New Delhi:
जैतापुर परमाणु संयंत्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के आगे झुकने से इनकार करते हुए सरकार ने मंगलवार को इस परियोजना पर आगे बढ़ने का फैसला किया हालांकि साथ ही स्पष्ट किया कि सुरक्षा पहलुओं को पारदर्शी तरीके से सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और एक निष्पक्ष नियामक गठित करने के लिए एक विधेयक पेश किया जाएगा। फ्रांस द्वारा महाराष्ट्र में बनने वाले इस संयंत्र के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में फैसला किया गया। इस बैठक में जापान में हुए परमाणु रिसाव से उत्पन्न चिंताओं और आशंकाओं तथा इन्हें दूर करने के उपायों को लेकर भी चर्चा की गई। बैठक में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण और परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष श्रीकुमार बनर्जी उपस्थित थे और इसमें रेखांकित किया गया कि परमाणु ऊर्जा के अनुपात को बढ़ाने की देश की बढ़ती आकांक्षा के मद्देनजर जैतापुर संयंत्र का निर्माण आवश्यक है। बैठक में कहा गया कि जैतापुर परियोजना के खिलाफ हो रहा विरोध प्रदर्शन केवल राजनीतिक और वैचारिक कारणों से है जिसे शिव सेना हवा दे रही है और स्थानीय लोगों को इस बात के प्रति संतुष्ट करने के प्रयास किये जाएंगे कि संयंत्र उनके लिए नुकसानदेह नहीं बल्कि फायदेमंद होगा। चव्हाण ने रमेश, बनर्जी और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी की मौजूदगी में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, (जैतापुर परियोजना को लेकर) विराम देने का कोई सवाल ही नहीं है। सुनामी के कारण पिछले माह बुरी तरह प्रभावित हुए फुकुशिमा संयंत्र के मद्देनजर भारत में परमाणु परियोजनाओं पर विराम संबंधी हाल के रमेश के सुझाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने यह टिप्पणी की। समझा जाता है कि बैठक में मनमोहन सिंह ने रमेश की विराम संबंधी टिप्पणी पर अप्रसन्नता जताते हुए कहा था कि इससे प्रदर्शनकारियों को बढ़ावा मिलेगा। सूत्रों ने कहा, यह भी समझा जाता है कि प्रधानमंत्री ने रमेश को उस संवाददाता सम्मेलन में शामिल होने के लिए कहा जहां जैतापुर परियोजना को लेकर आगे बढ़ने संबंधी सरकार के फैसले की घोषणा की गई।
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