संभल में रोचक मुकाबला : जीतने वाला पहली बार पहुंचेगा संसद, जानिए क्या है समीकरण

संभल में यदि बसपा प्रत्याशी ने दलित और हिंदू वोट काटे तो इसका सीधा फायदा सपा उम्मीदवार को होगा, जबकि बसपा प्रत्याशी ने मुस्लिम वोटों में सेंधमारी की तो कहीं ना कहीं इसका फायदा भाजपा उम्मीदवार को मिलेगा.

संभल में रोचक मुकाबला : जीतने वाला पहली बार पहुंचेगा संसद, जानिए क्या है समीकरण

संभल सीट पर जबरदस्त मुकाबला होने की उम्‍मीद जताई जा रही है. (प्रतीकात्‍मक)

नई दिल्‍ली :

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में उत्तर प्रदेश की संभल लोकसभा सीट (Sambhal Lok Sabha Seat) पर चुनाव काफी दिलचस्प नजर आ रहा है. संभल लोकसभा सीट को हमेशा से ही हॉट सीट मानी जाती रही है. मुस्लिम बाहुल्य सीट पर इस बार चुनाव बेहद ही रोमांचक होने की उम्मीद है. इस सीट पर भाजपा से परमेश्वर लाल सैनी, समाजवादी पार्टी से दिवंगत सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के विधायक पोते जियाउर्रहमान बर्क उम्मीदवार हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने पूर्व विधायक शौलत अली पर दांव खेला है. इन तीनों ही प्रत्याशियों में खास बात यह है कि जो भी जीतेगा वह पहली बार संसद पहुंचेगा. 

भाजपा उम्‍मीदवार परमेश्‍वर लाल सैनी को 2019 के लोकसभा चुनाव में हार मिली थी. सैनी 2010-2016 में बसपा से एमएलसी रह चुके हैं. उन्‍हें वर्ष 2019 में संभल लोकसभा से भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था और वह दूसरे नंबर पर रहे थे. 2022 में उन्‍होंने बिलारी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और कम अंतर से चुनाव हार गए थे. वहीं सपा ने मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट से सपा विधायक जियाउर्रहमान बर्क को टिकट दिया है. जबकि बसपा के शौलत अली वर्ष 1996 में मुरादाबाद पश्चिम से विधायक रह चुके हैं. 2024 के चुनाव में बसपा ने उन्हें संभल सीट दी है.

वर्ष 2017 से की सियासी सफर की शुरुआत 

सपा प्रत्याशी जियाउर्रहमान बर्क ने अपने सियासी सफर की शुरुआत वर्ष 2017 से की. उन्‍होंने संभल विधानसभा क्षेत्र से एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ा. हालांकि उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. बर्क वर्तमान में मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. अपने दादा डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद सपा ने उन्हें संभल से लोकसभा प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा बसपा प्रत्याशी शौलत अली मुरादाबाद विधानसभा से वर्ष 1981, 1991 और 1993 में चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन जीत का स्वाद नहीं चख सके. हालांकि वर्ष 1996 में मुरादाबाद पश्चिम जो इस समय मुरादाबाद देहात है, उन्‍होंने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और विधायक बने. इसके बाद वर्ष 2007 में रालोद और 2012 में कांग्रेस से चुनाव लड़ा. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 2017 में पर्चा खारिज होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सके थे, अब हाथी पर सवार होकर संभल लोकसभा से प्रत्याशी हैं.  

चुनाव में कांटे की टक्कर   

राजनीतिक विशेषज्ञ विनय कुमार अग्रवाल का कहना है कि संभल लोकसभा सीट पर इस बार चुनाव में कांटे की टक्कर रहेगी. मुख्य मुकाबला सपा और भाजपा के बीच ही होगा. लेकिन उनका यह भी कहना है कि सपा और भाजपा की जीत-हार का कारण बसपा प्रत्याशी हो सकता है, क्योंकि अगर बसपा प्रत्याशी ने दलित और हिंदू वोट काटे तो इसका सीधा फायदा सपा उम्मीदवार को होगा, जबकि बसपा प्रत्याशी ने मुस्लिम वोटों में सेंधमारी की तो कहीं ना कहीं इसका फायदा भाजपा उम्मीदवार को मिलेगा. कुल मिलाकर बसपा प्रत्याशी के ऊपर सपा और भाजपा की जीत-हार का दारोमदार रहेगा. 

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