आईआईएम अहमदाबाद की फाइल फोटो
केंद्र के मानव संसाधन मंत्रालय में लगातार विवादों के बीच एक विवाद और बढ़ने वाला है। केंद्र के प्रस्तावित आईआईएम बिल को लेकर मंत्रालय और आईआईएम के निर्देशकों के बीच तनाव बढ़ रहा है।
आईआईएम अहमदाबाद के डायरेक्टर आशीष नंदा और चेयरमैन एएम नायक ने खुले तौर पर कह दिया है कि वो इस बिल से नाखुश हैं और अगर ये बिल संसद में पारित किया गया, तो आईआईएम जैसी संस्थाएं दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा खो देंगी। आइए जानते हैं कि आखिर विवाद क्या है?
मानव संसाधन मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बिल, 2015 का ड्राफ्ट प्रस्तुत किया है। इस ड्राफ्ट में ऐसे कई प्रावधान हैं, जिन्हें लेकर काफी विवाद होनेवाला है। इन प्रावधानों के मुताबिक, आईआईएम के बोर्ड वैसे तो संस्थान के कामकाज में प्रमुख भूमिका निभाएंगे ही, लेकिन बोर्ड के ऊपर भी केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया एक विज़िटर होगा, जो बोर्ड के फैसलों को चाहे तो बदल भी सकता है।
इस बिल के सेक्शन 35 और 36 को देखें तो ज्यादातर फैसलों पर केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी होगी, जिसमें फीस तय करने से लेकर, डायरेक्टर व चेयरमैन तक के कार्यकाल पर भी केंद्र सरकार का फैसला ही आखिरी होगा। मकान बनाने के लिए हो रहे खर्च को लेकर भी केंद्र सरकार के पास जाना पड़ेगा, जिससे आईआईएम के बोर्ड को लगता है कि इस तरह के फैसले से आईआईएम की स्वायत्तता पूरी तरह से नेस्तनाबूद हो जाएगी।
महत्वपूर्ण है कि आईआईएम अहमदाबाद देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है। दुनियाभर के प्रमुख मैनेजमेंट संस्थानों में इसका शुमार होता है, ऐसे में अगर वो भी अपनी स्वायत्तता के मुद्दे पर केंद्र सरकार से भिड़ता है, तो सरकार की नीतियों की किरकिरी हो सकती है।
फिलहाल तो आशीष नंदा ने कहा है कि वह मानव संसाधन मंत्रालय के साथ बातचीत कर रहे हैं और उन्हें उमीद है कि कुछ रास्ता निकल सकेगा। दूसरी ओर जानकारी यह है कि देश में ज्यादातर आईआईएम के अध्यापक और संचालक मंडलों ने इन प्रावधानों पर अपनी आपत्ति जताने का मन बना लिया है। आईआईएम कोलकाता के अध्यापक भी गुरुवार को अपने बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों से मिले थे, जिनके सामने उन्होंने अपनी आपत्ति जताई।
आनेवाले दिनों में इस बात की भी तैयारी चल रही है कि अगर मानव संसाधन विकास मंत्रालय उनकी मांगें नहीं मानेगा, तो सभी आईआईएम मिलकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं।
आईआईएम अहमदाबाद के डायरेक्टर आशीष नंदा और चेयरमैन एएम नायक ने खुले तौर पर कह दिया है कि वो इस बिल से नाखुश हैं और अगर ये बिल संसद में पारित किया गया, तो आईआईएम जैसी संस्थाएं दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा खो देंगी। आइए जानते हैं कि आखिर विवाद क्या है?
मानव संसाधन मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बिल, 2015 का ड्राफ्ट प्रस्तुत किया है। इस ड्राफ्ट में ऐसे कई प्रावधान हैं, जिन्हें लेकर काफी विवाद होनेवाला है। इन प्रावधानों के मुताबिक, आईआईएम के बोर्ड वैसे तो संस्थान के कामकाज में प्रमुख भूमिका निभाएंगे ही, लेकिन बोर्ड के ऊपर भी केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया एक विज़िटर होगा, जो बोर्ड के फैसलों को चाहे तो बदल भी सकता है।
इस बिल के सेक्शन 35 और 36 को देखें तो ज्यादातर फैसलों पर केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी होगी, जिसमें फीस तय करने से लेकर, डायरेक्टर व चेयरमैन तक के कार्यकाल पर भी केंद्र सरकार का फैसला ही आखिरी होगा। मकान बनाने के लिए हो रहे खर्च को लेकर भी केंद्र सरकार के पास जाना पड़ेगा, जिससे आईआईएम के बोर्ड को लगता है कि इस तरह के फैसले से आईआईएम की स्वायत्तता पूरी तरह से नेस्तनाबूद हो जाएगी।
महत्वपूर्ण है कि आईआईएम अहमदाबाद देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है। दुनियाभर के प्रमुख मैनेजमेंट संस्थानों में इसका शुमार होता है, ऐसे में अगर वो भी अपनी स्वायत्तता के मुद्दे पर केंद्र सरकार से भिड़ता है, तो सरकार की नीतियों की किरकिरी हो सकती है।
फिलहाल तो आशीष नंदा ने कहा है कि वह मानव संसाधन मंत्रालय के साथ बातचीत कर रहे हैं और उन्हें उमीद है कि कुछ रास्ता निकल सकेगा। दूसरी ओर जानकारी यह है कि देश में ज्यादातर आईआईएम के अध्यापक और संचालक मंडलों ने इन प्रावधानों पर अपनी आपत्ति जताने का मन बना लिया है। आईआईएम कोलकाता के अध्यापक भी गुरुवार को अपने बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों से मिले थे, जिनके सामने उन्होंने अपनी आपत्ति जताई।
आनेवाले दिनों में इस बात की भी तैयारी चल रही है कि अगर मानव संसाधन विकास मंत्रालय उनकी मांगें नहीं मानेगा, तो सभी आईआईएम मिलकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं।
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