विज्ञापन
This Article is From Jan 26, 2025

स्वर्ग से कैसे धरती पर आई गंगा, महाकुंभ की यह संपूर्ण अमृत कथा आपको भावों से भर देगी

लखनऊ में उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से NDTV महाकुंभ संवाद का आयोजन, हिमांशु वाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा ने सुनाई गंगा की कहानी

NDTV महाकुंभ संवाद में हिमांशु वाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा ने सुनाई गंगा की कहानी.

संगम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन का स्थान है. इस स्थान से गंगा आगे बढ़ती है. गंगा को हम नदी नहीं जीवन दायिनी कहते हैं. गंगा ज्ञान है, गंगा प्रेम है, गंगा भक्ति है तो गंगा मुक्ति भी है. लखनऊ में NDTV महाकुंभ संवाद में दुनिया भर में किस्सागोई के लिए मशहूर हिमांशु वाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा ने गंगा की कहानी सुनाई. यह बहुत रोचक कथा है.      

कथा वाचक हिमांशु वाजपेयी ने गंगा की कथा सुनाई - कुंभ संस्कृतियों का संगम है, परंपराओं का थाती है. यह सभ्यता का प्रतीक है और चेतना का आधार है. कुंभ प्रयागराज में हो तो हमारा खयाल गंगा की तरफ जाता है. कहते पंडित राज जगन्नाथ कि हमने एक विचित्र दृश्य देखा, यम का द्वार सूना पड़ा है, यमदूत मारे-मारे फिर रहे हैं. कहीं कोई मृत्यु का भागी मिलता ही नहीं. दूसरी तरफ स्वर्ग के द्वार पर विमानों की रेलपेल ऐसी कि स्वर्ग का मार्ग संकरा हो गया है. आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? इस विचित्र दृश्य की वजह क्या है? हे मात गंगे, हे सुरसरी गंगे, जब से आपकी अनुपम कथा का प्रताप, जब से आपकी कथा का पुण्य मृत्यु लोक में फैला है, तभी से ऐसा विचित्र दृश्य उत्पन्न हुआ है.

पंडित राज जगन्नाथ साफ-साफ कह रहे हैं कि गंगा की कथा को सुनने से, गंगा के महात्म्य को जानने से, गंगा की महिमा में डूबने से घोर से घोर पापी भी नरक जाने से बच जाता है और स्वर्ग का अधिकारी होता है. गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आईं, इसकी कथा तो हम लोग जानते हैं, लेकिन गंगा स्वर्ग में कैसे आईं, गंगा का प्रदुर्भाव कैसे हुआ, इसकी भी बड़ी दिलचस्प कहानी है. 

Latest and Breaking News on NDTV

कथा है- गर्ग संहिता के मुताबिक एक बार देवर्षि नारद पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आए. उन्होंने हिमालय की एक गुप्त घाटी में राग-रागनियों के समूह को देखा. मगर दुर्भाग्य से उस समूह का हर सदस्य किसी न किसी अंग से हीन था, यातना का कोई न कोई चिह्न अपने शरीर पर लिए हुए था. नारद जी ने पता किया तो पता यह चला कि ये सब राग-रागनियों की जानें हैं, उनकी आत्माएं हैं. और जो पृथ्वी पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी संगीतकार लोग इन्हें गलत तरीके से बिगाड़-बिगाड़कर गाते आ रहे हैं, उसके फल स्वरूप इन राग-रागनियों का स्वरूप विकृत हो गया है. इनके सौंदर्य को चोट पहुंची है. पता यह भी चला कि अब ये राग-रागनियां तभी अपने मूल स्वरूप में वापस आ सकती हैं जब कोई पूर्ण संगीतकार इन्हें बिल्कुल शुद्ध रूप में अदा कर दे. पूर्ण संगीतकार पृथ्वी पर तो कोई है नहीं. तो नारद जी ने यह समझा कि पूर्ण संगीतकार तो सृष्टि में एक ही हैं, महादेव भोलेनाथ. 

भगवान शिव की कठिन शर्त

नारद जी पहुंचे शंकर भगवान की शरण में, उनसे प्रार्थना की. शंकर भगवान तो आशुतोष हैं, जल्दी प्रसन्न होने वाले शंकर भगवान मान गए, मगर एक शर्त लगा दी. शिवजी ने शर्त ये लगाई कि वे तभी गाएंगे, जब उनकी सभा में कम से कम एक पूर्ण श्रोता जरूर मौजूद हो. पूर्ण श्रोता, यह पहले से भी कठिन शर्त थी. नारद जी ने विष्णु जी और ब्रम्हा जी को मनाया, शिव की गायन सभा का श्रोता बनने के लिए. जब भोलेनाथ ने गाना शुरू किया तो उनके गायन में शब्दों का बखान ही कैसा.. भोलेनाथ ने ऐसे गाया कि विष्णु जी उनके गायन को सुनकर द्रवीभूत हो गए, पूर्णतया निमग्न हो गए, सर्वथा तल्लीन हो गए. वे द्रवीभूत हुए तो उनके दिव्य जल स्वरूप को ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल में भर लिया और देव लोक में प्रवाहित कर दिया. देव लोक में प्रवाहित यही दिव्य जल धार गंगा कहलाई.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com