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ओडिशा : जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान पुरी में भगदड़ जैसे हालात, एक शख्स की मौत, दर्जनों घायल

रथयात्रा शुरू होने से पहले विभिन्न कलाकारों के समूहों ने रथों के सामने 'कीर्तन' और ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किये. यह घटना भगवान बलभद्र के रथ तालध्वज को खींचने के दौरान हुई.

ओडिशा : जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान पुरी में भगदड़ जैसे हालात, एक शख्स की मौत, दर्जनों घायल
नई दिल्ली:

ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) के दौरान भगदड़ मच गयी. इस हादसे में एक की मौत हो गयी और दर्जनों अन्य घायल हो गए. हालांकि पुलिस ने भगदड़ को रोक दिया और हालात नियंत्रण में है. जानकारी के अनुसार यह हादसा भगवान बलभद्र के रथ तालध्वज को खींचने के दौरान हुई.  गौरतलब है कि पुरी स्थित 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से रविवार दोपहर हजारों लोगों ने विशाल रथों को खींचकर लगभग 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान किया. पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अपने शिष्यों के साथ भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों के दर्शन किए तथा पुरी के राजा ने 'छेरा पहनारा' (रथ सफाई) अनुष्ठान पूरा किया, जिसके बाद शाम करीब 5.20 बजे रथ खींचने का कार्य शुरू हुआ.

रथों में लकड़ी के घोड़े लगाए गए थे और सेवक पायलट श्रद्धालुओं को रथों को सही दिशा में खींचने के लिए मार्गदर्शन कर रहे थे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तीनों रथों की परिक्रमा की और देवताओं के सामने माथा टेका. राष्ट्रपति, ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्य जगन्नाथ रथ को जोड़ने वाली रस्सियों को खींचकर प्रतीकात्मक रूप से इस कवायद की शुरुआत की. विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने भी तीनों देवताओं के दर्शन किए.

रथ को हजारों लोगों ने खींचा
भगवान बलभद्र के लगभग 45 फुट ऊंचे लकड़ी के रथ को हजारों. इसके बाद देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथ खींचे जाएंगे. पीतल के झांझ और हाथ के ढोल की ताल बजाते हुए पुजारी छत्रधारी रथों पर सवार देवताओं को घेरे हुए थे जब रथयात्रा मंदिर शहर की मुख्य सड़क से धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी. पूरा वातावरण 'जय जगन्नाथ' और 'हरिबोल' के जयकारों से गूंज रहा था और श्रद्धालु इस पावन मौके पर भगवान की एक झलक पाने का प्रयास कर रहे थे.

रथयात्रा शुरू होने से पहले विभिन्न कलाकारों के समूहों ने रथों के सामने 'कीर्तन' और ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किये. अनुमान है कि वार्षिक रथ उत्सव के लिए इस शहर में लगभग दस लाख भक्त एकत्रित हुए हैं. अधिकांश श्रद्धालु ओडिशा और पड़ोसी राज्यों से थे, कई विदेशी भी इस रथयात्रा में शामिल हुए, जिसे विश्व स्तर पर सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है.

मुख्यमंत्री मोहन माझी भी पुरी में मौजूद
इस बीच, मुख्यमंत्री मोहन माझी पुरी पहुंचे और पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से मुलाकात की. माझी ने कहा कि उन्हें पुरी के शंकराचार्य से मिलने का अवसर मिला, जिन्होंने उन्हें राज्य के गरीबों और निराश्रितों को सेवा और न्याय प्रदान करने की सलाह दी. शंकराचार्य ने मुख्यमंत्री को श्रीक्षेत्र पुरी और गोवर्धन पीठ के जीर्णोद्धार के लिए कदम उठाने की भी सलाह दी है. इससे पहले दिन में, तीन घंटे तक चली 'पहांडी' रस्म के पूरा होने के बाद अपराह्न 2.15 बजे भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को उनके रथों पर विराजमान किया गया.

जब भगवान सुदर्शन को सबसे पहले देवी सुभद्रा के रथ ‘दर्पदलन' तक ले जाया गया तो पुरी मंदिर के सिंहद्वार पर घंटियों, शंखों और मंजीरों की ध्वनियों के बीच श्रद्धालुओं ने ‘जय जगन्नाथ' के जयकारे लगाए. भगवान सुदर्शन के पीछे-पीछे भगवान बलभद्र को उनके ‘तालध्वज रथ' पर ले जाया गया. सेवक भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र की बहन देवी सुभद्रा को विशेष शोभा यात्रा निकालकर ‘दर्पदलन' रथ तक लाये.

अंत में, भगवान जगन्नाथ को घंटियों की ध्वनि के बीच एक पारंपरिक शोभा यात्रा निकालकर ‘नंदीघोष' रथ पर ले जाया गया. भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रत्न जड़ित सिंहासन से उतारकर 22 सीढ़ियों (बैसी पहाचा) के माध्यम से सिंह द्वार से होकर एक विस्तृत शाही अनुष्ठान ‘पहांडी' के जरिए मंदिर से बाहर लाया गया. मंदिर के गर्भगृह से मुख्य देवताओं को बाहर लाने से पहले ‘मंगला आरती' और ‘मैलम' जैसे कई पारंपरिक अनुष्ठान आयोजित किए गए.

53 साल बाद दो दिवसीय होगी यात्रा
मंदिर के गर्भगृह से देवताओं  के निकलने से पहले 'मंगला आरती' और 'मैलम' जैसे कई अनुष्ठान किए गए. इस साल 53 साल बाद कुछ खगोलीय स्थितियों के कारण रथ यात्रा दो दिवसीय होगी. परंपरा से हटकर, 'नबजौबन दर्शन' और 'नेत्र उत्सव' सहित कुछ अनुष्ठान रविवार को एक ही दिन में किए जाएंगे. ये अनुष्ठान आमतौर पर रथ यात्रा से पहले किए जाते हैं. 'नबजौबन दर्शन' का अर्थ है देवताओं का युवा रूप, जो 'स्नान पूर्णिमा' के बाद आयोजित 'अनासरा' (संगरोध) नामक अनुष्ठान में 15 दिनों के लिए दरवाजे के पीछे थे.

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