आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को अपने केस के लिए और इंतजार करना पड़ेगा। डीएमके की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की राय अलग होने की वजह से मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर रोक नहीं लगाई है लेकिन कर्नाटक हाइकोर्ट में जयललिता की अपील पर सुरक्षित आदेश अब टल गया है। डीएमके की याचिका पर आदेश सुनाते हुए जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि विशेष सरकारी वकील भवानी सिंह हाइकोर्ट में बिना अनुमति के हिस्सा ले रहे थे, इसलिए जया की अपील पूरी तरह गलत है। इस अपील पर हाइकोर्ट में फिर से सुनवाई होनी चाहिए।
उन्होंने ये भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता के आरोप सही हैं तो ये केस इस बात का सटीक उदाहरण है कि आरोपी ने किस तरह प्रभाव और ताकत का इस्तेमाल कर केस को 15 साल तक पटरी से उतारे रखा और अगर आरोप गलत भी हैं तो ये साफ है कि केस के निपटारे में 15 साल लगे। वहीं जस्टिस भानुमति ने अपने फैसले में भवानी सिंह की नियुक्ति को सही ठहराया।
उन्होंने कहा कि वकील की नियुक्ति केस के लिए की जाती है, किसी कोर्ट के लिए नहीं। इसी के साथ मामले को तीन जजों की कोर्ट में भेज दिया गया। यानी अब जयललिता को अपनी अपील पर फैसले के लिए और इंतजार करना होगा। हालांकि इससे पहले हाइकोर्ट 11 मार्च को ही सारी सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख चुका है। लेकिन अब तीन जजों की बेंच के फैसले पर ही सब निर्भर होगा।
डीएमके नेता अम्बझगन ने अपनी याचिका में कहा है कि भवानी सिंह निचली अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर थे। उन्हें हाई कोर्ट में सरकारी वकील नहीं बनाया जा सकता। जबकि जया के वकीलों का कहना था कि सरकारी वकील केस के लिए नियुक्त किये जाते हैं कोर्ट के लिए नहीं।
आय से 66 करोड़ अधिक संपत्ति के मामले में बेंगलुरु की विशेष अदालत ने जयललिता को चार साल की कैद की सजा दी है। इसके खिलाफ जयललिता की अपील पर फ़िलहाल कर्नाटक हाई कोर्ट में फैसला सुरक्षित है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं