
कर्नाटक हाईकोर्ट ने जाति आधारित सर्वेक्षण के नाम से प्रचलित सामाजिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हालांकि कोर्ट ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को निर्देश दिया कि वह जुटाए गए आंकड़ों की गोपनीयता बनाए रखने और स्वैच्छिक भागीदारी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए.
चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सी.एम. जोशी की बेंच ने सर्वेक्षण की वैधता पर सवाल उठाने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह अंतरिम आदेश जारी किया. पीठ ने आदेश में कहा कि हमें जारी सर्वेक्षण पर रोक लगाना उचित नहीं लगता. हालांकि जुटाए गए आंकड़ों का खुलासा किसी भी व्यक्ति से नहीं किया जाएगा. पिछड़ा वर्ग आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि जानकारी पूरी तरह सुरक्षित रहे और उसे गोपनीय रखा जाए.
याचिकाओं में तर्क दिया गया कि यह प्रक्रिया एक तरह से जनगणना की तरह है और नागरिकों की निजता का हनन है. राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने अदालत को आश्वासन दिया कि पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं. उन्होंने इस मामले पर एक हलफनामा पेश करने की बात कही. राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने और पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने पैरवी की.
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को आने वाले हफ्तों में अतिरिक्त लिखित दलीलें पेश करने की अनुमति दे दी. अदालत ने इस मामले पर अगली सुनवाई के लिए 2 दिसंबर की तारीख तय की है. याचिकाकर्ताओं में राज्य वोक्कालिगा संघ, वोक्कालिगा समुदाय के सदस्यों जैसे कि बेंगलुरु अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष के एन सुब्बा रेड्डी, लिंगायत समुदाय के सदस्य और अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा शामिल हैं.
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