- शिबू सोरेन का 81 साल की उम्र में सोमवार को निधन हो गया. मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
- शिबू सोरेन ने महाजनों के खिलाफ आदिवासी समाज को संगठित करते हुए राजनीतिक संघर्ष शुरू किया था.
- उन्होंने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद पर कार्यभार संभाला, लेकिन कुल 10 महीने 10 दिन ही सीएम रहे.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संरक्षक रहे दिवंगत शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर सोमवार शाम राजधानी रांची लाया गया. इस दौरान हजारों लोग दिशोम गुरु के नाम से जाने जाने वाले अपने प्रिय नेता को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करने हवाई अड्डे के बाहर और सड़कों के किनारे कतारों में खड़े दिखे. पूर्व मुख्यमंत्री का मंगलवार दोपहर को रामगढ़ जिले में उनके पैतृक स्थान पर अंतिम संस्कार किया जाएगा. जेएमएम के सह-संस्थापक सोरेन का 81 साल की उम्र में सोमवार को निधन हो गया. गुर्दे से संबंधी समस्याओं के कारण वह एक महीने से अधिक समय से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती थे.
शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर एक विशेष विमान से दिल्ली से रांची लाया गया. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी विधायक पत्नी कल्पना सोरेन और विधायक बसंत सोरेन भी उसी विमान से आए. इसके बाद उन्हें मोरहाबादी स्थित उनके आवास ले जाया गया. जहां बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और नेता एकत्रित थे.

गांव के लोगों ने दिशोम गुरु को किया याद
सोरेन के नेमरा गांव के लोगों ने भी गुरुजी के निधन पर शोक व्यक्त किया है. उनका कहना है कि गुरुजी गांव वालों के लिए पितातुल्य थे. एक कद्दावर राजनीतिक शख्सियत होने के बावजूद, वह अक्सर गांव आते थे और सभी से मिलते थे, यहां तक कि बच्चों से भी. वह अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका नाम और आदिवासियों के लिए उनका अथक कार्य हमेशा ज़िंदा रहेगा.

शिबू सोरेन पर महाजनों ने करवाया जानलेवा हमला
1970 में शिबू सोरेन महाजनों के खिलाफ खुलकर सामने आए और धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की. सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन चलाकर वो चर्चा में आए लेकिन महाजनों को अपना दुश्मन बना लिया. उनको रास्ते से हटाने के लिए महाजनों ने भाड़े के लोग भी जुटाए. उन दिनों आदिवासियों को जागरूक करने के लिए शिबू सोरेन बाइक से गांव-गांव जाते थे, इसी दौरान एक बार उन्हें महाजनों के गुंडों ने घेर लिया. बारिश का मौसम था, बराकर नदी उफान पर थी, शिबू सोरेन समझ गए कि अब बचना मुश्किल है. उन्होंने आव देखा न ताव अपनी रफ्तार बढ़ा दी और बाइक समेत नदी में छलांग लगा दी. सभी लोगों को लगा कि उनका मरना तय है, लेकिन थोड़ी देर बाद शिबू सोरेन तैरते हुए नदी के दूसरे छोड़ पर पहुंच गए, लोगों ने इसे दैवीय शक्ति माना.

शिबू सोरेन को तीन बार में 10 महीना 10 दिन संभाली झारखंड की कमान
आदिवासियों ने शिबू सोरेन को दिशोम गुरु कहना शुरू कर दिया. संथाली में दिशोम गुरु का अर्थ होता है देश का गुरु. तीन बार के कार्यकाल में शिबू सोरेन को 10 महीना 10 दिन ही राज्य की कमान संभालने का मौका मिला. वो पहली बार सिर्फ 10 दिनों के लिए ही मुख्यमंत्री बन पाए. इसके बाद शिबू सोरेन दूसरी बार 28 अगस्त 2008 को झारखंड के मुख्यमंत्री बने. इस बार उन्हें 5 महीने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला. उन्होंने 18 जनवरी 2009 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. फिर तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 को वो सीएम बने और इस बार भी उनका कार्यकाल सिर्फ 5 महीने का रहा. उन्होंने 31 मई 2010 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

झारखंड राज्य के गठन के आंदोलन में प्रमुख चेहरा रहे शिबू सोरेन
दिशोम गुरु शिबू सोरेन झारखंड राज्य के गठन के आंदोलन में एक प्रमुख चेहरा रहे. उन्होंने इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद के रूप में उनके कार्यकाल ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रभावी रूप से स्थापित किया. शिबू सोरेन का राजनीतिक करियर दशकों तक फैला हुआ है. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर छुए. जिसमें केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में काम करना और संसद के उच्च सदन राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करना भी शामिल है.
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