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बारिश, भूस्खलन और तबाही... उत्तराखंड के सैकड़ों गांव आज भी कर रहे हैं विस्थापन का इंतजार

उत्तराखंड में विस्थापन एक बहुत बड़ी समस्या है. तमाम वायदों और कोशिशों के बावजूद इसमें कोई सुधार नहीं हो रहा है. आने वाले दिनों में इस तरह की और भी समस्याएं बढ़ने वाली है. देखें खास रिपोर्ट.

बारिश, भूस्खलन और तबाही... उत्तराखंड के सैकड़ों गांव आज भी कर रहे हैं विस्थापन का इंतजार
देहरादून:

आपदा की दृष्टि से उत्तराखंड संवेदनशील है. यही वजह है कि राज्य के सैकड़ों गांव सालों से आज भी विस्थापन का इंतजार कर रहे हैंं क्योकि कहीं जमीन को लेकर विवाद तो कहीं प्रस्ताव लटके हैं. इसके अलावा कम मुआवजा भी विस्थापन में रोड़े अटका रहा है, पर विस्थापन की राह देख रहे इन गांव में रहने वाले लोग खौफ के साए में जी रहे हैं. जब भी मानसून सीजन आता है, कुछ ना कुछ आफत जरूर लेकर आता है. कहीं सड़कों पर भूस्खलन या फिर मालवा आने के कारण सड़कें बह जाती हैं.

डर के साए में जी रहे ग्रामीण

बीते शनिवार को टिहरी जिले के बूढ़ा केदार क्षेत्र के तिनगढ़ गांव पर पहाड़ काल बना हुआ था.  गनीमत यह रही कि लोगों को पहले ही इस गांव से हटा लिया गया था, लेकिन जिस तरीके से गांव के ऊपर भूस्खलन हुआ है. उससे बड़ा नुकसान हो सकता था. इसके अलावा उत्तराखंड के नैनीताल से लगे खूपी गांव में सैकड़ों परिवार हर रोज रातभर डर के साये में जीने को मजबूर है.

गांव का अस्तित्व खतरे में

नैनीताल के आसपास की अधिकांश पहाड़ियां भूस्खलन के कारण लगातार कमजोर हो रही हैैं. भूस्खलन से नैनीताल का खूपी गांव पिछले कई दशकों से प्रभावित है. खुपी गांव की तलहटी में हो रहे भू कटाव से कई घरों में बड़ी - बड़ी दरारें पड़ गई हैं, जिससे गांव का अस्तित्व पर खतरा तो उत्पन्न हो रहा है. 

ग्रामीणों की मांग

ग्रामीणों का कहना है कि नए मकान में दरारें आ चुकी है. ग्रामीणों ने कहा कि 2013 में आपदा आई थी, इसके बावजूद प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया.  हर साल 8 से 10 मकान टूटे जा रहे हैं और इसी तरीके से रहा तो आपदा आएगी तो पूरा गांव नीचे चला जाएगा. ग्रामीणों ने कहा कि विस्थापन के लिए बेशक कहा जहा है, मगर हमें ऐसी जगह मिलनी चाहिए, जहां खेत के लिए जगह और नौकरी की व्यवस्था हो.

बारिश से तबाही

पिछले हफ्ते चमोली जिले में भी भारी बारिश के चलते गांव में मालवा लोगों के घरों में घुस गया था. जिससे वहां पर भारी नुकसान हुआ. गांव वालों का कहना है कि सारी पूंजी इस घर में लगाई थी वह भी बह गई है. अब बहुत संकट आ गया है. राशन पानी सब बह गया गया घर है.

  1. 2015 के सर्वेक्षण में 395 गांव विस्थापन की दृष्टि से संवेदनशील माने गए
  2. 2012 से 8 फरवरी 2024 तक 212 गांव का विस्थापन किया गया
  3. अभी भी 180 से ज्यादा गांव विस्थापित होने का कारण इंतजार

वैसे सीएम से लेकर मंत्री और अधिकारी आपदा की मार झेल रहे गांव का दौरा कर चुके हैं और विस्थापन की बात भी कर रहे. राज्य के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने टिहरी के बूढ़ा केदार क्षेत्र का दौरा भी किया और लोगों की समस्याएं भी जानी. वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल भी मानते हैं कि  तिन गढ़ गांव की ये पुरानी मांग है कि उनको विस्थापित किया जाए. इस पर हम बातचीत कर रहे हैं जमीन तलाश कर रहे हैं, उनकी सिर्फ एक मांग है विस्थापन की इसके अलावा जिलाधिकारी भी जमीन तलाश कर रहे हैं जैसी जमीन मिलेगी उन लोगों को विस्थापित किया जाएगा.

क्या है सामाधान?

लेकिन आज भी सैकड़ो गांव ऐसे हैं जो विस्थापन का इंतजार कर रहे हैं इनमें कई तरह की परेशानियां आती है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव विनोद सुमन कहते हैं कि विस्थापन करने में कई तरह की परेशानियां आती है. विस्थापन के लिए हम जमीन जहां देखते हैं. आमतौर पर लोग अपने परिवार अपने आसपास के रिश्तेदारों से, सामाजिक सरोकारों से पुश्तैनी जमीनों से कई बार जमीन हम जहां देखते हैं. वहां उनको पसंद नहीं आती है जहां पर वह जा रहे हैं. वहां के लोगों द्वारा आपत्ति की जाती है. जहां जमीन देख रहे हैं कुछ लोग तैयार होते हैं और कुछ लोग नहीं कई तरह की समस्याएं आती है और मुआवजा जो सरकार ने तय किया है वह दिया जाता है.

वैसे हर बार जब आपदा आती है, उसके बाद ही सरकार और सिस्टम को विस्थापन का इंतजार कर रहे गांव की याद आती है. लेकिन हर बार आपदा गुजर जाती है और विस्थापन का इंतजार ग्रामीण करते रह जाते है. यही वजह है सैंकड़ो गांव भूस्खलन की जद में है. आने वाले दिनों में और भी समस्याएं आने वाली हैं.

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