विज्ञापन
This Article is From Mar 04, 2024

Rule Of Law: सदन में भाषण और वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में SC का ऐतिहासिक फैसला, जानें इसके मायने

Bribes for vote case: 26 साल बाद 2023 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई कि इस मुद्दे पर फिर विचार किया जाना चाहिए, क्‍योंकि लोकतंत्र में इस तरह की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.

Rule Of Law: सदन में भाषण और वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में SC का ऐतिहासिक फैसला, जानें इसके मायने
रिश्‍वत लेकर सदन में वोट देना या भाषण देने का मुद्दा काफी पुराना है...
नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया है. 26 साल बाद सात जजों की बैंच ने 5 जजों की संविधान पीठ के अपने ही फैसले को पलट दिया है. पी वी नरसिम्‍हा राव से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहता था कि कोई संसद का सदस्‍य या विधायक रिश्‍वत लेकर सदन में भीतर वोट करता है या भाषण देता है, तो उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती है. ऐसे सांसदों और विधायकों को कानून से संरक्षण मिलेगा, क्‍योंकि सदन का सदस्‍य होने के कारण उनको विशेषाधिकार प्राप्‍त है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. आइए आपको बताते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मायने... 

5 जजों की संविधान पीठ के फैसले को पलटा 

इस फैसले पर लगातार सवाल उठते रहे... 30 सितंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर फिर से विचार करने की जरूरत है. इस तरह एक बार फिर इस मामले को खोला गया. पिछले साल अक्‍टूबर के महीने में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसले को सुरक्षित रख लिया था. अब इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 26 साल बाद 5 जजों की संविधान पीठ के फैसले को पलट दिया है. 

Latest and Breaking News on NDTV

...तो तैयार करना पड़ेगा अलग वर्ग 

डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम पीवी नरसिम्‍हा राव के मामले के फैसले से इत्‍तेफाक नहीं रखते हैं, हम उससे सहमत नहीं हैं. इसलिए सांसदों और विधायकों को जो कानूनी संरक्षण है, उसे हम रद्द करते हैं. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सांसद या विधायक जो रिश्‍वत लेते हैं, वो स्‍वतंत्र कार्य है, सदन से बाहर रिश्‍वत लेते हैं, तो उनका सदन की कार्यवाही से कोई लेनादेना नहीं है. अगर ऐसे सांसदों और विधायकों को कानूनी और मुकदमों से संरक्षण दिया जाता है, तो उसके लिए एक अलग वर्ग तैयार करना होगा. हालांकि, ये पूरी तरह से जायज नहीं है, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है. 

संविधान की आकांक्षाओं, मूल्‍यों को तबाह करने वाला...

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि अगर रिश्‍वत लेने वाले सांसदों और विधायकों को कानूनी संरक्षण दिया जाता है, तो यह संविधान की आकांक्षाओं, संवैधानिक मूल्‍य और अर्दशों को तबाह करने वाला है. साथ ही यह सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को खत्‍म करता है, जिसके व्‍यापक प्रभाव होंगे. इससे संसद के स्‍वस्‍थ विचार-विमर्श का माहौल भी खराब होता है. 

फैसला मील का पत्‍थर

सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि अगर कोई सांसद या विधायक सदन के बाहर  रिश्‍वत लेता है वोट डालने या भाषण देने के लिए, तो विशेषाधिकार उस पर लागू नहीं होता है. इसका सदन के सदस्‍यों के कर्त्‍तव्‍यों से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है. यह फैसला इसलिए भी बेहद अहम क्‍योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट ने न केवल अपने फैसले को पलटा है, बल्कि स्‍वच्‍छ राजनीति और चुनावी सुधार की जो बात सुप्रीम कोर्ट करता है, उसमें भी यह फैसला मील का पत्‍थर साबित होगा. 

नोट फोर वोट मामले का इतिहास...

रिश्‍वत लेकर सदन में वोट देना या भाषण देने का मुद्दा काफी पुराना है. सीता सोरेन से जुड़ा मामले में भी ये मुद्दा उठा था. तब पीवी नरसिम्‍हा राव की सरकार के दौरान नोट फोर कैश का मामला उठा था. साल 2012 में मांग की गई थी कि सीता सोरेन के खिलाफ सीबीआई जांच होनी चाहिए, क्‍योंकि उन्‍होंने वोट डालने के लिए रिश्‍वत ली है. हालांकि, 2014 में झारखंड हाईकोर्ट ने इस केस को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने तब कहा था कि सीता सोरेन ने उनके पक्ष में वोट नहीं दिया, जिनसे रिश्‍वत ली थी, इसलिए वह दोषी नहीं हैं, साथ ही सदन का सदस्‍य होने के कारण विशेषाधिकार भी है. 

साल 1998 में इसी तरह के मुद्दे को जांचने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ बैठी, जिसे हम झारखंड मुक्ति मोर्चा केस या पीवी नरसिम्‍हा राव केस कहते हैं. तब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बड़ा फैसला 3-2 के बहुमत से दिया था कि अगर कोई सांसद या विधायक रिश्‍वत लेकर सदन में वोट डालता है या भाषण देता है, तो उन्‍हें कानूनी रूप से संरक्षण रहेगा, ऐसे माननीयों पर मुकदमा नहीं चलेगा. 

26 साल बाद फिर उठा मुद्दा 

26 साल बाद 2023 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई कि इस मुद्दे पर फिर विचार किया जाना चाहिए, क्‍योंकि लोकतंत्र में इस तरह की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई रिश्‍वत लेता है, तो वो अपने आप में अपराध है. ऐसे में किसी माननीय को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. 

इस फैसले के यह सीधे-सीधे मायने हैं कि अगर कोई सांसद या विधायक सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्‍वत लेता है, तो उसके खिलाफ भी किसी पब्लिक सर्वेंट की तरह कानूनी कार्रवाई होगी. उन्‍हें भी कानून के कठघरे में खड़ा होना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिसका असर भी दूर तक देखने को मिलेगा.       

ये भी पढ़ें :- 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com