
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को, उनके निर्वाचित सदस्यों को निर्देश देने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं. राज्य ने 35 वर्षों के बाद भी, कर्नाटक स्थानीय प्राधिकरण (दलबदल निषेध) अधिनियम, 1987 के तहत नियम तय नहीं किए हैं. शहर नगर परिषद (टाउन म्युनिसिपल काउंसिल), महालिंगपुरा के निर्वाचित सदस्यों से जुड़े एक मुकदमे में, अदालत ने तब तक के लिए दिशा-निर्देश जारी किए, जब तक राज्य आवश्यक नियम नहीं बना लेता. न्यायमूर्ति एन.एस. संजय गौड़ा द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि एक राजनीतिक दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को बैठक बुलाने से कम से कम पांच दिन पहले, एक विशेष तरीके से कार्य करने के बारे में अपने सदस्यों को निर्देश की एक प्रति देनी होगी. यह पार्टियों द्वारा एक विशेष तरीके से मतदान पर जारी किए गए व्हिप के लिए बेहतर है.
दिशा-निर्देश में कहा गया है ‘‘पार्टी के निर्वाचित सदस्यों के पास निर्देश के विपरीत कार्य करने की अनुमति मांगने का विकल्प होगा और इस प्रकार उन्हें अधिनियम के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकेगा.'' एक अन्य दिशा-निर्देश में कहा गया है कि निर्वाचित सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता के लिए कोई कार्यवाही उस स्थिति में शुरू नहीं की जाएगी यदि निर्वाचित निकाय की बैठक बुलाने के लिए अधिकृत प्राधिकारी को राजनीतिक दल के निर्देश की सूचना नहीं दी जाती है.
एक राजनीतिक दल के निर्देश के बारे में बैठक से पहले पांच दिनों के भीतर अधिकार प्राप्त प्राधिकारी द्वारा निर्वाचित सदस्य को सूचित किया जाना चाहिए. यदि बैठक बुलाने के संबंध में उसी तरह से नोटिस दिए जाते हैं, तो इसे सेवा माना जाएगा. संचार की सेवा कूरियर या ईमेल के माध्यम से निर्वाचित सदस्यों को निर्देश के विपरीत मतदान करने की अनुमति मांगने के लिए कम से कम पांच दिन का समय दे सकती है. ये दिशा-निर्देश तीन महिलाओं सविता, चांदनी और गोदावरी द्वारा एक याचिका दायर करने के बाद जारी किए गए थे. तीनों महिलाएं भाजपा से हैं और महालिंगपुर शहर नगर परिषद की सदस्य हैं.
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