'अगला स्टेशन जोर बाग है...दरवाज़ें बाईं और खुलेंगे' - अगर आपने दिल्ली मेट्रो में सफर किया है तो इस तरह की लाइनें सुनना आपके लिए कोई नई बात नहीं होगी. शायद आपको पता भी होगा कि मेट्रो में यह आवाज़ दरअसल शम्मी नारंग की है जो कि दूरदर्शन के लोकप्रिय न्यूज़ रीडर (समाचार प्रस्तुतकर्ता) भी रह चुके हैं. हिन्दी दिवस के मौके पर शम्मी नारंग से बात करने की तमाम वजहों के साथ साथ एक कारण यह भी था कि जाने अनजाने युवाओं की हिन्दी ठीक करने में मेट्रो में उनकी बोली गई इन लाइनों का भी बड़ी भूमिका है.
Khabar.NDTV.com से बातचीत में शम्मी नारंग ने निवेदन करते हुए कहा कि हिन्दी को थोपा न जाए तो बेहतर होगा. अगर किसी को 'अस्पताल' समझ में आता है तो फिर वही सही, चिकित्सालय बोलने की क्या जरूरत है. हालांकि शम्मी यह भी कहते हैं कि अगर आपको कोई भी भाषा सिखानी ही है तो उसे कुछ इस कदर सिखाया जाए कि किसी को बोझ न लगे. जैसे दिल्ली में पहले 'सेंट्रल सेक्रेटेरियट' का ही चलन था लेकिन मेट्रो में घोषणाओं को सुनते सुनते अब युवा भी बड़े आराम से 'केंद्रीय सचिवालय' बोलने लगे हैं, यह बात अलग है कि शुरू शुरू में इस शब्द का मज़ाक भी उड़ाया गया था.
शुद्ध और अच्छी भाषा के समर्थक शम्मी कहते हैं कि 'मेरी हिन्दी के प्रकांड पंडितों से गुज़ारिश है कि वह क्यों नए नए शब्द लाने पर तुले हुए हैं. वेटलिफ्टिंग को भारोत्तोलन कहने की क्या जरूरत है. मैं बस इतना कहता हूं कि जो भी भाषा बोलें साफ और शुद्ध बोलें...अगर करियर बोलना है तो करियर ही बोलें, उसे कैरियर न बना लें...' एक और उदाहरण देते हुए शम्मी ने कहा - अगर मोदी जी मन की बात न करते हुए हृदय की बात करते तो शायद ही उन्हें कोई सुनता...
आधे घंटे का वह लेक्चर...
अपने शुरूआती वक्त की बात करते हुए शम्मी ने बताया कि किस तरह दूरदर्शन पर समाचार पढ़ते वक्त उन्होंने 'मरणोपरांत' को 'मरणोप्रांत' कह दिया था जिसके बाद मुझे आधे घंटे का लेक्चर दिया गया था कि सही शब्द बोलना सीखिए. इसी तरह मौजूदा समाचार चैनलों के बारे में शम्मी ने कहा 'कई बार समाचारों में 'इसके बावजूद भी' बोल दिया जाता है, बल्कि बावजूद का तो मतलब ही 'भी' होता है भाई...'
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* यह हिन्दी क्विज़ खेलिए और जांचिए, कितनी हिन्दी जानते हैं आप...
* जब अंडर सेक्रेटरी को मज़ाक में कहते थे 'नीच सचिव'...
* 'शुक्रिया डोरेमॉन... हम हैरान हैं, बच्चे को इतनी अच्छी हिन्दी आई कैसे...'
* क्या अवचेतन की भाषा को भुला बैठे हैं हम
* लोकप्रिय भाषा के रूप में हिन्दी का 'कमबैक'
* इस तरह हिन्दी भारत की राष्ट्रीय भाषा बनते बनते रह गई
*'खिचड़ी' को 'चावल मिश्रित दाल' लिखने की क्या जरूरत...
*बचपन और ज्ञान की मौलिक भाषा
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शम्मी की हिन्दी सुनने के दौरान एक सवाल जो दिमाग में आया वह यह है कि उनके बच्चों की भी क्या इतनी ही अच्छी पकड़ है जिसका जवाब शम्मी ने 'न' में दिया. बेहद ही दिलचस्प तरीके से अपनी बात रखते हुए शम्मी कहते हैं 'मेरे बेटे की हिन्दी कतई अच्छी नहीं है और मुझे इस बात को लेकर बहुत शर्म आती है. यह सब कमबख़्त अंग्रेजी स्कूल की वजह से हुआ है.'
वैसे वह हमारे सामने थे तो हमने यह भी पूछ ही लिया कि क्या वह खुद कभी मेट्रो में घूमने गए हैं. उन्होंने बताया कि वह एक बार मेट्रो में अपने भाई को लेकर मालवीय नगर से चांदनी चौक गए थे. 'मेट्रो लगभग खाली पड़ी थी और एक बच्चा अपनी मां के साथ उसी डिब्बे में था जिसमें हम थे. मेट्रो में जब जब मेरी आवाज़ आती, वह बच्चा मेरे पीछे पीछे बोलता. मैं कैसे भी करके अपनी हंसी रोककर बैठा था. स्टेशन आने के बाद उसने अपनी मां से बड़ी ही मासूमियत से कहा कि - मम्मी अंकल को तो कितना अच्छा है ना, उनको ट्रेन में कितना घूमने को मिलता है. उस मासूम बच्चे को लग रहा था कि मैं ट्रेन में बैठकर वे सारे अनाउन्समेंट (घोषणा) करता हूं.'
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