उत्तर भारत की लाइफलाइन कही जाने वाली अरावली पर्वतमाला इन दिनों चर्चा के केंद्र में है. एक तरफ जहां अरावली बचाओ की दलीलें दी जा रही हैं, तो वहीं, दूसरी तरफ सरकार ने अरावली संरक्षण के मानदंडों को लेकर अपनी स्थिति साफ की है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि सरकार ने किसी भी मानदंड में छूट नहीं दी है.
क्यों है अरावली हमारे लिए जरूरी?
अरावली केवल पहाड़ नहीं, बल्कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के लिए एक सुरक्षा दीवार है.
दिल्ली का ग्रीन लंग्स
करीब 20 से 25% दिल्ली अरावली पर्वतमाला को कवर करती है. दक्षिण और दक्षिण‑पश्चिमी दिल्ली छोटी-छोटी चट्टानों पर बसी है. यह हर साल प्रति हेक्टेयर 20 लाख लीटर भूजल रिचार्ज करती है और धूल भरी हवाओं के लिए नेचुरल मास्क का काम करती है. इसे दिल्ली का 'ग्रीन लंग्स' भी कहा जाता है. अगर अरावली खत्म हुई, तो दिल्ली में पानी की किल्लत होगी और औसत तापमान में भारी बढ़ोतरी हो सकती है. वन्य जीवों का ठिकाना खत्म हो सकता है.
हरियाणा में मरुस्थलीकरण के खिलाफ ढाल
अरावली की मौजूदगी हरियाणा के चार जिलों में है. भूजल स्तर बनाए रखती है. रेत भरी हवाओं को रोकती है. वन्य जीवों का ठिकाना है. इसके अभाव में राज्य में रेत भरी हवाएं चलेंगी और कृषि उत्पादकता गिर जाएगी.
राजस्थान में रेगिस्तान पर रोक
अरावली का 80% हिस्सा राजस्थान में है, जो इसे दो भौगोलिक हिस्सों में बांटता है. 15 जिलों में अरावली की मौजूदगी है. वजूद खत्म होने पर थार रेगिस्तान का विस्तार तेजी से बढ़ेगा और राज्य की प्रमुख नदियां सूख जाएंगी.
गुजरात में अहम नदियों का स्रोत
गुजरात में अरावली पालनपुर के पास से शुरू होती है. यहां अरावली साबरमती जैसी नदियों का उद्गम स्थल है. गुजरात में एक महत्वपूर्ण जल विभाजक का काम करती है. थार के विस्तार में प्राकृतिक दीवार बनाती है. वजूद खत्म होगा तो नदियां सूख जाएंगी. पानी की किल्लत बढ़ेगी. थार रेगिस्तान का विस्तार होगा. वनों का आवरण कम हो जाएगा. जैव विविधता को नुकसान पहुंचेगा.
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