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लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सबसे पहली और सबसे बड़ी प्रक्रिया होते हैं. इनके बिना लोकतंत्र कामयाब नहीं हो सकता. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत इस दिशा में पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी मिसाल है. इसी के तहत राज्य विधानसभाओं से लेकर पंचायतों तक के चुनाव कराए जाते हैं. इन दिनों ऐसे ही एक चुनाव में सबकी दिलचस्पी बढ़ गई है. वो है केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) का विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) जिसके लिए चुनाव आयोग हरियाणा के साथ ही अधिसूचना जारी कर चुका है. इसके बाद वहां सियासी सरगर्मियां बढ़ गई हैं.
जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा और चार अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा चुनाव के साथ ही नतीजे आएंगे. चुनावों के लिए सभी दलों ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है.
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आज की ये तस्वीर उसकी ही एक निशानी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सांसद राहुल गांधी और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला और नेता उमर अब्दुल्ला के बीच ये गर्मजोशी से भरी मुलाक़ात बता रही है कि दोनों दल मिलकर बीजेपी को कड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. खरगे और राहुल गांधी ने इस सिलसिले में आज श्रीनगर में फ़ारुक़ अब्दुल्ला के घर उनसे मुलाक़ात की. मुलाक़ात के बाद नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की सभी 90 सीटों पर कांग्रेस के साथ गठबंधन का एलान कर दिया.
उधर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस मुलाक़ात की तस्वीरें सोशल मीडिया X पर पोस्ट कीं और लिखा हमारी और राहुल गांधी की नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के साथ श्रीनगर में एक गर्मजोशी से भरी शिष्टाचार मुलाक़ात हुई.
राज्य के दर्जे को प्रमुख मुद्दा बनाएगी गठबंधन
मुलाक़ात में शामिल रहे उमर अब्दुल्ला ने उम्मीद जताई कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा सभी शक्तियों के साथ बहाल हो जाएगा. और इसके लिए हमें इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर खड़े होना होगा. इससे पहले राहुल गांधी भी कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाना उनकी प्राथमिकता होगी. राहुल गांधी कह चुके हैं कि ये उनका और उनकी पार्टी का कर्तव्य है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकार और राज्य का दर्जा दिलाना सुनिश्चित करें. श्रीनगर में एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने ये बात कही.
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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नहीं मिली थी कोई भी सीट
इसी साल हुए आम चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था.अब विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल साथ आ रहे हैं. अब ये देखना है कि और कौन से छोटे दल उनके साथ आते हैं. आम चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस ने अनंतनाग-राजौरी और श्रीनगर की सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई थी. ख़ास बात ये है कि उमर अब्दुल्ला बारामूला की सीट से चुनाव हार गए थे.
कार्यकर्ताओं से मिले कांग्रेस नेता
इससे पहले गुरुवार सुबह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और सांसद राहुल गांधी ने श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर के तमाम कार्यकर्ताओं के साथ विधानसभा चुनावों की तैयारियों पर बात की. बैठक में कश्मीर घाटी के सभी दस ज़िलों के ज़िला अध्यक्ष, डीडीसी सदस्य और कार्यकर्ता शामिल हुए. शुक्रवार को उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होने जा रही है. जिसके बाद पहले चरण की सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की जाएगी.
क्या राम माधव बीजेपी के लिए कर पाएंगे कोई बड़ा खेल?
इसके तहत बीजेपी ने कश्मीर के मामलों में गहरा अनुभव रखने वाले अपने नेता राम माधव को राज्य के चुनाव का इंचार्ज बनाया है. क़रीब आधा दशक तक सियासी बियाबान में रहने के बाद राम माधव अपने नाम का एलान होने के 24 घंटे के अंदर ही जम्मू-कश्मीर पहुंच गए. अपनी रणनीति के तहत वो श्रीनगर में स्थानीय नेताओं के साथ कई बैठकें कर चुके हैं. राम माधव के साथ ही केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी भी बीजेपी की ओर से जम्मू-कश्मीर के चुनावों की निगरानी करेंगे. राम माधव की ही कोशिशों के चलते 2014 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी का पीडीपी से गठबंधन हुआ था. लेकिन मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा मुफ़्ती गठबंधन को आगे चलाने की इच्छुक नहीं दिखीं क्योंकि वो बीजेपी की विचारधारा से जुड़े अहम मुद्दों से सहमत नहीं थीं.
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अब 10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार ये चुनाव हो रहे हैं. 2022 के परिसीमन के बाद 47 सीटें कश्मीर में हैं और 43 सीटें जम्मू रीजन में हो गई हैं...इनमें से 7 सीटें अनुसूचित जाति और 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रखी गई हैं.
बीजेपी की क्या है रणनीति?
राम माधव की कोशिश होगी कि बीजेपी राज्य की 90 में से जम्मू संभाग की 43 सीटों में अधिक से अधिक सीटें जीते. और कश्मीर घाटी में भी अपना खाता खोल दे ख़ासतौर पर उन इलाकों में जहां गुज्जरों और पहाड़ी समुदाय अच्छी तादाद में हैं. इन दोनों ही समुदायों को अनुच्छेद 370 हटने के बाद लागू हुए ओबीसी आरक्षण का फ़ायदा मिला है. इस सबके साथ ही बीजेपी की कोशिश होगी कि कुछ नए स्थानीय राजनीतिक दलों से उसका तालमेल हो सके.
महबूबा मुफ्ती की पार्टी में टिकट को लेकर विद्रोह
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की पार्टी पीडीपी चुनाव में सबसे पहले ताल ठोक चुकी है. महबूबा लोकसभा चुनाव में अनंतनाग-राजौरी सीट से हार गई थीं लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें काफ़ी उम्मीदें हैं. इसी के तहत पीडीपी ने अपने आठ उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिज़ा मुफ्ती का भी नाम शामिल है. लेकिन इस पहली लिस्ट को लेकर पार्टी में बग़ावत होती दिख रही है.
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राजनीतिक दलों के अंदर सीटों को लेकर ऐसी उठापटक चुनाव के बीच होती ही है. इस सबके बीच जम्मू-कश्मीर की जनता को अपनी चुनी हुई सरकार का बेसब्री से इंतज़ार है. इस साल 9 जनवरी के बाद से जम्मू-कश्मीर में ज़मीनी स्तर का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. क़रीब 30 हज़ार स्थानीय प्रतिनिधियों का पांच साल का कार्यकाल ख़त्म हो चुका है. यानी 4892 ग्राम पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल ख़त्म हो गया गया. जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव 2018 के अंत में हुए थे.
इससे पहले 19 म्युनिसिपल काउंसिल और 57 म्युनिसिपल कमेटी का कार्यकाल नवंबर 2023 में ही पूरा हो चुका था. इसका मतलब है कि शहरों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों का भी प्रतिनिधित्व फिलहाल शून्य है. यहां चुनाव तभी हो पाएंगे जब विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तरह म्युनिसिपल वॉर्ड्स और पंचायत के लिए भी परिसीमन होगा. इसकी सूरत अब विधानसभा चुनावों के बाद ही बन पाएगी.
शांतिपूर्ण चुनाव के सामने आंतकियों की चुनौती
जम्मू-कश्मीर में गवर्नेंस का एक नया स्ट्रक्चर डीडीसी यानी District Development Councils ही इस समय कायम है. लोग सीधे डीडीसी को चुनते हैं जिसके चुनाव 2020 में हुए थे... तो इन सब हालात के बीच अब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. हालांकि इसमें एक और पहलू है जो बहुत अहम है. वो है आतंकी साया... जिस तरह से आतंकियों ने बीते कुछ साल में पीर पंजाल के पार जम्मू-राजौरी इलाके में अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं और सुरक्षा बलों पर हमले तेज़ किए हैं उसे देखते हुए निष्पक्ष और शांति के साथ चुनाव कराना सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती रहेगी. लेकिन आज हम बात करेंगे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए हो रही सियासी पहल की.
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