9 जून को बीजेपी (BJP) बिहार विधानसभा (Bihar Election) के लिए अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर देगी. गृहमंत्री अमित शाह एक एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बिहार की 243 विधानसभा क्षेत्रों के 1 लाख लोगों को संबोधित करेंगे. यह दावा बीजेपी की ओर से किया जा रहा है. इसके अलावा जो लोग रैली को सुनना पसंद करेंगे उनके लिए भी इंतजाम किया जा रहा है. फिलहाल इतना तो तय है कि कोरोना वायरस की वजह से हमारे समाज, रहन-सहन, काम करने के तरीके, खाने-पीने की आदतों के साथ ही देश की राजनीति पर भी तगड़ा असर पड़ने के आसार नजर आ रहे हैं. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां पर साल भर कोई न कोई चुनाव होते रहते हैं और ये चुनाव रोड शो, डोर टू डोर प्रचार, कार्यकर्ताओं के सम्मेलन, मेगा चुनावी रैलियों से भरे होते हैं. फिलहाल तो ऐसे राजनीतिक कार्यक्रमों के दिन अब वापस लौटते नजर नहीं आते जब तक इस बीमारी से ठीक करने वाली कोई दवा पुख्ता तौर पर सामने नजर नहीं आती है. फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि इस बार मोबाइल से तय होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव में हवा किस ओर है?
अगर कोरोना वायरस का प्रकोप न होता तो अब तक बिहार विधानसभा चुनाव का शोर शुरू हो चुका होता और हो सकता है पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, सीएम नीतीश कुमार, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की चुनावी रैलियां शुरू भी हो गई होतीं. लेकिन इस बीमारी का प्रकोप ऐसा है कि सभी नेता अब ट्वीटर तक ही सीमित हैं और वीडियो कांन्फ्रेसिंग के जरिए ही जनता के सामने रूबरू हो रहे हैं.
तो अब कैसे होगा चुनाव प्रचार
चुनाव प्रचार का शोर अब मैदानों में सुनाई देने के बजाए मोबाइल पर ज्यादा सुनाई देगा. सरकार की वैसे भी कोशिश है कि व्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा डिजिटल करने की. ऐसे में चुनाव में भी अछूते नहीं रह जाएंगे. डिजिटल मार्केटिंग के जरिए भी राजनीतिक दलों के पास प्रचार का एक बड़ा माध्यम है. इसके बाद टीवी और अखबार भी जनता तक बात पहुंचाने का जरिया बन सकते हैं. लेकिन इस दौरान चुनाव आयोग के लिए भी एक बड़ी चुनौती होगी कि कैसे सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करते हुए वोटिंग कराई जाए.
क्या हो सकता है नुकसान
भारत में नेताओं को लेकर एक शिकायत हमेशा रहती है कि वह आम जनता की परेशानियों से अंजान रहते हैं और उनका लोगों के बीच ज्यादा संपर्क नहीं रहता है. चुनाव प्रचार ही एक जरिया होता है जहां नेता आम जनता तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. इससे उनको थोड़ी बहुत जमीनी हकीकत का अंदाजा हो जाता है. लेकिन इन कार्यक्रमों के बगैर राजनीतिक दलों के आम जिंदगी में हो रही परेशानियों पर कितना ध्यान दे पाएंगे यह देखने वाली बात होगी.
क्या हो सकता है फायदा
डिजिटल चुनाव प्रचार से एक सबसे बड़ा फायदा यह हो सकता है कि कौन सा दल कितना पैसा खर्च कर रहा है इसका अंदाजा मिल सकता है. दूसरा चुनावी रैलियों की वजह से आम जनता, शहरों और कस्बों में होने वाली भीड़-भाड़, रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने के लिए किराए पर लोगों को लाने जैसी हरकतें, शोर-शराबा से भी निजात मिल सकती है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं