भारतीय सेना के आधिकारिक फेसबुक पेज पर ब्रिगेडियर पीएस गोथरा ने लिखी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली:
किसी आतंकवादी की मौत पर भारतीय सेना का कोई अधिकारी दुःख जताए, और उसे निजी नुकसान की संज्ञा दे, ऐसा अकल्पनीय है, लेकिन ठीक ऐसा ही हुआ दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहे जम्मू एवं कश्मीर में, जब नूर खान उर्फ गुलाम हसन मलिक की मौत हुई. भारतीय सेना के आधिकारिक फेसबुक पेज पर ब्रिगेडियर पीएस गोथरा की ओर से लिखी श्रद्धांजलि को पोस्ट किया गया है, जिसका शीर्षक है - 'नूर खान नहीं रहे, और यह मेरे लिए निजी नुकसान है.'
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परिवार की चौथी पीढ़ी के रूप में भारतीय सेना की सेवा कर रहे ब्रिगेडियर पीएस गोथरा ने बेहद मार्मिक शब्दों में बताया है कि कैसे 1989 में आतंकवादी बन जाने के दो साल बाद नूर खान और उसके साथियों को सुरक्षाबलों ने घेर लिया था, लेकिन वह बचकर भागने की कोशिश में एक इमारत की पहली मंज़िल से कूद गया, और उसका पांव टूट गया. कुछ दूर घिसटकर पहुंचने के बाद उसे NHPC के कुछ कर्मचारियों ने सड़क पर पड़े देखा, और पनाह देकर उसका इलाज करवाया.
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ब्रिगेडियर लिखते हैं, बाद में फरवरी, 1993 में उरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (NHPC) में चीफ इंजीनियर की हैसियत से कार्यरत उनके पिता मेजर जीएस गोथरा (सेवानिवृत्त) को आतंकवादियों के एक अन्य गुट ने किडनैप कर लिया. NHPC कर्मचारियों ने इसके बाद नूर खान से मदद मांगी, जिसने अपने नेटवर्क के ज़रिये न सिर्फ उन्हें ढूंढ निकाला, बल्कि खुद वहां जाकर, अपनी जान खतरे में डालकर उन आतंकवादियों को समझाया, और आधी रात होने तक उनके पिता को सही-सलामत वापस ले आया.
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