकार न्यायपालिका के कामकाज में दखल दे रही है, रीजीजू ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि एक सवाल इसके उलट भी पूछा जा सकता है कि क्या न्यायपालिका सरकार के काम में दखल दे रही है. कानून मंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘हमारा संविधान हर संस्थान के लिए एक 'लक्ष्मण रेखा' को अनिवार्य बनाता है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने या न्यायपालिका के काम में हस्तक्षेप के लिए कुछ नहीं किया है.''
उन्होंने कहा कि अदालती मामलों की बढ़ती संख्या देश के लिए सबसे बड़ी चिंता है और इसका समाधान प्रौद्योगिकी में समाहित है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ऑनलाइन सुनवाई और ई-फाइलिंग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रहे हैं. रीजीजू ने कहा, ‘‘हालांकि, कुछ उच्च न्यायालय प्रौद्योगिकी के मामले में धीमे चल रहे हैं. मैं नाम नहीं लेना चाहता, क्योंकि यह उनके लिए अपमान की बात होगी.''
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के लिए बजट कोई मुद्दा नहीं है. रीजीजू ने कहा, 'नरेंद्र मोदी सरकार ने न्यायपालिका को मजबूत करने के लिए सब कुछ किया है. यही कारण है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी भारत में अदालतों ने काम करना बंद नहीं किया.' कार्यक्रम में उपस्थित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने रीजीजू से बम्बई उच्च न्यायालय का नाम बदलकर मुंबई उच्च न्यायालय करने के प्रस्ताव पर गौर करने का आग्रह किया.
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