मंगल ग्रह के लिए भारत का मिशन मंगलयान मंगलवार को कामयाबी के साथ लॉन्च हो गया। आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर छोड़े जाने के क़रीब 45 मिनट बाद मंगलयान पृथ्वी में अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंच गया।
अगले 25 दिन पृथ्वी के आस-पास चक्कर लगाने के बाद वैज्ञानिक मंगलयान को मंगल ग्रह की ओर बूस्टर रॉकेट के सहारे भेजेंगे। करीब 300 दिनों की यात्रा के बाद अगले साल 24 सितंबर को तीसरे अहम चरण में मंगलयान मंगल ग्रह पर अपनी निर्धारित कक्षा में घुसने को पूरी तरह तैयार होगा।
ये दोनों ही चरण बेहद अहम हैं और वैज्ञानिक इसे कामयाब बनाने के लिए पूरी तरह जुटे हैं। मंगलयान अपने साथ कई ख़ास उपकरण लेकर गया है जिनके ज़रिये वह मंगल की आबो हवा का पता लगाएगा। मंगल के वातावरण का बारिकी से विश्लेषण करेगा और इस बात का पता लगाएगा कि क्या मंगल ग्रह पर मीथेन गैस मौजूद है।
मीथेन गैस के होने से इस बात का पता लग सकता है कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन रहा होगा। मंगलयान मिशन की ख़ास बात यह भी है कि इसे भारत में ही विकसित पीएसएलवी सी 25 रॉकेट से कामयाबी के साथ अंतरिक्ष में भेजा गया है।
मंगलयान को 15 महीने के रिकॉर्ड वक्त में तैयार किया गया है, वह भी बड़े ही किफ़ायती तरीके से। इस मिशन में करीब साढ़े चार सौ करोड़ रुपये का खर्च आया है जो मंगल के लिए किसी भी दूसरे मिशन के मुक़ाबले काफ़ी कम है। इस मिशन की कामयाबी के साथ ही भारत एशिया में चीन और जापान को मंगल की दौड़ में पछाड़ देगा।
इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने कहा इस अभियान की शुरुआत काफी शानदार रही है।
इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने भी मंगलयान के प्रक्षेपण पर कहा है कि अभियान की शुरुआत बहुत अच्छी हुई है।
इस मिशन की कामयाबी के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री पद के लिए बीजेपी के दावेदार नरेंद्र मोदी ने भी वैज्ञानिकों को बधाई दी।
इसरो प्रमुख के राधाकृष्णनन ने कहा है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने बेहद कम समय में इस मिशन को लॉन्च करने में मदद की इसलिए इसरो की पूरी कम्यूनिटी को मेरा सलाम। वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के एक हजार से ज्यादा वैज्ञानिक इस मिशन में जुटे हुए हैं। करीब 10 महीने बाद इस मिशन की कामयाबी का पता चलेगा। मंगलग्रह का सफर 20 करोड़ कि.मी है।
1350 किलो के इस सैटेलाइट को 15 महीने के रिकॉर्ड टाइम में तैयार किया गया, जिस रॉकेट के सहारे इसका प्रक्षेपण किया गया उसकी लंबाई 45 मीटर है यानी यह करीब 15 मंजिला इमारत के बराबर थी।
इस रॉकेट का वजन 320 टन है, यानी 50 बड़े हाथियों के बराबर। इस अभियान पर लगभग 450 करोड़ का खर्च आया है। इस मिशन को प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2012 को मंगलयान नाम दिया था।
भारत के इस अभियान के साथ एक अच्छी बात यह है कि कुछ खगोलीय घटनाएं भारत का साथ दे रही हैं और इस वक्त मंगल की दूरी पृथ्वी से आम दिनों के मुकाबले कम है।
अगर भारत का यह मिशन सफल होता है तो मंगल पर पहुंचने वाला भारत पहला एशियाई देश होगा। पहले चीन और जापान इसकी नाकाम कोशिश कर चुके हैं।
वर्ष 1969 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक इसरो ने विभिन्न उद्देश्यों के लिए सिर्फ पृथ्वी के आसपास के अभियान और चंद्रमा के लिए एक अभियान को ही अंजाम दिया है। ऐसा पहली बार है जब राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर के किसी खगोलीय पिंड का अध्ययन करने के लिए एक अभियान भेज रही है।
मंगल के लिए कई देशों द्वारा कुल 40 अभियान भेजे जा चुके हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 21 को ही सफल माना गया है।
मंगल तक पहुंच कर मंगलयान अपने उपकरणों की मदद से वहां वायुमंडल का विश्लेषण करेगा। जो सूंघ सकते हैं, स्वाद ले सकते हैं और हवा में मौजूद चीजें परख सकते हैं। इसमें भारत में ही बने पांच खास उपकरण भी लगे हैं। मंगल पर मिथेन की तलाश भी इसका मकसद है, जिससे लाल ग्रह पर जीवन के निशान मिल सकते हैं।
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