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आखिर कश्मीर में सरकार से दूर क्यों कांग्रेस, उमर-राहुल में हुई है '370' वाली डील?

जफर चौधरी ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को जम्मू-कश्मीर में जो वोट मिला है, वह बीजेपी विरोध वाला है. बीजेपी के फैसलों के खिलाफ वोट पार्टी को मिला है. इसमें 370 का मुद्दा बड़ा है. चुनाव जीते के बाद नैशनल कॉन्फ्रेंस और उमर की यह मजबूरी है कि वह आर्टिकल 370 के मुद्दे को लगातार जिंदा रखे. 

नई दिल्ली:

कश्मीर में 10 साल बाद नया सवेरा हो चुका है. उमर अब्दुल्ला ने कमान संभाल ली है. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस सरकार से बाहर क्यों खड़ी है. दोनों दलों की तरफ से हालांकि 'ऑल इज वेल' का संदेश दिया जा रहा है, लेकिन क्या सच्चाई यही है? क्या अनबन मंत्रियों को लेकर है या मामला कुछ और है. उमर और राहुल गांधी के रिश्ते अच्छे दिख रहे हैं. राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे शपथग्रहण में भी आए. तो फिर कश्मीर में कांग्रेस की उमर सरकार के अलग दिखने की कांग्रेस की रणनीति आखिर क्या है? जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार जफर चौधरी एनडीटीवी से खास बातचीत में उसे 370 से जोड़ते हैं. उनके मुताबिक दरअसल कांग्रेस ने उमर सरकार से दूरी रखकर अपने लिए सियासी राह आसान की है.  
   
जफर चौधरी कहते हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को जम्मू-कश्मीर में जो वोट मिला है, वह बीजेपी विरोध वाला है. बीजेपी के फैसलों के खिलाफ वोट पार्टी को मिला है. इसमें 370 का मुद्दा बड़ा है. चुनाव जीते के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस और उमर की यह मजबूरी है कि वह आर्टिकल 370 के मुद्दे को लगातार जिंदा रखे. 

अब कांग्रेस की परेशानी यह है कि कश्मीर में आर्टिकल 370 का मुद्दा उसके गले की फांस बन सकता है. चौधरी कहते हैं कि कांग्रेस को कश्मीर से बाहर परेशानी न हो, इसकी वजह से वह सरकार से बाहर है. महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव चल रहे हैं. बाकी राज्यों में भी आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं. ऐसे में कश्मीर में 370 के ऊपर जितनी बात होगी, कांग्रेस को उतना नुकसान उठाना पड़ेगा. उसको लगातार इसकी सफाई देनी होगी. 

उनके मुताबिक उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी के रिश्ते ठीक हैं.उमर सरकार को बाहर से समर्थन देने के बाद भी स्थिरता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कांग्रेस के लिहाज से यह अच्छा फैसला है. अब नेशनल कॉन्फ्रेंस राज्य में अपने तरीके से से पॉलिटिक्स करती रहेगी.

केंद्र पर क्यों नरम उमर अब्दुल्ला?
जफर चौधरी बताते हैं कि भारी बहुमत से सत्ता में आए उमर के ऊपर भारी दवाब है. घाटी से उन पर 370 पर बात करने और प्रस्ताव पारित करने का प्रेशर रहेगा. उमर के बयान को देखें तो वह कह चुके हैं कि वह केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं. इसके जरिए वह कुछ ऐसी राहत केंद्र से पाना चाहते हैं, जिससे लोगों को सीधा फायदा हो. इसके बाद वह अपने सियासी अजेंडे पर आ सकते हैं. केंद्र से सीधा-सीधा टकराव उमर के लिए ठीक नहीं है. 

क्या कश्मीर में दिल्ली जैसी चलेगी खटपट देखने को मिलेगी
जफर चौधरी कहते हैं कि इसकी गुंजाइश कम है.उमर ने जो इशारा दिया है उससे लगता है कि वह टकराव के मूड में कतई नहीं हैं. दरअसल कश्मीर का भूगोल और सियासत दिल्ली से बिल्कुल अलग है. ऐसे में दिल्ली से तुलना नहीं की जा सकती है. केंद्र सरकार का रुख जाहिर तौर पर यहां अलग रहना चाहिए. जरूरत यह है कि 370 हटने के बाद नए जम्मू कश्मीर के लिए यूटी और केंद्र की सरकार मिलकर काम करें. अगले कुछ हफ्तों में दरबार मूव की रवायत है. इस बहाल करने की भी मांग उठ रही है. इसमें संविधान संशोधन जैसी बात नहीं है.एलजी अपने स्तर पर फैसला ले सकते हैं.

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