दुनिया के बड़े अमीर देश कोरोना के खिलाफ लड़ाई जीतने का दावा करने लगे है. दुनिया की 47 फीसदी आबादी को कोरोना वैक्सीन की कम से एक डोज लग भी चुकी है. लेकिन दुनिया के गरीब देशों में महज 2.3 फीसदी लोगों को ही कोरोना का टीका लगा है. अमीर देशों में 20 से ज्यादा ऐसे देश हैं, जहां आधी से ज्यादा आबादी को कोरोना वैक्सीन लग चुकी है. डा. सुभाष सालुंके का कहना है कि अगर अमीर और गरीब देशों के बीच ऐसी असमानता रही तो कोरोना दुनिया कैसे खत्म होगा.
अगर सभी देशों में कोविड वैक्सीनेशन समान रूप से नहीं हुआ तो कोरोना की तीसरी लहर को कैसे रोका जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया औऱ न्यूजीलैंड जैसे देश भी मान चुके हैं कि सिर्फ एयर ट्रैफिक को रोक कर कोविड-19 के संक्रमण को रोका नहीं जा सकता. डा. सुभाष सालुंके का कहना है कि कोवैक्स प्रोग्राम के जरिये अमीरों और गरीबों के बीच टीकाकरण की इस खाई को खत्म किया जा सकता है. इसके लिए अमीर देशों को आगे आकर मदद करनी होगी.
सालुंके ने कहा कि अगर किसी को विदेश में खासकर जोखिम वाले गरीब देशों में काम करने जाना है तो कोरोना के दोनों टीके लेकर ही जाना चाहिए. वहां भी कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना जरूरी है. उधर, अमेरिका जैसे कई देशों में लोगों को कोरोना की बूस्टर डोज लगाने की कवायद भी शुरू हो गई है. जबकि गरीब देश पहली खुराक के लिए भी जूझ रहे हैं. इस पर डॉकजेनी (Docgenie) संस्था की संस्थापक डॉक्टर रचना कुचेरिया का कहना है .
कुचेरिया ने कहा कि अमीर औऱ गरीब देशों के बीच टीकाकरण की खाई बढ़ रही है. डब्ल्यूएचओ, यूएन और अन्य देशों की एजेंसियों को गंभीरता से इस पर काम करना होगा. अमीर देश इसमें स्वार्थी और सिर्फ अपने देश अपने बारे में सोचकर खुद को सुरक्षित नहीं कर सकते. डब्ल्यूएचओ ने लक्ष्य रखा है कि कम से कम इस साल के अंत तक 40 फीसदी आबादी को वैक्सीनेशन का कम से कम एक डोज लगाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके.
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