- अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन की घटनाएं बढ़ रही हैं जिससे पर्यावरण और पहाड़ियों को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है.
- अवैध खनन ने खत्म की एक चौथाई अरावली, 90 फीसदी बचाने के लिए एकजुट हो रहे लोग.
- पर्यावरणविदों के मुताबिक पिछले दो दशक में अरावली के करीब 35% हिस्से को नुकसान पहुंचा है.
दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक अरावली अपनी पहचान खो रही है. उत्तर में दिल्ली से दक्षिण के गुजरात तक फैली इस पर्वतमाला का दो तिहाई हिस्सा राजस्थान से गुजरता है. लेकिन लगातार हो रहे अवैध खनन से अब अरावली का हिस्सा गायब हो रहा है. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गढ़ी गई नई परिभाषा ने इसके अस्तित्व पर ही संकट पैदा कर दिया है. विशेषज्ञों को डर है कि इससे खनन गतिविधियां और बढ़ेंगी. अरावली में हो रहे अवैध खनन की पड़ताल करने एनडीटीवी की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची.
चोरी छिपे चल रहा है माइनिंग का खेल
क्रेशर की आवाज और डंपरों की आवाजाही के निशानों का पीछा करते हुए एनडीटीवी के रिपोर्टर खनन माफियाओं के गढ़ में पहुंचे. अलवर एनसीआर का इलाका खनन से बुरी तरह प्रभावित है. सबसे पहले हमारी टीम भानगढ़ के पास पहुंची. यहां कई खानें है, कागजों में ये बंद है. लेकिन इसके बावजूद आसपास रखी मशीनें और स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां चोरी छिपे अभी भी माइनिंग का खेल चल रहा है. यहां हमारी टीम को कई खान ऐसी मिली जिसके ठीक पीछे अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियां है. लेकिन वहां जमी हुई मशीनें इस बात की गवाही दे रही थी यहां माइनिंग हो रही है.
माफियाओं की दादागिरी
इसके बाद हमारी टीम सरिस्का अभ्यारण्य क्षेत्र के टहला के पास पहुंची. यहां लोगों से खान तक जाने का रास्ता पहुंचा तो लोगों ने मना कर दिया. हमें भी वहां जाने से रोका. लोगों ने बताया कि इलाके में खनन माफियाओं की दादागिरी है. इसलिए कोई उनके बारे में कुछ नहीं बता सकता, ना ही हम साथ चल सकते हैं. यहां आए दिन खनन माफिया उनके खिलाफ बोलने वाले लोगों यहां तक कि पुलिसकर्मियों और आरटीओ के अधिकारियों पर भी हमला कर देते हैं.
एनडीटीवी की टीम कई खेतों के रास्ते से एक खान के पास पहुंची. वहां कुछ लोग काम भी कर रहे थे. हमारी टीम ने कुछ रिकॉर्ड करने की कोशिश की तो कुछ लोगों ने आवाज देकर रोकने की कोशिश की. इसके बाद वे लोग काफी दूर तक टीम को देखते रहे. पीछा करने की कोशिश भी की. यहां जगह-जगह पर कई खानें बनी हुई है. कुछ इसी तरह का हाल सीकर के नीमकाथाना का है.
पर्यावरणविदों के मुताबिक पिछले दो दशक में अरावली के करीब 35% हिस्से को नुकसान पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट में CEC की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 तक राजस्थान में अरावली की 25 प्रतिशत प्रभावित नष्ट हो चुकी है.
अवैध खनन और अतिक्रमण के खतरों के बीच, पर्यावरण मंत्रालय की अरावली के संरक्षण को लेकर दी गई एक नई परिभाषा ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है. दरअसल, पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में नए सुझावों का ड्राफ्ट पेश किया है. इसके मुताबिक अब केवल 100 मीटर ऊंचाई वाली पर्वतमाला को ही अरावली का संरक्षित हिस्सा माना जाएगा. इस नए नियम के लागू होने से अरावली का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा अब मूल पर्वतमाला का हिस्सा नहीं माना जाएगा. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया की इंटरनल असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान के 15 जिलों में अरावली की 12 हजार 81 पहाड़िया 20 मीटर से ऊंची है. इनमें से केवल 1 हजार 48 यानी 8.7% ही 100 मीटर से ऊंची है. आंकड़ों के मुताबिक 1 हजार 594 पहाड़िया 80 मीटर, 2 हजार 656 पहाड़िया 60 मीटर, 5 हजार 9 पहाड़िया 40 मीटर से ऊंची है. वहीं लगभग 1 लाख 7 हजार 494 पहाड़िया 20 मीटर की ऊंचाई तक है. यानी केवल राजस्थान में ही करीब 1 लाख 16 हजार 753 पहाड़िया जो कि 100 मीटर से कम है, अब संरक्षित अरावली की परिभाषा से बाहर हो गई है.
"अरावली नष्ट हो जाएगी"
पर्यावरणविद एल के शर्मा ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय की जो नई परिभाषा है उसे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. पहली बात तो यह है कि इस परिभाषा में अरावली की पहाड़ी की ऊंचाई मानक समुद्र तल से ना मापकर जमीन से मापी जा रही है, जो कि गलत है. दूसरा इस नियम से जो भी 100 मीटर ऊंचाई से कम की पहाड़ियां हैं उन पर खनन की खुली छूट मिल जाएगी. इससे अवैध खनन भी बढ़ेगा और अरावली नष्ट हो जाएगी. इसके बाद से ही अब अरावली को बचाने के लिए नया अभियान छिड़ गया है.
सामाजिक कार्यकर्ता और पीपल फॉर अरावली की संस्थापक सदस्य नीलम आहलूवालिया ने बताया कि अरावली के समीप रहने वाले लोगों को ये मंजूर नहीं है. इसके खिलाफ हम जन अभियान चलाएंगे. वे कहती हैं कि राजस्थान के पूर्वी जिलों भरतपुर, करौली, धौलपुर, सवाई माधोपुर और बूंदी, वहीं दक्षिण में प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ में अरावली मौजूद है. लेकिन चौंकाने वाली बात है कि ड्राफ्ट में उसे मेंशन ही नहीं किया गया है.
राजस्थान से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहल करते हुए इसके लिए एक अभियान शुरू कर दिया है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल की प्रोफाइल पिक्चर पर सेव अरावली बदलकर सभी से आह्वान किया कि सभी अपनी डीपी को बदलें. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने भी कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले की विस्तृत समीक्षा करेगी. सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है कि अरावली से कोई छेड़छाड़ ना हो.
आखिर क्यों जरूरी है अरावली...
1. भूजल रिचार्ज - अरावली की पहाड़ियां राजस्थान में भूजल रिचार्ज करने के लिए अहम योगदान निभाती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अरावली सालाना करीब 20 लाख लीटर प्रति हेक्टेयर भूजल रिचार्ज करने में योगदान देती हैं.
2. भूजल रिचार्ज - विशेषज्ञों के मुताबिक अरावली की पहाड़ियां राजस्थान के पूर्वी हिस्से में अच्छी बारिश और यहां की हरियाली के लिए उत्तरदायी हैं. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से इस पर्वतमाला के कारण ही पूरे राजस्थान में बरसता है. अगर यह पर्वतमाला ना हो तो मानसून प्रदेश की बजाय पाकिस्तान में जाकर बरसे।.
3. प्रदूषण को रोकना - सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीणा के मुताबिक अरावली पर्वतमाला की करीब 692 किमी लंबी रेंज राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के लिए ढाल की तरह काम करती है. यह पर्वतमाला रेगिस्तान से आने वाली धूल को रोकती है. साथ ही, कार्बन पार्टिकल और डस्ट को भी रोकती है.
4. परिस्थिति तंत्र - अरावली पर्वतमाला तीन अरब साल पुरानी है. इस पर्वतमाला के आसपास कई सभ्यता बसी और पनपी है. इसके साथ ही इसके जंगलों में कई विविध वनस्पतियां और वन्यजीव रहते हैं. अरावली के नष्ट होने से पर्यावरण नष्ट होगा, जिससे यह परिस्थिति तंत्र भी बिगड़ेगा.
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