बिहार के नवादा जिले के एक अस्पताल में बंध्याकरण ऑपरेशन के तीन घंटे बाद सोना देवी फर्श पर लेटी हुई हैं। उनके बगल में 18 अन्य मरीजों को रखा गया है। जिन मरीजों की हालत गंभीर है, उन्हें अस्पताल में उपलब्ध छह बेड मुहैया कराए गए हैं।
बिहार में सरकार द्वारा संचालित ऐसे करीब 500 ग्रामीण अस्पताल (प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्र) हैं। इनमें से प्रत्येक को करीब 50,000 लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के मकसद से तैयार किया गया है, जबकि राष्ट्रीय औसत 30,000 लोगों का है। मकसौर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो डॉक्टर हैं और यहां पानी की आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है। सोना देवी कर्मचारी से पानी मांगती है। डॉक्टर उसे बताते हैं कि सर्जरी के तुरंत बाद उन्हें पानी नहीं दिया जा सकता है।
(मकसौर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो डॉक्टर हैं। यहां पानी आपूर्ति की व्यवस्था नहीं है)
अस्पताल में पानी की सप्लाई नहीं है। डॉक्टर ओमप्रकाश कहते हैं, यहां हर कुछ घंटे के बाद बाल्टियों में पानी लाया जाता है और वह पानी पीने लायक नहीं है। उन्होंने कहा, हमारे यहां ऊपर एक टैंक लगा हुआ है, हम थोड़ी दूर से पानी लाते हैं और रोजाना उस टैंक को भरते हैं या फिर किसी टैंकर के जरिये पानी मंगवाते हैं।
सोना देवी की उम्र 40 साल है और वह अपने पति के साथ मिलकर महीने में करीब चार हजार रुपये कमा पाती है। उसके पति खेती करते हैं, जबकि वह खुद दिहाड़ी मजदूरी करती है। ऑपरेशन के बाद उसकी दवाइयां, जिसमें दर्द-निवारक गोलियां भी शामिल हैं, उसे मुफ्त में मिलनी चाहिए। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि चार अहम दवाइयां, जिनमें ऑपरेशन और डिलिवरी के बाद इस्तेमाल में आने वाली जरूरी दवाएं भी शामिल हैं, वो सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले कई महीनों से उपलब्ध नहीं कराई गई हैं।
सोना देवी की रिश्तेदार अनम देवी कहती हैं, डॉक्टरों का कहना है कि हमें दवाइयां बाहर से खरीदनी होंगी। हम लोग बेहद गरीब हैं, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम दवाएं खरीद सकें, लेकिन क्या कर सकते हैं। अस्पताल के सबसे वरिष्ठ डॉक्टर बद्री प्रसाद कहते हैं, हमें सरकार से दवाइयां नहीं मिली हैं। स्थानीय स्तर पर दवाइयां खरीदने के लिए हमारे पास फंड तो हैं, लेकिन वे जल्दी खत्म हो जाते हैं।
मतदाताओं से तीसरी बार सत्ता दिलाने की अपील कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर या तो छह डॉक्टर कार्यरत हैं या अगले कुछ महीनों में ऐसा हो जाएगा। लेकिन इस स्वास्थ्य केंद्र पर सिर्फ दो डॉक्टर हैं। बिहार के सरकारी अस्पतालों में जरूरी डॉक्टरों में से सिर्फ 30 फीसदी कार्यरत हैं।
मकसौर से 30 किलोमीटर दूर रजौली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पांच खाली बेड हैं। छठे बेड पर आशा कुमारी हैं, जो जल्द ही बच्चे को जन्म देने वाली हैं। बिहार सरकार का कहना है कि ग्रामीण अस्पतालों में भर्ती सभी मरीज प्रत्येक दिन तीन-चार बार भोजन के हकदार हैं। आशा कुमारी को कुछ नहीं मिला है। एक नर्स ने कहा, हम किसी भी मरीज को खाना नहीं देते हैं, इसके लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है।
आशा देवी के रिश्तेदारों ने उन्हें भोजन पहुंचाया, लेकिन अगर उन्हें बाथरूम का इस्तेमाल करना पड़ता है तो इसके लिए उन्हें गंदे पानी को पार कर उस इकलौते टॉयलेट तक पहुंचना होता है, जो काफी बदबूदार है। हालांकि हाल ही में दो नए टॉयलेट बनाए गए हैं, लेकिन उनमें अभी ताले लगे हुए हैं।
नवादा के डीएम मनोज कुमार इलाके के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी हैं। जब उनके सामने अस्पताल की समस्याओं और दवाओं की किल्लत की सूची रखी जाती है, तो वह कहते हैं, मैं इस मामले को देखूंगा और उत्तरदायित्व तय करूंगा। दवाओं की कमी की समस्या राज्य भर में है। राज्य स्तर पर दवाओं के लिए टेंडर फाइनल नहीं किए गए हैं। हमने टेंडर निकाले, लेकिन कोई भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भोजन उपलब्ध कराने को आगे नहीं आया।
मुख्यमंत्री नीतीश ने हाल ही में कहा था, मैं मानता हूं कि हालात में सुधार की जरूरत है, लेकिन इस बात के लिए तारीफ कीजिए कि हम यह सुनिश्चित करने में कामयाब रहे कि लोग इन स्वास्थ्य केंद्रों में आ रहे हैं। उन्होंने कहा, इन स्वास्थ्य केंद्रों पर रोजाना लोग आ रहे हैं, और यह 10 साल पहले की उस स्थिति से बिल्कुल अलग है, जब कोई इन केंद्रों में आना नहीं चाहता था, क्योंकि ये निष्क्रिय पड़े हुए थे।
और इसके बाद अक्टूबर मध्य में शुरू होने जा रहे चुनावों को लेकर हालात बेहतर करने का वादा सामने आता है। बकौल नीतीश, अगले पांच सालों में हमारे पास कई बड़ी योजनाएं लागू करने के लिए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इन स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाओं के स्तर में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी, बड़ी संख्या में डॉक्टरों की बहाली भी की जा रही है।
बिहार में सरकार द्वारा संचालित ऐसे करीब 500 ग्रामीण अस्पताल (प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्र) हैं। इनमें से प्रत्येक को करीब 50,000 लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के मकसद से तैयार किया गया है, जबकि राष्ट्रीय औसत 30,000 लोगों का है। मकसौर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो डॉक्टर हैं और यहां पानी की आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है। सोना देवी कर्मचारी से पानी मांगती है। डॉक्टर उसे बताते हैं कि सर्जरी के तुरंत बाद उन्हें पानी नहीं दिया जा सकता है।
(मकसौर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो डॉक्टर हैं। यहां पानी आपूर्ति की व्यवस्था नहीं है)
अस्पताल में पानी की सप्लाई नहीं है। डॉक्टर ओमप्रकाश कहते हैं, यहां हर कुछ घंटे के बाद बाल्टियों में पानी लाया जाता है और वह पानी पीने लायक नहीं है। उन्होंने कहा, हमारे यहां ऊपर एक टैंक लगा हुआ है, हम थोड़ी दूर से पानी लाते हैं और रोजाना उस टैंक को भरते हैं या फिर किसी टैंकर के जरिये पानी मंगवाते हैं।
सोना देवी की उम्र 40 साल है और वह अपने पति के साथ मिलकर महीने में करीब चार हजार रुपये कमा पाती है। उसके पति खेती करते हैं, जबकि वह खुद दिहाड़ी मजदूरी करती है। ऑपरेशन के बाद उसकी दवाइयां, जिसमें दर्द-निवारक गोलियां भी शामिल हैं, उसे मुफ्त में मिलनी चाहिए। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि चार अहम दवाइयां, जिनमें ऑपरेशन और डिलिवरी के बाद इस्तेमाल में आने वाली जरूरी दवाएं भी शामिल हैं, वो सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा पिछले कई महीनों से उपलब्ध नहीं कराई गई हैं।
सोना देवी की रिश्तेदार अनम देवी कहती हैं, डॉक्टरों का कहना है कि हमें दवाइयां बाहर से खरीदनी होंगी। हम लोग बेहद गरीब हैं, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम दवाएं खरीद सकें, लेकिन क्या कर सकते हैं। अस्पताल के सबसे वरिष्ठ डॉक्टर बद्री प्रसाद कहते हैं, हमें सरकार से दवाइयां नहीं मिली हैं। स्थानीय स्तर पर दवाइयां खरीदने के लिए हमारे पास फंड तो हैं, लेकिन वे जल्दी खत्म हो जाते हैं।
(राजौली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का हाल)
मतदाताओं से तीसरी बार सत्ता दिलाने की अपील कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर या तो छह डॉक्टर कार्यरत हैं या अगले कुछ महीनों में ऐसा हो जाएगा। लेकिन इस स्वास्थ्य केंद्र पर सिर्फ दो डॉक्टर हैं। बिहार के सरकारी अस्पतालों में जरूरी डॉक्टरों में से सिर्फ 30 फीसदी कार्यरत हैं।
मकसौर से 30 किलोमीटर दूर रजौली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पांच खाली बेड हैं। छठे बेड पर आशा कुमारी हैं, जो जल्द ही बच्चे को जन्म देने वाली हैं। बिहार सरकार का कहना है कि ग्रामीण अस्पतालों में भर्ती सभी मरीज प्रत्येक दिन तीन-चार बार भोजन के हकदार हैं। आशा कुमारी को कुछ नहीं मिला है। एक नर्स ने कहा, हम किसी भी मरीज को खाना नहीं देते हैं, इसके लिए यहां कोई व्यवस्था नहीं है।
(मकसौर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बाहर एक एंबुलेंस)
आशा देवी के रिश्तेदारों ने उन्हें भोजन पहुंचाया, लेकिन अगर उन्हें बाथरूम का इस्तेमाल करना पड़ता है तो इसके लिए उन्हें गंदे पानी को पार कर उस इकलौते टॉयलेट तक पहुंचना होता है, जो काफी बदबूदार है। हालांकि हाल ही में दो नए टॉयलेट बनाए गए हैं, लेकिन उनमें अभी ताले लगे हुए हैं।
नवादा के डीएम मनोज कुमार इलाके के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी हैं। जब उनके सामने अस्पताल की समस्याओं और दवाओं की किल्लत की सूची रखी जाती है, तो वह कहते हैं, मैं इस मामले को देखूंगा और उत्तरदायित्व तय करूंगा। दवाओं की कमी की समस्या राज्य भर में है। राज्य स्तर पर दवाओं के लिए टेंडर फाइनल नहीं किए गए हैं। हमने टेंडर निकाले, लेकिन कोई भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भोजन उपलब्ध कराने को आगे नहीं आया।
(मकसौर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में छह बेड हैं, लेकिन वे प्राय: गंभीर हालत के मरीजों लिए आरक्षित होते हैं)
मुख्यमंत्री नीतीश ने हाल ही में कहा था, मैं मानता हूं कि हालात में सुधार की जरूरत है, लेकिन इस बात के लिए तारीफ कीजिए कि हम यह सुनिश्चित करने में कामयाब रहे कि लोग इन स्वास्थ्य केंद्रों में आ रहे हैं। उन्होंने कहा, इन स्वास्थ्य केंद्रों पर रोजाना लोग आ रहे हैं, और यह 10 साल पहले की उस स्थिति से बिल्कुल अलग है, जब कोई इन केंद्रों में आना नहीं चाहता था, क्योंकि ये निष्क्रिय पड़े हुए थे।
और इसके बाद अक्टूबर मध्य में शुरू होने जा रहे चुनावों को लेकर हालात बेहतर करने का वादा सामने आता है। बकौल नीतीश, अगले पांच सालों में हमारे पास कई बड़ी योजनाएं लागू करने के लिए हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इन स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाओं के स्तर में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी, बड़ी संख्या में डॉक्टरों की बहाली भी की जा रही है।
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