
- सरकार ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए एफजीडी मानकों में ढील दी है. अब सिर्फ बड़े शहरों के 10 किमी दायरे में संयंत्रों में इसे लगाना जरूरी होगी.
- पूर्व ऊर्जा सचिव अनिल राजदान ने कहा कि इस बदलाव से बिजली उत्पादकों की लागत घटेगी और वे प्रतिस्पर्धा में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे.
- उन्होंने कहा कि देश के कोयले में सल्फर की मात्रा बहुत कम है, इसलिए सभी संयंत्रों में एफजीडी सिस्टम की अनिवार्यता में ढील देने का फैसला सही है.
देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को एफजीडी (Flue-gas desulfurization) मानकों में ढील के फैसले का ऊर्जा विशेषज्ञों ने स्वागत किया है. पूर्व ऊर्जा सचिव अनिल राजदान ने एनडीटीवी से विशेष बातचीत में कहा कि इससे बिजली उत्पादकों की लागत घटेगी और वो कड़ी प्रतिस्पर्धा में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे. बड़े शहरों के 10 किमी के दायरे में इसे लागू करना अच्छा कदम है. इससे बिजली संयंत्रों में इन उपकरणों के इंस्टालेशन, संचालन और रखरखाव का खर्च घटेगा. इससे बिजली कंपनियों की पूंजीगत लागत घटेगी.
FGD मानकों में सरकार ने दी ये ढील
गौरतलब है कि सरकार ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए FGD मानकों में ढील दी है. कोयला जलने से निकलने वाली हानिकारक गैसों में से सल्फर डाई ऑक्साइड को अलग करने के लिए सभी थर्मल पावर प्लांटों में एफजीडी सिस्टम अनिवार्य किया गया था. लेकिन अब नए नियमों के अनुसार, 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों के 10 किलोमीटर दायरे में लगे बिजली संयंत्रों को ही ये लगाना होगा.
'देश के कोयले में सल्फर की मात्रा बेहद कम'
राजदान ने कहा कि एनटीपीसी और ऊर्जा मंत्रालय में भी ऐसे मानकों को लेकर विरोध देखा गया है. जहां तक मेरी जानकारी है कि मेघालय के मार्गरेटा इलाके को छोड़कर देश के बाकी क्षेत्रों के कोयले में सल्फर की मात्रा बेहद कम है. राजदान ने कहा कि प्रदूषण से शहरी इलाकों को बचाना सही है, लेकिन हमें ये देखना होगा कि भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा बेहद कम होती है. पावर प्लांट के अलावा भी प्रदूषण की अन्य वजहें हैं, जिनमें देश भर में फैले ईंट-भट्ठे शामिल हैं. देश में सल्फर डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है.
एक दशक तक विरोध के बाद मिली छूट
माना जा रहा है कि पावर प्लांटों के लिए सल्फर उत्सर्जन के मानकों में ढील से बिजली की कीमतों में 25-30 पैसे प्रति यूनिट की कमी आने की संभावना है. पूर्व ऊर्जा सचिव ने कहा कि एफजीडी मानकों में ये ढील करीब एक दशक तक चले विरोध के बाद दी गई है. खासकर आईआईटी दिल्ली जैसे बड़े संस्थानों ने अपने अध्ययन में ये पाया है कि लागत बढ़ाने के अलावा इसका कोई और विशेष प्रभाव नहीं है. उन्होंने कहा कि आज के दौर में जब सोलर एनर्जी और थर्मल प्लांट के बीच बिजली उत्पादन को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा है, उसको देखते हुए ये बेहतर कदम है. इस रियायत से बिजली संयंत्रों के बंद होने का जोखिम कम होगा. नियामकीय दखल कम होने से कोल पावर प्लांट्स को फायदा होगा.
'विकसित देशों के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन कम'
सल्फर उत्सर्जन सिस्टम के मानकों में ढील से कार्बन उत्सर्जन बढ़ने की चिंता पर राजदान ने कहा कि अगर दुनिया में विकसित देशों के कार्बन उत्सर्जन से तुलना करें तो भारत समेत विकासशील देशों का कार्बन उत्सर्जन काफी कम है. भारत जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है. परमाणु बिजली संयंत्रों और सौर ऊर्जा के मामले में भारत ने काफी प्रगति की है और अभी भी काफी संभावनाएं हैं.
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