बिपिन प्रीत सिंह, मोबाइल वॉलेट कंपनी मोबिकविक के संस्थापक हैं
नई दिल्ली:
बिपिन प्रीत सिंह को 30 साल पहले की वो रात ठीक से याद है जब उन्हें अपना घर छोड़कर एक शरणार्थी कैंप में आसरा लेना पड़ा था। उस बेहद मुश्किल दौर को याद करते हुए मोबाईल वॉलेट कंपनी मोबिकविक के संस्थापक बिपिन कहते हैं कि कैंप में बिताईं वो चंद रातें उनसे भुलाए नहीं भूलती।
बिपिन ने बताया 'मैं सिर्फ पांच साल का था लेकिन मुझे वो रात अच्छे से याद है, हुड़दंगी हमारे घर के बाहर जमा हो गए थे और हमें डर लग रहा था।'
31 अक्टूबर 1984, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके कुछ घंटे बाद से ही देश भर में दंगें भड़क गए थे जिसमें सिखों को निशाना बनाया जा रहा था।
अब यहां गुज़ारा नहीं
उस वक्त बिपिन के पिता ओड़िशा के राउरकेला में किताबों की दुकान चलाते थे। लेकिन दंगों में उनकी दुकान जल के स्वाह हो गई और मजबूरी वश उनके परिवार को पास ही के राहत कैंप में शरण लेनी पड़ी।
राउरकेला में गुज़ारा मुश्किल हो रहा था इसलिए बिपिन के परिवार ने एक नई शुरूआत के लिए दिल्ली जाने का फैसला किया।
1997 में पहली बार में ही प्रवेश परीक्षा पास करने के बावजूद बिपिन अपने आईआईटी के सपने को पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और कोर्स की फीस देने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगे।
2002 से 2009 के बीच चार नौकरियां बदलने के बाद उनकी मुलाकात उपासना टाकू से हुई जो अब उनकी पत्नी हैं और मोबिकविक की सहसंस्थापक भी।
500 करोड़ डॉलर का सपना
स्टार्ट अप आयडिया के लिए परिवार की रज़ामंदी न मिलने के बावजूद इन दोनों ने वर्चुअल वॉलेट मार्केट की संभावनाओं पर गौर किया और इसके साथ ही मोबिकविक कंपनी की शुरूआत हुई।
आज मोबिकविक का दावा है कि उसके पास 2 करोड़ से ज्यादा यूज़र हैं और कंपनी का मक़सद इस आंकड़े को 10 करोड़ और भुगतान को 500 करोड़ डॉलर के पार ले जाना हैं।
बता दें कि वर्चुअल मोबाइल वॉलेट के ज़रिए सिर्फ मोबाइल के ज़रिए कहीं भी भुगतान किया जा सकता है। यानि आप जिस सुपरमार्केट से सामान खरीदते हैं अगर वह किसी मोबाइल वॉलेट कंपनी की लिस्ट में है तो बिना किसी कार्ड या नकद के सिर्फ मोबाइल के ज़रिए ही आप सामान का भुगतान कर सकते हैं।
अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी पेटीएम से मोबिकविक को तगड़ी टक्कर मिल रही है। लेकिन बिपिन को भरोसा है कि पिछले साल से तीन गुना तरक्की करने के बाद वह जल्द ही अपना अलग मुक़ाम हासिल कर लेंगे।
बिपिन ने बताया 'मैं सिर्फ पांच साल का था लेकिन मुझे वो रात अच्छे से याद है, हुड़दंगी हमारे घर के बाहर जमा हो गए थे और हमें डर लग रहा था।'
31 अक्टूबर 1984, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके कुछ घंटे बाद से ही देश भर में दंगें भड़क गए थे जिसमें सिखों को निशाना बनाया जा रहा था।
अब यहां गुज़ारा नहीं
उस वक्त बिपिन के पिता ओड़िशा के राउरकेला में किताबों की दुकान चलाते थे। लेकिन दंगों में उनकी दुकान जल के स्वाह हो गई और मजबूरी वश उनके परिवार को पास ही के राहत कैंप में शरण लेनी पड़ी।
राउरकेला में गुज़ारा मुश्किल हो रहा था इसलिए बिपिन के परिवार ने एक नई शुरूआत के लिए दिल्ली जाने का फैसला किया।
1997 में पहली बार में ही प्रवेश परीक्षा पास करने के बावजूद बिपिन अपने आईआईटी के सपने को पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और कोर्स की फीस देने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगे।
2002 से 2009 के बीच चार नौकरियां बदलने के बाद उनकी मुलाकात उपासना टाकू से हुई जो अब उनकी पत्नी हैं और मोबिकविक की सहसंस्थापक भी।
500 करोड़ डॉलर का सपना
स्टार्ट अप आयडिया के लिए परिवार की रज़ामंदी न मिलने के बावजूद इन दोनों ने वर्चुअल वॉलेट मार्केट की संभावनाओं पर गौर किया और इसके साथ ही मोबिकविक कंपनी की शुरूआत हुई।
आज मोबिकविक का दावा है कि उसके पास 2 करोड़ से ज्यादा यूज़र हैं और कंपनी का मक़सद इस आंकड़े को 10 करोड़ और भुगतान को 500 करोड़ डॉलर के पार ले जाना हैं।
बता दें कि वर्चुअल मोबाइल वॉलेट के ज़रिए सिर्फ मोबाइल के ज़रिए कहीं भी भुगतान किया जा सकता है। यानि आप जिस सुपरमार्केट से सामान खरीदते हैं अगर वह किसी मोबाइल वॉलेट कंपनी की लिस्ट में है तो बिना किसी कार्ड या नकद के सिर्फ मोबाइल के ज़रिए ही आप सामान का भुगतान कर सकते हैं।
अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी पेटीएम से मोबिकविक को तगड़ी टक्कर मिल रही है। लेकिन बिपिन को भरोसा है कि पिछले साल से तीन गुना तरक्की करने के बाद वह जल्द ही अपना अलग मुक़ाम हासिल कर लेंगे।
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