ईरान ने बुधवार रात इजरायल पर मिसाइलों से हमले किए. इस पर इजरायल ने कहा है कि वो इसका बदला लेगा. इसके बाद से पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ गया है. भारत ने दोनों पक्षों से बातचीत और कूटनीति के जरिए समस्या का समाधान करने की अपील की है.पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव ने भारत समेत दुनिया भर के व्यापारियों को परेशानी में डाल दिया है. आइए जानते हैं कि पश्चिम एशिया का तनाव अगर और बढ़ता है तो भारत का व्यापार इससे किस तरह से प्रभावित हो सकता है.
पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव लाल सागर में जहाजों की आवाजाही को प्रभावित कर सकता है. यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका और पश्चिम एशिया से होने वाले व्यापार के लिए भारत लाल सागर पर निर्भर है. भारत के लिए माल लाने और ले जाने वाले जहाज स्वेज नहर होते हुए लाल सागर से ही आते-जाते हैं. लाल सागर में जहाजों पर होने वाले हमलों के लिए हूती के लड़ाके जिम्मेदार हैं. हूतियों को ईरान का समर्थन हासिल है. क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में इस रूट से 400 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था.
आयात-निर्यात से जुड़े व्यापारियों को इस बात का भय सता रहा है कि अगर इजरायल-ईरान तनाव और बढ़ा तो उसका असर लाल सागर में जहाजों की आवाजाही पर पड़ेगा. पश्चिम एशिया में तनाव का असर दिखने भी लगा है अगस्त में निर्यात में नौ फीसदी की गिरावट देखी गई है. अगस्त में भारत के पेट्रोलियम निर्यात में 38 फीसदी की गिरावट देखी गई. इसकी वजह यह थी कि मुनाफा कम हो रहा था और शिपिंग की लागत बढ़ रही थी.इस वजह से निर्यातकों ने वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की. आधिकारिक आकड़े के मुताबिक अगस्त 2023 में 9.54 अरब डॉलर मूल्य के पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात हुआ था. यह अगस्त 2024 में घटकर 5.95 अरब डॉलर का रह गया.
खाड़ी सहयोग संगठन के देशों सउदी अरब, यूएई, कुवैत और कतर के साथ भारत का व्यापार बढ़ा भी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों के साथ इस साल जनवरी से जुलाई के बीच व्यापार 17.8 फीसदी बढ़ा है. ये देश पश्चिम एशिया विवाद में तटस्थ बने हुए हैं. इसी अवधि में ईरान के साथ भी व्यापार में 15.2 फीसदी की तेजी देखी गई है.
लंबा होगा जहाजों का रास्ता
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल के पहले दो महीनों में स्वेज नहर से होने वाले व्यापार में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है. वहीं पिछले साल की तुलना में केप ऑफ गुड होप के रास्ते होने वाले व्यापार में 74 फीसदी का उछाल आया है. इसके पीछे की वजह स्वेज नहर और लाल सागर के जरिए होने वाले व्यापार में आया व्यवधान है. पश्चिम एशिया के तनाव ने जहाजों को अफ्रीका होते हुए ले जाना पड़ रहा है, इससे शिपिंग की लागत करीब 20 फीसदी तक बढ़ जा रही है.इसका असर भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर पड़ रहा है. खासकर वो कंपनियां कम कीमत के इंजीनियरिंग उत्पाद, कपड़ों आदि के निर्यात से जुड़ी हैं.
आईएमईसी पर आएगा संकट?
पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव भारत के महत्वाकांक्षी भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) की प्रगति को खतरे में डाल सकता है.इस परियोजना की घोषणा भारत ने बीते साल दिल्ली में आयोजित जी20 बैठक में की थी.इस परियोजना की कल्पना एक ऐसे आर्थिक कॉरिडोर के रूप में की गई है,जिसका उद्देश्य एशिया, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच समुद्र, रेल और सड़क यातायात की कनेक्टिविटी बढ़ाकर व्यापार के लिए एक नया रास्ता तैयार करना है.यह कॉरिडोर भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन, इसराइल और ग्रीस से जाएगा. इस परियोजना को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का जवाब माना जा रहा है.
विदेशी मुद्रा भंडार पर असर
खाड़ी के देशों में लाखों भारतीय काम करते हैं.ये भारतीय बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं.खाड़ी के देशों की मुद्रा भारतीय रुपये की तुलना में बेहद मजबूत है.इसका फायदा कामगारों को होता है.सरकार ने लोकसभा में बताया था कि दिसंबर 2023 तक सऊदी अरब, यूएई, ओमान, बहरीन, कतर और कुवैत से 120 अरब अमेरिकी डॉलर भारत आया था.इन भारतीय कामगारों की ओर से भेजे गए पैसे से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है. अगर ईरान और इजरायल के बीच तनाव और बढ़ा और उसका दायरा फैला तो इसका सीधा असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा. इसके अलावा युद्ध के हालात में भारत को एक और चुनौती का सामना करना पड़ेगा, वह है खाड़ी देशों में रह रहे भारतीयों को बाहर निकालना.
तेल की बढ़ती कीमतें
इजरायल-ईरान तनाव का बड़ा असर तेल की कीमतों पर पड़ रहा है.ईरान के मिसाइल हमले करने की आशंका के बीच ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में करीब तीन फीसदी का इजाफा हुआ था.
ब्रेंट क्रूड में मंगलवार को कारोबार के दौरान पांच फीसदी से अधिक का उछाल दर्ज किया गया था. यह तनाव केवल ईरान और इजरायल तक ही सीमित नहीं रहेगा. इसका असर इराक, सऊदी अरब, कतर और यूएई तक हो सकता है. ये ऐसे देश हैं, जहां से भारत सबसे अधिक तेल का आयात करता है. तनाव बढ़ने पर सप्लाई और डिमांड में अंतर आएगा, इससे तेल के दाम बढ़ेगा, इसका असर आम लोगों की जेब पर पडे़गा.
शेयर बाजार पर असर
भारत के बांबे स्टॉक एक्सचेंके बीएसई ने अभी हाल में ही रिकॉर्ड बनाया है. बीएसई के सूचकांक ने 86 हजार का आंकड़ा छू लिया था. लेकिन पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव और युद्ध के फैलने के बाद से बीएसई के सूचकांक में आज दोपहर तक 3000 अंक की गिरावट देखी गई है. ईरान के इजरायल पर हमले के बाद पहली बार गुरुवार को जब बाजार दोपहर एक बजे तक सूचकांक में 14 सौ प्वाइंट से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी. अगर संकट गहराता है तो यह संकट और बढ़ सकता है.
क्या भारत ईरान से खरीदेगा तेल
पश्चिम एशिया में ताजा तनाव से ईरान से कच्चा तेल आयात फिर से शुरू करने की योजना पटरी से उतर गई है. सरकार ने पश्चिम एशिया के ताजा तनाव को देखते हुए ईरान से तेल आयात करने की योजना को टाल दिया है. भारत उन देशों से तेल खरीदने से बचता रहा है, जिन पर अमेरिका में पाबंदी लगाई है. लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर की जनवरी में हुई ईरान यात्रा के दौरान तेल खरीदने पर बातचीत हुई थी. अब इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
दूसरे व्यापार पर भी आएगा संकट
भारत और पश्चिम एशिया के देशों तेल के अलावा भी बहुत से ऐसी चीजें हैं जिनका आयात-निर्यात होता है. भारत छोटी-बड़ी मशीनरी से लेकर दवाओं तक निर्यात पश्चिम एशिया के देशों को करता है. वहीं पश्चिम एशिया के देश भारत को तेल, प्राकृतिक गैस और उर्वरक निर्यात करते हैं. भारत और पश्चिम एशिया के देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 195 अरब डॉलर का है.इनके अलावा पश्चिम एशिया के निवेशकों ने बुनियादी ढांचा विकास और तकनीकी स्टार्टअप में निवेश किया हुआ है. पश्चिम एशिया की अस्थिरता इन सबको प्रभावित कर सकती है.
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