पटना:
झारखंड में लोह-अयस्क की माइनिंग लीज का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे पर वरिष्ठ मंत्री सरयू राय यह कहकर निकल गए कि नियमों को ताक पर रखकर जो माइनिंग लीज फिर से नवीनीकरण किए जा रहे हैं वे गलत हैं और भविष्य में इस मामले की जांच जरूर होगी और वह जेल नहीं जाना चाहते.
सरयू राय राज्य के संसदीय कार्य और खाद्य उपभोक्ता मंत्री हैं और उनका कहना है कि कैबिनेट में जो इस मुद्दे पर विचार किया गया और माइनिंग की सहमति दी गई उस पर आज नहीं तो कल विवाद होगा और जांच के बिन्दू में सब लोग आएंगे हालांकि इस विवाद की जड़ में पिछली कैबिनेट बैठक है, जिसमें राज्य की 104 खदानों की लीज नवीनीकरण का फैसला लिया गया. राय का कहना है कि नवीनीकरण करना विभाग का काम है और यह माइनिंग विभाग के द्वारा करना चाहिए था, लेकिन जब कुछ मंत्रियो ने कहा कि यह फैसला एक बार हो गया है तब इस पर पुनर्विचार कैसे किया जा सकता है. तब राय का तर्क था कि संविधान में संसोधन हो सकता है तो कैबिनेट के फैसले में संसोधन क्यों नहीं.
दरअसल यह मामला पिछले दो वर्षों से चल रहा है और नए एक्ट के अनुसार सरकार को एक्सटेंशन देने का अधिकार है, लेकिन माइनिंग कंपनी द्वारा किसी तरह के उल्लंघन की शिकायत नहीं होनी चाहिए, लेकिन शाह आयोग ने झारखंड की माइनिंग कंपनियों को कई बिंदू पर उल्लंघन का दोषी पाया था और उनके ऊपर करीब 1200 करोड़ की पेनल्टी लगाई थी. बाद में झारखंड के विकास आयुक्त ने भी अपनी जांच में माइनिंग कंपनियों को दोषी पाया था, लेकिन यह मामला झारखंड उच्च न्यायालय में चला गया जहां सरकार के ही वकील ने सरकार के फैसले के खिलाफ जिरह की, लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को निर्देश दिया कि उल्लंघन को खत्म करा वे माइनिंग की अनुमति दे सकती हैं.
सरकार का तनाव यह है कि नियम कानून के चक्कर में राज्य में माइनिंग गतिविधि ठप पड़ी हुई हैं और राज्य को राजस्व की हानि भी हो रही है, लेकिन सरयू राय का कहना है कि सरकार अगर विधि समेत कार्रवाई करे तो भविष्य में किसी के फंसने की गुंजाइश नहीं रहेगी. सरयू राय बीजेपी के उन वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, जो एकीकृत बिहार में चारा घोटाला हो या झारखंड में मधु कोड़ा का माइनिंग घोटाला सभी को उजागर करने में उनकी एक अहम भूमिका रही है इसलिए सरकार खासकर मुख्यमंत्री रघुबर दास उनके ऊपर कोई उल्टा हमला नहीं बोल सकते.
फ़िलहाल झारखण्ड सरकार अब विधि विभाग से सहमति लेकर इस पूरे मामले शुरू हुए विवाद पर विराम लगाने की कोशिश कर रही है, लेकिन आने वाले दिनों में झारखंड में विपक्षी दलों को बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया बल्कि यह मामला फिर एक बार कोर्ट में भी जा सकता है. इस बीच पार्टी सरयू रॉय के तेवर शांत करने के लिए आलाकमान को इस मुद्दे पर सुलह कराने के लिए कह सकती है.
सरयू राय राज्य के संसदीय कार्य और खाद्य उपभोक्ता मंत्री हैं और उनका कहना है कि कैबिनेट में जो इस मुद्दे पर विचार किया गया और माइनिंग की सहमति दी गई उस पर आज नहीं तो कल विवाद होगा और जांच के बिन्दू में सब लोग आएंगे हालांकि इस विवाद की जड़ में पिछली कैबिनेट बैठक है, जिसमें राज्य की 104 खदानों की लीज नवीनीकरण का फैसला लिया गया. राय का कहना है कि नवीनीकरण करना विभाग का काम है और यह माइनिंग विभाग के द्वारा करना चाहिए था, लेकिन जब कुछ मंत्रियो ने कहा कि यह फैसला एक बार हो गया है तब इस पर पुनर्विचार कैसे किया जा सकता है. तब राय का तर्क था कि संविधान में संसोधन हो सकता है तो कैबिनेट के फैसले में संसोधन क्यों नहीं.
दरअसल यह मामला पिछले दो वर्षों से चल रहा है और नए एक्ट के अनुसार सरकार को एक्सटेंशन देने का अधिकार है, लेकिन माइनिंग कंपनी द्वारा किसी तरह के उल्लंघन की शिकायत नहीं होनी चाहिए, लेकिन शाह आयोग ने झारखंड की माइनिंग कंपनियों को कई बिंदू पर उल्लंघन का दोषी पाया था और उनके ऊपर करीब 1200 करोड़ की पेनल्टी लगाई थी. बाद में झारखंड के विकास आयुक्त ने भी अपनी जांच में माइनिंग कंपनियों को दोषी पाया था, लेकिन यह मामला झारखंड उच्च न्यायालय में चला गया जहां सरकार के ही वकील ने सरकार के फैसले के खिलाफ जिरह की, लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को निर्देश दिया कि उल्लंघन को खत्म करा वे माइनिंग की अनुमति दे सकती हैं.
सरकार का तनाव यह है कि नियम कानून के चक्कर में राज्य में माइनिंग गतिविधि ठप पड़ी हुई हैं और राज्य को राजस्व की हानि भी हो रही है, लेकिन सरयू राय का कहना है कि सरकार अगर विधि समेत कार्रवाई करे तो भविष्य में किसी के फंसने की गुंजाइश नहीं रहेगी. सरयू राय बीजेपी के उन वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं, जो एकीकृत बिहार में चारा घोटाला हो या झारखंड में मधु कोड़ा का माइनिंग घोटाला सभी को उजागर करने में उनकी एक अहम भूमिका रही है इसलिए सरकार खासकर मुख्यमंत्री रघुबर दास उनके ऊपर कोई उल्टा हमला नहीं बोल सकते.
फ़िलहाल झारखण्ड सरकार अब विधि विभाग से सहमति लेकर इस पूरे मामले शुरू हुए विवाद पर विराम लगाने की कोशिश कर रही है, लेकिन आने वाले दिनों में झारखंड में विपक्षी दलों को बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया बल्कि यह मामला फिर एक बार कोर्ट में भी जा सकता है. इस बीच पार्टी सरयू रॉय के तेवर शांत करने के लिए आलाकमान को इस मुद्दे पर सुलह कराने के लिए कह सकती है.
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