फाइल फोटो
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार जमीन अधिग्रहण पर तीसरी बार अध्यादेश लाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर हुई कैबिनेट की बैठक में अध्यादेश लाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई। अब इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाएगा। मौजूदा अध्यादेश की मियाद 3 जून को ख़त्म हो रही है।
पिछले सत्र में सरकार ने लोकसभा में तो भूमि अधिग्रहण बिल को पास करा लिया था, लेकिन एकजुट विपक्ष के हमलावर रुख़ और अल्पमत के बीच राज्यसभा में बिल पास नहीं हो सका था।
दरअसल विपक्ष लगातार ज़मीन अधिग्रहण बिल का ये कहते हुए विरोध कर रहा है कि ये बिल किसानों के खिलाफ और उद्योगपतियों के लिए मददगार है। राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। ऐसे में इस बिल को पास करवाना टेढ़ी खीर बन गया है।
शुक्रवार को जमीन अधिग्रहण विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति की पहली बैठक में कई विपक्षी सदस्यों ने सरकार द्वारा 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को बदलने के औचित्य को लेकर सवाल उठाए। विधेयक के समर्थन में सरकार के तर्कों पर असंतोष जताते हुए सदस्यों ने इस मुद्दे पर जवाब की मांग की।
बीजेपी सदस्य एसएस अहलूवालिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में ग्रामीण विकास मंत्रालय और कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने सदस्यों के समक्ष 'भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा के अधिकार और पारदर्शिता से संबंधित अधिनियम, 2013' में किए गए संशोधनों पर प्रेंजेटशन दिया।
सूत्रों ने कहा कि दोनों मंत्रालयों के अधिकारियों ने संशोधनों की व्याख्या की तो कांग्रेस, बीजेडी, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट समेत विपक्षी दलों के सदस्यों ने भूमि अधिग्रहण करते समय सहमति के प्रावधान को हटाने और सामाजिक प्रभाव आकलन की जरूरत को समाप्त करने के औचित्य पर सवाल पूछे। अध्यादेश के माध्यम से करीब छह महीने पहले संशोधन किए गए थे, जिनमें सहमति के प्रावधान को हटा दिया गया था।
प्रेंजेटेशन के दौरान कुछ सदस्यों ने औद्योगिक कॉरिडोरों के लिए भूमि अधिग्रहण पर और अधिक स्पष्टता चाही। कई सदस्यों ने मांग की कि यह मुद्दा जटिल है इसलिए वे संशोधनों के औचित्य पर मंत्रालयों का समग्र जवाब चाहेंगे। सूत्रों के अनुसार ग्रामीण विकास और विधि समेत कई मंत्रालय समिति को अगले महीने की शुरुआत में संयुक्त उत्तर दे सकते हैं। समिति मॉनसून सत्र के पहले दिन रिपोर्ट पेश कर सके, इस लिहाज से हर हफ्ते में दो बार बैठक होगी। मॉनसून सत्र सामान्यतया जुलाई के मध्य में शुरू होता है। (इनपुट एजेंसी से)
पिछले सत्र में सरकार ने लोकसभा में तो भूमि अधिग्रहण बिल को पास करा लिया था, लेकिन एकजुट विपक्ष के हमलावर रुख़ और अल्पमत के बीच राज्यसभा में बिल पास नहीं हो सका था।
दरअसल विपक्ष लगातार ज़मीन अधिग्रहण बिल का ये कहते हुए विरोध कर रहा है कि ये बिल किसानों के खिलाफ और उद्योगपतियों के लिए मददगार है। राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है। ऐसे में इस बिल को पास करवाना टेढ़ी खीर बन गया है।
शुक्रवार को जमीन अधिग्रहण विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति की पहली बैठक में कई विपक्षी सदस्यों ने सरकार द्वारा 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को बदलने के औचित्य को लेकर सवाल उठाए। विधेयक के समर्थन में सरकार के तर्कों पर असंतोष जताते हुए सदस्यों ने इस मुद्दे पर जवाब की मांग की।
बीजेपी सदस्य एसएस अहलूवालिया की अध्यक्षता में हुई बैठक में ग्रामीण विकास मंत्रालय और कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने सदस्यों के समक्ष 'भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा के अधिकार और पारदर्शिता से संबंधित अधिनियम, 2013' में किए गए संशोधनों पर प्रेंजेटशन दिया।
सूत्रों ने कहा कि दोनों मंत्रालयों के अधिकारियों ने संशोधनों की व्याख्या की तो कांग्रेस, बीजेडी, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट समेत विपक्षी दलों के सदस्यों ने भूमि अधिग्रहण करते समय सहमति के प्रावधान को हटाने और सामाजिक प्रभाव आकलन की जरूरत को समाप्त करने के औचित्य पर सवाल पूछे। अध्यादेश के माध्यम से करीब छह महीने पहले संशोधन किए गए थे, जिनमें सहमति के प्रावधान को हटा दिया गया था।
प्रेंजेटेशन के दौरान कुछ सदस्यों ने औद्योगिक कॉरिडोरों के लिए भूमि अधिग्रहण पर और अधिक स्पष्टता चाही। कई सदस्यों ने मांग की कि यह मुद्दा जटिल है इसलिए वे संशोधनों के औचित्य पर मंत्रालयों का समग्र जवाब चाहेंगे। सूत्रों के अनुसार ग्रामीण विकास और विधि समेत कई मंत्रालय समिति को अगले महीने की शुरुआत में संयुक्त उत्तर दे सकते हैं। समिति मॉनसून सत्र के पहले दिन रिपोर्ट पेश कर सके, इस लिहाज से हर हफ्ते में दो बार बैठक होगी। मॉनसून सत्र सामान्यतया जुलाई के मध्य में शुरू होता है। (इनपुट एजेंसी से)
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