"मुझे मेरी फैमिली को सपोर्ट करना है, मां की आधी सैलरी बाबा की दवाइयों में जाती है...कम्मो की शादी नहीं हो रही है क्योंकि लड़के वालों को मारुति 800 चाहिए... पिछले पांच सालों में मां ने एक साड़ी तक नहीं खरीदी.मुझे अच्छी नौकरी के लिए अच्छे ग्रेड्स चाहिए...", थ्री इडियट्स फिल्म की ये पंक्तियां, कमोबेश IIT की पढ़ाई या उसकी तैयारी कर रहे हर उस छात्र पर लागू होती हैं, जो मध्यवर्गी परिवार से आते हैं. और अपने परिवार को गरीबी के दलदल से बाहर निकालने का सपना देखते हैं. उन्हें पता होता है कि अगर IIT में सेलेक्शन हो गया तो पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें जो पैकेज मिलेगा उससे वो ये कर सकते हैं. लेकिन उनके यही सपने कई बार उनकी जिंदगी पर भारी पड़ जाते हैं. इस फिल्म में भी राजू के साथ कुछ ऐसा ही होता है. वो अपने सपनों और जिम्मेदारियों की वजह से टूट जाता है और खुदकुशी करने की कोशिश करता है. ये कहानी सिर्फ किसी फिल्म तक ही सीमित नहीं है. बल्कि बीते 20 साल में ना जाने कितने ही ऐसे 'राजू' हुए जो IIT की पढ़ाई के आगे टूट गए और उनके सपने उनके सामने ही बिखर कर रह गए.
IIT में दाखिले के बाद क्या और बढ़ रहा है प्रेशर ?
IIT में पढ़ना देश के हर छात्र का एक सपना होता है. देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला लेने के लिए छात्रों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. तैयारी में कहीं कोई चूक ना हो जाए इसे लेकर हमेशा खुदको मानसिक तौर पर मजबूत रहना पड़ता है. दिन-रात की जी तोड़ मेहनत के बाद जब उनका IIT में दाखिला होता है तो लगता है मानों उनका संघर्ष और तनाव अब कम होना शुरू हो जाएगा. वो कोर्स पूरा होते ही कैंपस प्लेसमेंट से बड़ी-बड़ी नौकरियों में मिलने वाले पैकेज के हसीन सपने देखना शुरू कर देते हैं. लेकिन उनके सपनों के बीच आ खड़ी होती है IIT की पढ़ाई. IIT में दाखिले के बाद जैसे ही पढ़ाई शुरू होती है तो इन छात्रों को जल्द ही पता चल जाता है कि जितनी तैयारी उन्होंने IIT में दाखिला लेने के लिए की थी उससे कहीं ज्यादा पढ़ाई अब उन्हें यहां से पास होकर एक बेहतर नौकरी लेने के लिए करनी होगी.
उनके सामने परिवार की अपेक्षाओं पर खड़ा होने के साथ-साथ खुद की काबिलियत को साबित करना का दबाव इतना बढ़ने लगता है कि वह कोर्स के करने के दौरान तनाव में रहने लगते हैं. यही वह समय होता है जब ज्यादातर बच्चे इस दवाब को झेल नहीं पाते और उनके सपनों पर उनका ये तनाव हावी होने लगता है. जिसका परिणाम ये होता है कि ये बच्चे पढ़ाई के बीच में ही जिंदगी की जंग हार जाते हैं.
IIT गुवाहाटी में छात्रा की की मौत पर प्रदर्शन
असम के गुवाहाटी में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में कंप्यूर साइंस की पढ़ाई कर रहे तृतीय वर्ष के छात्र के सुसाइड करने का मामला ताजा है. छात्र ने हॉस्टल में आत्महत्या की. घटना की जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है. इस घटना को लेकर IIT गुवाहाटी के छात्र गुस्सा हैं और वह इस घटना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना है कि जिस छात्र ने आत्महत्या की है उसके ऊपर काफी दबाव था. इस वजह से वह मानसिक रूप से परेशान था. आत्महत्या करने वाला छात्र बीते कुछ समय से शारीरिक रूप से भी स्वस्थ नहीं था, उसका इलाज भी चल रहा था, और इसी वजह से वह अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था. प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना है कि जिस छात्र ने आत्महत्या की है उसने पहले आईआईटी प्रशासन को अपने बारे में बताया था, उसने चिकित्सा प्रमाण पत्र भी जमा कराए थे लेकिन उसपर किसी ने विचार नहीं किया. वह इस बात से भी काफी दुखी था. आपको बता दें कि आईआईटी गुवाहाटी में छात्र द्वारा खुदकुशी करने के साथ ही इस साल अब तक देश के अलग-अलग आईआईटी में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या अब चार हो चुकी है.
सबसे ज्यादा आत्महत्या IIT मद्रास में हुई है
RTI में खुलासा हुआ है कि IIT में पढ़ाई के दौरान आत्महत्या करने की सबसे ज्यादा घटनाएं IIT मद्रास में हुई जबकि दूसरे नंबर पर IIT कानपुर है. बीते 20 सालों में IIT मद्रास में 26 छात्रों ने आत्महत्या की जबकि IIT कानपु में ये आंकड़ा 18 छात्रों का है. जबकि IIT खड़कपुर में 13 और IIT बॉम्बे में 10 छात्रों ने अपनी जान ली.
अकेडमिक और सोशल प्रेशर की वजह से हो रही है ऐसी घटनाएं
जानकार बताते हैं कि IIT छात्रों के इतनी बड़ी संख्या में आत्महत्या करने के पीछे के प्रमुख कारणों से एक कारण है उनके ऊपर पड़ने वाला अकेडमिक और सोशल प्रेशर. देश के अलग-अलग शहरों में IIT की तैयारी करने के दौरान उनके ऊपर भी प्रेशर होता है लेकिन वो सिर्फ IIT में दाखिले का होता है. ऐसे में वो तय सिलेबस को कंठस्त कर जैसे-तैसे करके IIT में दाखिला ले लेते हैं. लेकिन दाखिले के बाद उन्हें मालूम पड़ता है कि जो पढ़ाई उन्होंने कोचिंग सेंटर में की है थी वो IIT कैंपस की पढ़ाई से बिल्कुल ही अलग है. दूसरी तरफ IIT में दाखिला होने के साथ ही उनके ऊपर घर और समाज की भी नजर रहती है. सबको लगता है कि अब बच्चे का दाखिला IIT में हो गया तो आने वाले सालों में उसे मोटे पैकेज वाली एक नौकरी जरूर मिलेगी. छात्र भी परिवार के अपेक्षाओं को पूरा करने की हर संभव कोशिश करते हैं. लेकिन जब उन्हें लगता है कि उनके लिए अकेडमिक के साथ-साथ सोशल प्रेशर को हैंडल करने की अब ताकत नहीं बची है तो वो टूट जाते हैं. और आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा लेते हैं.
समय-समय पर होती रही है IIT एजुकेशन में सुधार की बात
छात्रों पर बढ़ते दबाव को देखते हुए बीते कई सालों से इस बात को समय-समय पर उठाया जाते रहा है कि इस तरह की घटनाओं को कम करने के लिए सबसे जरूरी है कि बगैर समय गंवाए IIT के एजुकेशन सिस्टम में सुधार किया जाए. एजुकेशन सिस्टम को छात्रों के अनुरूप बनाया जाए ताकि उनके ऊपर से दबाव कम हो. कहा तो यहां तक भी जाता है कि मौजूदा समय में जो एजुकेशन सिस्टम है उससे सीधे तौर पर ना सही लेकिन दबाव फैकल्टी और पैरेंट्स पर भी पड़ता है. अगर इस सिस्टम में सुधार किया गया तो इससे एक साथ सभी के ऊपर पड़ने वाला दबाव कम होगा. बीते साल दर्शन सोलंकी नाम के छात्र की मौत के बाद जब IIT में इंटरनल सर्वे कराया गया तो 61 फीसदी छात्रों ने माना कि छात्रों के आत्महत्या करने की प्रमुख वजह अकेडमिक स्ट्रेस और प्रेशर ही है. ऐसे में एजुकेशन सिस्टम में सुधार की जरूरत कितनी जरूरी है ये अब कोई छुपी हुई बात नहीं है.
UGC ने भी मेंटल हेल्थ पर दिया जोर
पिछले साल दर्शन सोलंकी नाम के IIT छात्र की खुदकुशी के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( UGC) ने भी माना कि IIT छात्रों की फिटनेस और मेंटल हेल्थ पर समय रहते ध्यान देने के जरूरत है. UGC ने कुछ महीने पहले भी कहा था कि सभी उच्च संस्थानों को जरूरतमंद छात्रों के फायदे के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध मुफ्त मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन नंबर का व्यापक प्रचार करने की जरूरत है.
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