हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच मामले की सुनवाई कर कर रही है. हिजाब बैन याचिकाकर्ता छात्रा की ओर से देवदत्त कामत ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर सिर्फ तीन चीजों में प्रतिबंध लग सकता है, पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता और स्वास्थ्य. स्कूल में हिजाब पर पाबंदी कैसे लगेगी? राज्य ने न तो पब्लिक ऑर्डर पर, न ही नैतिकता या स्वास्थ्य के आधार पर इसे जायज ठहराया है. तो यह एक वैध प्रतिबंध नहीं हो सकता है. जस्टिस धूलिया ने कहा कि यह तर्क आपके लिए उपलब्ध है यदि आप इसे एक धार्मिक प्रथा के रूप में लेते हैं. हिजाब मामले की सुनवाई सोमवार दो बजे जारी रहेगी.
कामत: नहीं, हम इसे नहीं ले रहे हैं, हर धार्मिक प्रथा जरूरी नहीं हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य इसे तब तक प्रतिबंधित कर सकता है, जब तक कि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य से खराब न हो. उदाहरण के लिए जब मैं एक नामम पहनता हूं, वरिष्ठ वकील के परासरन की तरह. क्या यह अदालत में अनुशासन या मर्यादा को प्रभावित करता है?
जस्टिस गुप्ता: आप ये तुलना नहीं कर सकते, कोर्ट की ड्रेस से तुलना नहीं हो सकती, पहले राजीव धवन ने पगड़ी का जिक्र किया, यह एक आवश्यक पोशाक हो सकती है, राजस्थान में लोग पगड़ी पहनते हैं, गुजरात में भी.
कामत : मैं अपने धार्मिक विश्वास के हिस्से के रूप में हेड गियर, कड़ा पहन सकता हूं. यह एक मुख्य धार्मिक अभ्यास नहीं हो सकता है, लेकिन जब तक यह सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता को प्रभावित नहीं करता, तब तक इसकी अनुमति दी जा सकती है.
कामत: राज्य का तर्क है कि यदि आप हिजाब में स्कूल आते हैं तो अन्य लोग प्रभावित होंगे. यह हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का आधार नहीं हो सकता. यह सिद्ध किया जाना चाहिए कि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है.
जस्टिस गुप्ता : लेकिन वह तर्क आपके लिए तभी उपलब्ध है, यदि आप यह साबित कर सकते हैं कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है.
कामत : हर अभ्यास जरूरी नहीं है. जब तक कोई प्रचलित प्रथा सार्वजनिक व्यवस्था नैतिकता या स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं करती है, तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस गुप्ता : सार्वजनिक आदेश आप सड़कों पर लागू होते हैं, लेकिन स्कूल परिसर में यदि प्रबंधन चाहता है, तो यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि स्कूल क्या फैसला लेता है.
कामत - पब्लिक ऑर्डर हवाला देकर हिजाब पर बैन नहीं लगाया जा सकता. यह राज्य का कर्तव्य है कि वो एक ऐसा माहौल बनाए जहां हम अपने अधिकारों का किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकें.
कामत - 2019 में पश्चिम बंगाल में एक फिल्म की स्क्रीनिंग प्रतिबंध के खिलाफ फैसला दिया गया. जस्टिस गुप्ता भी बेंच का हिस्सा थे.जस्टिस गुप्ता जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ थे.
जस्टिस गुप्ता: यह एक ऐसा मामला था जहां शांति भंग की आशंका के कारण किसी फिल्म को प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं दी गई थी.
कामत - लेकिन सरकारी आदेश ने तो सार्वजनिक व्यवस्था का ही हवाला दिया है.
निजाम पाशा ने बाबरी फैसले का हवाला देते हुए कहा- हमारी अदालत संवैधानिक व्यवस्था पर आधारित है और हमें धार्मिक सिद्धांतों की व्याख्या में न्यायालय के प्रयास को अस्वीकार करना चाहिए.
जस्टिस गुप्ता: ये थोड़ा अलग है. स्थिति स्पष्ट करने के लिए कि क्या राम लला वहां थे, ये टिप्पणियां की गईं
पाशा: धार्मिक शास्त्रों की व्याख्या पर कानून निर्धारित किया गया है. धर्म में कई संप्रदाय और कई विचार हैं और प्रत्येक व्यक्ति की शास्त्र की समझ को संरक्षित किया जाना चाहिए. शायरा बानो (तीन तलाक) मामले में न्यायालय ने शास्त्रों की व्याख्या नहीं की. यह केवल जस्टिस कुरियन जोसेफ का फैसला था जो शास्त्रों पर आगे बढ़ा. बहुमत का फैसला क़ानून पर गया.
जस्टिस गुप्ता: आप कह रहे हैं कि हिजाब के लिए कोई अस्थायी सजा नहीं है. यह कहां से आया ? इसलिए नमाज़, ज़कात आदि के लिए कोई अस्थायी सजा नहीं है तो हिजाब बहुत निचले पायदान पर है. यह कैसे अनिवार्य हो सकता है?
पाशा- यह सब ईश्वर का वचन है और ईश्वर के वचन में विश्वास है.
जस्टिस गुप्ता- आप कह रहे हैं कि हिजाब के लिए कोई अस्थायी सजा नहीं है. यह कहां से आया ? इसलिए नमाज़, ज़कात आदि के लिए कोई अस्थायी सजा नहीं है तो हिजाब बहुत निचले पायदान पर है. यह कैसे अनिवार्य हो सकता है?
पाशा- यह सब ईश्वर का वचन है और ईश्वर के वचन में विश्वास है.
जस्टिस गुप्ता: इस अदालत की पांच जजों की बेंच ने कहा था कि सिखों के लिए पगड़ी और कृपाण पहनने की अनुमति है.इसलिए हम कह रहे हैं कि इस मामले की सिखों से तुलना ठीक नहीं होगी.
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