 
                                            - केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन में कुल स्वीकृत 504 दवा निरीक्षक पदों में से आधे से अधिक पद खाली हैं
- सीडीएससीओ के 419 रेगुलेटरी पदों में 187 और 85 चिकित्सा उपकरण पदों में 63 पद खाली हैं
- दवा निरीक्षकों की कमी से दवाओं की गुणवत्ता जांच प्रभावित हो रही है और यह देशभर के 14 कार्यालयों में समस्या है
देशभर में दवाओं की गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाली संस्था केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ में दवा निरीक्षकों के आधे पद खाली हैं. ये खुलासा हुआ है एक आरटीआई में, जिसमें बताया गया है कि कुल स्वीकृत पदों में से 50 प्रतिशत पद अब तक भरे नहीं गए हैं.
मध्य प्रदेश में कफ सिरप पीने से 24 बच्चों की मौत के बाद दवा कंपनियों की जांच को लेकर सवाल उठे थे. इसी बीच, सूचना के अधिकार के तहत मिली एक जानकारी ने सरकारी व्यवस्था की सच्चाई उजागर कर दी. आरटीआई के मुताबिक, सीडीएससीओ में दवा निरीक्षकों की भारी कमी है. कुल स्वीकृत पदों में से आधे अब भी खाली हैं.
इस बारे में बात करते हुए मेडिकल छात्र अमन कौशिक ने कहा, मुझे 27 अक्टूबर को सीडीएससीओ से जवाब मिला. इसमें बताया गया कि दवा निरीक्षक की दो कैटेगरी होती हैं — एक रेगुलेटरी, जो दवाओं की निगरानी करती है, और दूसरी मेडिकल डिवाइस के लिए, जो उपकरणों की गुणवत्ता पर नजर रखती है. सीडीएससीओ ने बताया कि रेगुलेटरी में 419 पद स्वीकृत हैं और मेडिकल डिवाइस में 85 पद। इनमें से रेगुलेटरी के 187 और मेडिकल डिवाइस के 63 पद खाली हैं.
दिल्ली के मेडिकल छात्र अमन कौशिक ने 9 अक्टूबर को आरटीआई भेजकर सीडीएससीओ से दो सवाल पूछे थे - सीडीएससीओ (मुख्यालय और जोनल/सब-जोनल कार्यालयों सहित) में दवा निरीक्षक के कुल स्वीकृत पद कितने हैं? और 9 अक्टूबर 2025 तक कितने पद खाली हैं?
जिसका जवाब 27 अक्टूबर को मिला — कुल स्वीकृत पद 504, जिनमें से 250 पद खाली हैं. नियामक: 419 में से 187 खाली. चिकित्सा उपकरण: 85 में से 63 खाली यानी, कुल 504 में से आधे से ज़्यादा पद खाली हैं.
आरटीआई के जरिए जो जानकारी सामने आई है, वो सीडीएससीओ के मुख्यालय, आठ क्षेत्रीय और छह उप-क्षेत्रीय कार्यालयों की है — यानी देशभर में करीब 14 सेंटर्स सीडीएससीओ के हैं. जहां दवा निरीक्षकों की भारी कमी है. यही वजह है कि हर महीने दवाओं की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि जांच का काम प्रभावित हो रहा है.
एनडीटीवी को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दवा निरीक्षक पद (भरे हुए / कुल स्वीकृत)
- हिमाचल प्रदेश – 39 / 44
- गुजरात – 100 / 150
- महाराष्ट्र – 50 / 200
- झारखंड – 12 / 42
- पश्चिम बंगाल – 80 / 140
- उत्तर प्रदेश – 70 / 110
- कर्नाटक – 8 / 112
- बिहार – 130 / 163
- मध्य प्रदेश – 80 / 96
- जम्मू-कश्मीर – 65 / 80
- राजस्थान – 100 / 116
- छत्तीसगढ़ – 80 / 112
- तेलंगाना – 65 / 71
- आंध्र प्रदेश – 47 / 59
- उत्तराखंड – 25 / 40
कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल और उत्तराखंड की स्थिति सबसे खराब है — जबकि इन्हीं राज्यों में दवा कंपनियों की संख्या सबसे ज़्यादा है.
एमएसएमई इकाइयों की अनुमानित संख्या
- गुजरात – लगभग 1150
- महाराष्ट्र – 600 से अधिक
- हिमाचल प्रदेश – 600 से अधिक
- उत्तराखंड – लगभग 400
- उत्तर प्रदेश – लगभग 350
- तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश – लगभग 290
आईएमए के अध्यक्ष दिलीप भानुशाली ने कहा कि दो महीने पहले मध्य प्रदेश में कफ सिरप से जुड़ी एक घटना में कई मासूम बच्चों की मौत हुई थी. जांच में पता चला कि कफ सिरप में मिलावट थी और बिना ठीक से जांच किए वह बाजार में बेचा जा रहा था. इस लापरवाही के लिए दवा बनाने वाली कंपनी और अनुमति देने वाली संबंधित प्राधिकरण जिम्मेदार थी. इसके बावजूद कार्रवाई डॉक्टर पर की गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जो अनुचित है.
हाल ही में दिल्ली में भी इसी तरह का मामला सामने आया, जहां इनो की फैक्ट्री में छापा पड़ा. जांच में पता चला कि वहां मिलावटी प्रोडक्ट बनाए जा रहे थे और इस्तेमाल किए गए पैकेट असली इनो के नहीं थे. इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, जो दवाओं की गुणवत्ता जांच प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करती हैं. सरकार को इस पर गंभीरता से कदम उठाते हुए दवा निरीक्षकों के खाली पदों को जल्द से जल्द भरना चाहिए, ताकि दवाओं की सही तरीके से जांच हो सके और ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.
दवा निरीक्षकों की कमी का सीधा असर जांच पर पड़ रहा है. जिस श्री सन फॉर्मा कंपनी की खांसी की दवा से मासूम बच्चों की मौत हुई थी, वहां भी दवाओं की ठीक से जांच नहीं की जा रही थी. सीएजी रिपोर्ट में भी इसका ज़िक्र है — जिसमें कहा गया कि तमिलनाडु दवा नियंत्रण विभाग में कुल 488 पदों में से सिर्फ 344 पर ही कर्मचारी काम कर रहे हैं, यानी लगभग 32% पद खाली हैं.
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