
- मालेगांव ब्लास्ट मामले में मुंबई की विशेष NIA अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है.
- यह मामला 17 वर्षों तक चला जिसमें महाराष्ट्र ATS और NIA ने तीन चार्जशीट दाखिल कीं और जांच में बदलाव किए.
- अदालत ने हिंदू आतंकवाद शब्द के इस्तेमाल को खारिज कर इस मामले का अंत किया है.
2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में गुरुवार को कोर्ट ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है. इसके साथ ही उस मामले का अंत हो गया, जिसमें 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शब्द का इस्तेमाल हुआ था, जिसे मुंबई की विशेष NIA अदालत ने खारिज कर दिया. 17 साल तक चले इस मुकदमे में कई मोड़ आए, जिसमें दो जांच एजेंसियों- महाराष्ट्र ATS और NIA द्वारा 3 चार्जशीट (एक पूरक सहित) दाखिल की गईं. दोनों एजेंसियों ने जांच के दौरान अभियोजन सिद्धांत में बदलाव किए और गवाहों को बार-बार जोड़ा और हटाया गया. लेकिन गुरुवार को एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया.
जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की लीगल सेल अगस्त के पहले हफ्ते में इस मामले में बॉम्बे हाइकोर्ट का रुख करेगी. जहां NIA कोर्ट के फैसले को चुनौती दिया जाएगा. बताते चले कि मालेगांव ब्लास्ट में मारे गए लोगों की तरफ से जमीयत उलेमा ए हिंद केस लड़ रही थी.
मालेगांव बलास्ट केसः 2008 से अभी तक सभी प्रमुख तथ्य, घटनाक्रम
- 29 सितंबर 2008 : मालेगांव में मोटरसाइकिल पर बंधे बम के फटने से 6 लोगों की मौत. इस घटना के बाद दंगे भी भड़क उठे.
- आरोपी : साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (पूर्व भाजपा सांसद), लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित (सैन्य खुफिया अधिकारी), मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी.
- आरोप : आपराधिक साजिश, हत्या, विस्फोटक उपयोग, गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए), शस्त्र अधिनियम, और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत जांच शुरू.
- 'हिंदू आतंक' की उत्पत्ति : महाराष्ट्र एटीएस (हेमंत करकरे के नेतृत्व में) ने दावा किया कि यह हमला दक्षिणपंथी हिंदू चरमपंथी समूहों ने किया, जिसके कारण 'हिंदू आतंकवाद' शब्द गढ़ा गया.
- अक्टूबर 2008 : एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित को गिरफ्तार किया. दोनों पर अभिनव भारत से जुड़े होने का आरोप लगाया गया, जिसने मुसलमानों पर 'बदला लेने वाले हमले' की योजना बनाई थी.
- नवंबर 2008 : ब्लास्ट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल को सबूत के तौर पर जब्त किया गया. इसके बाद हेमंत करकरे 26/11 मुंबई हमले में शहीद हुए.
- जनवरी 2009 : एटीएस ने पहली चार्जशीट दाखिल की, जिसमें 11 आरोपियों के नाम दर्ज किए गए.
- जुलाई 2009 : विशेष अदालत ने आरोपियों के खिलाफ मकोका के आरोप हटा दिए.
- जुलाई 2010 : बॉम्बे हाई कोर्ट ने मकोका के आरोप बहाल कर दिए.
- अप्रैल 2011 : एनआईए ने मामले की जांच अपने हाथ में ली.
- 2016-2017 : एनआईए ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किया, मकोका के आरोप हटा दिए, लेकिन आतंकवाद के आरोप बरकरार रखे. साथ ही एटीएस पर सबूत गढ़ने का आरोप लगाया.
- 2017 : पुरोहित को सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिली. इसके बाद साध्वी प्रज्ञा को हाईकोर्ट ने जमानत दी.
- अक्टूबर 2018 : सात आरोपियों के खिलाफ औपचारिक रूप से आरोप तय किए गए.
- दिसंबर 2018 : विशेष एनआईए अदालत में आधिकारिक तौर पर मुकदमा शुरू हुआ.
- सितंबर 2023 : अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ के बाद बहस पूरी की, जिनमें से 37 मुकर गए.
- 19 अप्रैल, 2025 : अंतिम बहस पूरी हुई और मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.
- 31 जुलाई, 2025 : विशेष एनआईए अदालत ने जमानत पर रिहा सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया. साथ ही महाराष्ट्र सरकार को मृतकों को 2 लाख रुपए और घायलों को 50,000 रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया.
- एनआईए के विशेष न्यायाधीश अभय लोहाटी का बयान : अभियोजन पक्ष ने साबित किया कि मालेगांव में विस्फोट हुआ, लेकिन यह साबित नहीं कर सका कि मोटरसाइकिल में बम रखा गया था.
- बरी करने का आधार : आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया. अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी या लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने उसमें बम रखा था.
- मुख्य मोड़ : अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपियों ने भोपाल, फरीदाबाद और अन्य स्थानों पर बैठकें कीं, जहां 'हिंदू राष्ट्र' बनाने और हमलों की योजना पर चर्चा हुई थी.
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