सरकार की तरफ से खेल को बढ़ावा देने के लिए लाख दावे किए जाते हैं लेकिन जमीन पर सच्चाई काफी अलग देखने को मिलती है. जिनके प्रशिक्षण के हुनर से प्रदेश और देश में पदक के सपने सरकार और खिलाड़ी देखते हैं वही हाथ आज उत्तर प्रदेश में समोसे बनाने के लिए मजबूर हैं. और मजदूरी कर अपना पेट पाल रहे हैं क्योंकि तकरीबन 450 संविदा पर प्रशिक्षण देने वालों कोच को लॉकडाउन के बाद से यानि तकरीबन आठ महीने से न तो तनख्वाह दी गई है और न ही कांट्रैक्ट को बढ़ाया गया है. ऐसे में जहां एक तरफ इन प्रशिक्षक को रोज़ी रोटी के संकट खड़ा हो गया तो वहीं दूसरी तरफ खिलाड़ी भी प्रशिक्षण से वंचित हो रहे हैं. इस मामले में ये लोग लगातार अपनी आवाज़ उठा रहे हैं लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं.
खो-खो के नेशनल खिलाड़ी रह चुके अनिरुद्ध अपने जीवन यापन के लिए बिजली मिस्त्री का काम करने के लिए मजबूर हैं. वो 2008 से बनारस के सिगरा स्टेडियम में खो खो के प्रशिक्षक थे.अपने हुनर और लगन से अनिरुद्ध ने कई नेशनल खिलाड़ी पैदा किया लेकिन लाकडाउन के बाद से प्रशिक्षण बंद है और सरकार ने भी बीते आठ महीने से इनका मानदेय न देकर इन्हें परेशान कर दिया है. अब ये ठेकेदार के साथ दिहाड़ी पर बिजली का काम करने पर मजबूर हैं.
NDTV से बात करते हुए अनिरुद्ध कहते हैं कि गवर्नमेंट की बेवकूफी है जिसका भोग दंड हम लोगों को मिल रहा है गलती वह कर रहे हो फांसी पर हम चढ़ रहे हैं कहावत सूना है न कि अंधेर नगरी चौपट राजा.अनिरुद्ध की तरह ही लखनऊ में पकौड़ा टिकिया बेचने के लिए मजबूर हैं पावर लिफ्टिंग के कोच शत्रुघ्न लाल. इसी तरह बाराबंकी के तीरंदाजी प्रशिक्षक महेंद्र प्रताप सिंह भी परेशान चल रहे हैं.
वर्षों से मैदान ही जिसका घर हो और खेल ही जिसका जीवन वो लोग इन दिनों. दोनों चीजों से मरहूम कर दिए गए हैं. बॉलीबाल कोच ब्रजेश कुमार यादव का कहना है कि पहले तो विभाग स्वयं हमें रखता था अपनों के प्रशिक्षकों को अब सुनने में आया है कि जेम पोर्टल के द्वारा रखा जाएगा जिसे आउटसोर्सिंग कहा जाएगा एक तरह से ठेकेदारी प्रथा शुरू होगा तो कोई ठेकेदार किचन रखेगा वह निर्णय लेगा और आप जानते हैं कि जब भी कोई ठेकेदार रखेगा तो वह अपनी शर्तों पर रखेगा या नीचे न्यूनतम दर पर रखेगा और वह भी अपने जिले में नहीं बाहर के जिले में रखा जाएगा. तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि हम को रखा जाएगा कि नहीं रखा जाएगा.
कोच के उपलब्ध न होने से प्रदेश और देश के लिए पदक लाने की तैयारी कर रहे खिलाड़ियों को भी अपने भविष्य की चिंता है कि इस व्यवस्था से आखिर वो कैसे अपने लक्ष्य को भेद पायेंगे.ताइक्वांडो खिलाड़ी श्याम अरविंद ने कहा कि सबसे बड़ी दिक्कत हम लोगों को प्रैक्टिस में हो रही है टीचर नहीं है मेरा इंटरनेशनल पार्टिसिपेशन था और उसमें पदक लाने के चांसेस थे. लॉक डाउन होने के कारण मेरा प्रैक्टिस छूट गया और खुद से प्रोजेक्ट करने पर पता नहीं चलता कि किस तरह से किया जाए के कारण हम लोगों को बहुत तकलीफ हो रही है.
संविदा के इन खेल प्रशिक्षकों की समस्या पर उत्तर प्रेदश के खेल निदेशक का कहना है कि ये जो मानदेय के प्रशिक्षक रहते हैं ये अलग अलग ग्रुप के रहते हैं इसमें एनआईएस होते है स्टेट खेले होते होते हैं इनको हमको समय समय पर जहां जरूरत होती है यह विभिन्न जिलों में खिलाड़ियों के उपस्थिति के हिसाब से रखते हैं. चूंकि पूरे देश भर में और विदेशों में खेल प्रशिक्षण शिविर और प्रतियोगिता बंद हो गई तो इनको रखने का कोई औचित्य नहीं था. इसका प्रशासन को अवगत करा दिया है और जब आदेश मिलेगा फिर इनको रखने की हम करवाई करेंगे.
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