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This Article is From Jun 03, 2023

अगर 'कवच' होता तो टल सकता था ओडिशा का दर्दनाक ट्रेन हादसा, जानिए कैसे काम करता है ये सिस्टम?

रेल मंत्रालय ने पिछले साल कवच टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग की थी. रेलवे का दावा है कि इस टेक्नोलॉजी से उसे जीरो एक्सीडेंट के अपने लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी. 

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कवच के जरिए सिग्‍नल जंप करने पर ट्रेन खुद ही रुक जाएगी.

ओडिशा के बालासोर में हुए दर्दनाक हादसे ने हर किसी को गमगीन कर दिया है. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक ही सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि 900 से ज्यादा घायलों की खबर आ रही है. भारतीय रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने कहा कि इस मार्ग पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी. इस हादसे के बाद कवच को लेकर फिर बात होने लगी है. दरअसल रेल मंत्रालय ने पिछले साल कवच टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग की थी. इसका प्रचार किया गया था.

रेलवे का दावा है कि इस टेक्नोलॉजी से उसे जीरो एक्सीडेंट के अपने लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी. इसके जरिए सिग्‍नल जंप करने पर ट्रेन खुद ही रुक जाएगी. एक बार लागू होने के बाद इस पूरे देश में लगाने के लिए प्रति किलोमीटर 50 लाख रुपये खर्च होंगे. जानकारी के मुताबिक- ये सिस्टम तीन स्थितियों में काम करता है – जैसे कि हेड-ऑन टकराव, रियर-एंड टकराव, और सिग्नल खतरा.

ब्रेक विफल रहने की स्थिति में ‘कवच' ब्रेक के स्वचालित अनुप्रयोग द्वारा ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है. यह उच्च आवृत्ति वाले रेडियो संचार का उपयोग करके गति की जानकारी देता रहता है. जो एसआईएल -4 (सुरक्षा अखंडता स्तर – 4) के अनुरूप भी है जो सुरक्षा प्रमाणन का उच्चतम स्तर है. हर ट्रैक के लिए ट्रैक और स्टेशन यार्ड पर आरएफआईडी टैग दिए जाते हैं और ट्रैक की पहचान, ट्रेनों के स्थान और ट्रेन की दिशा की पहचान के लिए सिग्नल देता है.

‘ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट' (OBDSA) लोको पायलटों को कम दिखने पर भी यह संकेत देता है. एक बार सिस्टम सक्रिय हो जाने के बाद, 5 किमी की सीमा के भीतर ये ट्रेनें रुक जाएंगी. वर्तमान में संकेत देने का कार्य सहायक लोको पायलट करता है, खिड़की से गर्दन निकालकर संकेत देता है.

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